बुधवार, 19 सितंबर 2012

सुख्,शांति,सरसता बहने दो


           सुख्,शांति,सरसता बहने दो
                             -राज सक्सेना
विषवाण न छोड़ो वाणी से, अमृत सी कविता कहने दो |
रखदो इन घातक तीरों को,सुख,शांति,सरसता बहने दो |
           मानवरक्तों से लथपथ जो,
           क्यों उठा लिए दोधारे हैं |
           इनपर जिनका भी रक्त लगा,
           वे भी तो सभी हमारे हैं |
छोड़ो सब मुद्दे लड़ने के, तज - कटुता,मृदुता रहने दो |
रखदो इन घातक तीरों को,सुख,शांति,सरसता बहने दो |
           इस प्रजा-तंत्र  के सागर से,
           दूषित - शैवाल हटाना  है  |
           जो बिके खनकते सिक्कों पर,
           उनको अब सबक सिखाना है |
मिट रही भूख,डर खत्म हुआ,जीवित समरसता रहने दो |
रखदो इन घातक तीरों को,सुख,शांति,सरसता बहने दो |
           सद्प्रेम तुम्हारा कहां गया,
           क्यों भाई-चारा सोता है |
           शिकवे सब दूर करो मन से,
           बातों से सब हल होता है |
बस एक धर्म है मानवता,  मन में मत जड़ता रहने दो |
रखदो इन घातक तीरों को,सुख,शांति,सरसता बहने दो |
           आगया समय अब उन्नति का,
           उठ कर अब चलने योग्य हुए |
           जो सपने देखे थे मिल कर,
           साकार, समर्पित-भोग्य  हुए |
मत आग लगाओ सपनों में, इन सबको पलता रहने दो |
रखदो इन घातक तीरों को,सुख,शांति,सरसता बहने दो |

  धन वर्षा,हनुमान मन्दिर, खटीमा-262308 (उ०ख०)
    मोबा०- 9410718777, 7579289888, 8057320999