मंगलवार, 29 नवंबर 2011

शान है बेटी


          खुदा की शान है बेटी

पराया कह दिया किसने,हमारी जान है बेटी |
हमारी आंख का मोती,हमारी आन  है बेटी |
सहा करती है सब हंसकर,कभी न उफ तलक बोली,
बढाता है जो इज्जत को,वही भगवान् है बेटी |
जरुरत है हरएक घर की,बिना इसके अधूरा सब,
खुदा का एक तोहफा है,अजी सम्मान है बेटी |
ये मेहमां एक घर की है,तो रौनक दूसरे घर की,
उजाला दो घरों का है,कई अरमान है बेटी  |
जरुरत हर बशर की है,अजल से ये कयामत तक,
अगर तन हम सभी हैं तो,हमारी प्रान है बेटी |
कभी मां है,कभी हमदम,कभी कुछ भी नहीं फिर भी,
हमारी हर बुलन्दी की, सही पहचान है बेटी |
दुआ है ये बुजुर्गों की,अता की है खुदा ने जो,
है नूर-ए-चश्म हम सबकी,खुदा की शान है बेटी |

शनिवार, 26 नवंबर 2011

अप्रैल फूल बनाया


      अप्रैल फूल बनाया
चतुर्थ मास के प्रथम दिवस को,
उल्लू     के    मन   आया |
रहे  बनाते   उल्लू     हमको,
दिवस      हमारा     आया |

मैं भी आज    स्वंय  सरीखा,
उल्लू        इन्हें    बनाऊं |
अपने    मोबा इल से  झूठे,
कुछ       मैसेज  भिजवाऊं |

भैंस वती को 'मैसेज'  भेजा,
ब्युटी  पार्लर         जाओ |
क्रीम  बनाई एक    उन्होंने,
गोरी     तुम   हो   आओ |

गधे राम को   भेजा 'मैसेज',
सुन्दर - वन   में    जाओ |
वहां   जमी  है अक्लघास जो,
चर कर      अक्ल  बढाओ |

'मैसेज  भेजा चूहे   जी को,
लोमड़  -  वैद्य     पटाओ |
सिंह - राज जो खाते  गोली,
खाकर   कैट       भगाओ |

बिल्ली   को  भेजा 'संदेसा',
'बन्दर्-मुनि' पर    जाओ |
सम्मोहन का मंत्र सीख कर ,
मोटे - रैट         पटाओ |

भेज  संदेशे   उल्लू - राजा,
मन ही मन       इतराये |
देखा सन्देशे  ,  भेजे   पर,
बिना'सैण्ड'का बटन  दबाये |

मंगलवार, 15 नवंबर 2011

नीड़ बनाया


       नीड़ बनाया
कहां सीख कर आई हो तुम,
गृह - निर्माण     सवैय्या |
कितना सुन्दर नीड़ बना कर,
रहती       हो   गौरय्या |

तिनका-तिनका चुनकर तुमने,
कला-कृति    रच    डाली |
सबसे ऊंची डाल    सुरक्षित,
उस  पर   यह    लटकाली |

अन्दर-बाहर चिकना   करके,
कमरे      तीन     सजाए |
छोटे-छोटे गोल   द्वार    भी,
इसमें       कई     बनाए |

सुन्दर सूखे   पत्ते     लेकर,
तुमने       नीड़    सजाया |
मन करता है  मैं भी   रहलूं,
लेकिन  पहुंच   न     पाया |

अब भारत है तुम्हें बचाना |




अब भारत है तुम्हें  बचाना |


अपनों से लुटपिट कर हम तो,
नही लिख सके नया फसाना |
भारत की समृद्द संस्कृति,
बच्चो अब है तुम्हें बचाना ||

मची हुई है खुली लूट जो,
कैसे उस पर रोक लगेगी |
बापू ने जो सपना देखा,
वैसी दुनिया कभी मिलेगी ?

सत्य,अहिंसा,प्रेम देश में,-
सिर्फ तुम्हारे जिम्मे लाना |
भारत की समृद्द संस्कृति,
बच्चो अब है तुम्हें बचाना |

सिर्फ लंगोटी जैसी धोती,
मन में लेकर स्वप्न सुहाना |
बुनना चाहा था बापू ने,
इस भारत का ताना-बाना |

बापू के सारे सपने अब,-
खींच धरा पर तुमने लाना |
भारत की समृद्द संस्कृति,
बच्चो अब है तुम्हें बचाना |

भारत मां के लाज वस्त्र तक,
लूट रहे हैं मिल कर सारे |
हाथ बांध हम देख रहे हैं,
इनके हर करतब टकियारे |

चट  करने की  ना है सीमा ,
खाते हैं पशु तक का दाना |
भारत की समृद्द संस्कृति,
बच्चो अब है तुम्हें बचाना |

शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

मानव सेवा


       मानव सेवा
मानव सेवा में निज मन को,
हर समय सदा तैयार रखो |
यह अन्य किसी के काम आये,
यह सोच सदा हर बार रखो |

जीवन है चन्द  बहारों का,-
इन चन्द बहारों को लेकर  |
आनन्द उठाओ जीने  का,
जीवन्त हर घड़ी को जीकर |

हर पल हर सेवा में तत्पर,
तन,मन,धन,परिवार करो |
मानव सेवा में निज मन को,
हर समय सदा तैयार रखो |

कुछ जीते जीवन बदतर सा,
इनको तुम जीना सिखलाओ |
जो भोग रहे हैं नर्क  यहां,
एक झलक स्वर्ग की दिखलाओ |

मिल जाय दुखी यदि राहों में,
उसका भी तुम सत्कार  करो |
मानव सेवा में निज मन को,
हर समय सदा तैयार रखो |