बुधवार, 25 जनवरी 2012

उत्तराखण्ड के लोकसाहित्य में कुमाऊंनी लोककथायें


       उत्तराखण्ड के लोकसाहित्य में कुमाऊंनी लोककथायें
                                    -डा.राज सक्सेना
       किसी भी समाज के लोकसाहित्य में लोक कथा का अपना एक विशिष्ट
स्थान होता है | लोकसाहित्य में इनकी प्रचुरता और अतीव लोकप्रियता  इनको
सम्प्रभुता प्रदान करती है बिशेषरूप से बाल साहित्य की तो ये आधारशिला होती
हैं | हर बच्चा होश सम्हालते ही अपनी मां,नानी या दादी से कहानी सुनने का
आग्रही हो जाता है | बच्चे ही क्यों बड़े भी लोककथा के रूप में कहानी सुनना
आज भी पसन्द करते हैं | उत्तराखण्ड की सर्द रातों का पहला पहर, जहां और
जिन बच्चों को टेलीविजन सुविधा उपलब्ध नहीं है,वहां अलाव के चारों ओर घेर
कर बैठे बच्चे दादी या नानी से कहानी के रूप में कोई लोककथा सुनने का -
आनन्द उठाते नजर आते हैं | खाना खाकर रजाई में दुबके बच्चे भी कोई -
कथा सुनाने का आग्रह करते मिल जाते हैं | यही नहीं किसी गांव के पेड़ के
नीचे अलाव के चारों ओर लगा जमघट भी लोककथा का आनन्द लेता मिल
जाता है |  इस तरह से हमारा ग्रामीण लोक जीवन विशेष रूप से बच्चों का
कल्पनालोक-लोक कथा के ताने बाने से बुना ही लगने लगता है |
       जैसे सबसे पहले काव्य का जन्मस्थान भारत है वैसे ही सबसे पहले
लोक कथाओं का जन्म भी भारत में ही हुआ माना जाता है | यहीं से इन-
लोक कथाओं का प्रसार अरब और फिर वहां से पूरे विश्व में हुआ माना जाता है |
संस्कृत लोक कथाओं की सबसे प्राचीन कथा गुणाड्य की वृहत्कथा मानी गई है |
यह ग्रंथ मूल रूप से पैशाची भाषा में लिखा गया और डा.व्युलर के अनुसार -
इसका रचनाकाल दूसरी शताब्दी है | इसके वृहत्कथा श्लोक संग्रह,वृहत्कथा मंजरी
और कथा सरित सागर तीन अनुवाद उपलब्ध हैं | संसार के लोक कथा साहित्य
में तहलका मचा देने वाला पंचतंत्र एक अद्वितीय लोक कथा समुच्चय है | इसने
विश्व की सारी लोक कथाओं को प्रभावित करने का गौरव प्राप्त किया है | नीति-
सम्बन्धी लोक कथाओं में पंचतन्त्र के पश्चात हितोपदेश का नाम आता है | इस
की रचना चौदहवीं शताब्दी के आस पास मानी गई है |
               लोक कथा की उत्पत्ति के सन्दर्भ में विकासवाद,यथार्थवाद,प्रसार-
वाद,प्रकृतिरुपकवाद,मनोविश्लेषवाद,इच्छापूर्तिवाद,व्याख्यावाद और समन्वय-
वाद इत्यादि अनेक पाश्चात्य और भारतीय मान्यताएं मानी जाती हैं | उप-
रोक्त सभी मान्यताएं ठोस आधारों पर आधारित होने के कारण इनका सम-
न्वय ही वस्तुतः लोककथा का मूल माना जाना उचित प्रतीत होता है |जहां
तक लोककथा के वर्गीकरण का प्रश्न है, इस सम्बन्ध में विद्वद्जनों के -
विभिन्न मत हैं | कथानक,कथा का विषय,उसका उद्देश्य,चरित्र,घटना -
पात्रों की अवस्था,देश-काल,जाति, अनुष्ठान,प्राणिभेद और कथा-कथ्यअभि-
प्राय आदि अनेक-अनेक कारणों से लोककथाओं के विभेद किये जाते हैं |
       कुमांउनी लोकसाहित्य पर विहंगम दृष्टि डालें तो हम लोककथा की
दृष्टि से इसे अत्यन्त समृद्ध पाते हैं | कुमाऊं क्षेत्र के जागर,रमौल,घणेली
आदि कुमाऊं के लोककथा-महाकाव्य माने जाते हैं | नीति-लोककथाओं के
रुप में झुसी-मुसी काथ,लछी कुटरीच्यंलोकि काथ आदि को कुमाऊंनी क्षेत्र
का पंचतन्त्र और हितोपदेश कहा जा सकता है |
      सहज,रोचक और आकार में सीमित विशेषताएं ही लोककथा  को
कुमाऊंनी लोकगाथा से पृथक करती हैं | वाक्चातुर्य से परिपूर्णता,नैतिकता
तथा उपदेशपरक गद्यात्मक वर्णन  इन छोटी और मनोरंजक -कहानियों को
लोककथा का स्वरुप प्रदान करता है | विद्वानों ने इन लोक कथाओं के भी
अनेक विभेद किये हैं | इन लोक कथाओं को स्थानीय रंगरूप,देशकाल -
वातावरण,सामाजिक परिवेश,रस-रंग यथा हास्य,करुण,अतेन्द्रीय और अति-
मानवीयता आदि का वैशिष्ट्य इसे आकर्षक स्वरूप प्रदान करते हुए अनेक
वर्गों में विभाजित करते हैं | मुख्य रूप से विषय और प्रकृति के आधार
पर कुमाऊंनी लोककथाओं का निम्न वर्गविभाजन किया जाता है-
                 (क)व्रत कथायें-गणैशै काथ,सत्यनारायणै काथ,शिव पार्वती काथ,
आदित्यवारै काथ,हरतालिका काथ,एकादशी काथ,चण्डी चरित और विष्णु कुमारै
काथ,कुटड़ी मुया,गरीब बामण,राज विक्रमादित्य,बिरूड़पंचमी और साठूं-आठूं
 आदि |
        (ख्)साधु-संत आधारित कथायें-नागनाथ सिद्ध,ऋद्धिगिरी स्वामी,सोम-
वारी बाबा,हैड़ाखान बाबा,मोहनदास बाबा,रौखड़िया बाबा,खड़खड़िया बाबा,हर्षदेव -
 पुरी,नीम करौली बाबा तथा सुरईखेत बाबा काथ,कलबिष्ट तथा ग्वैल आदि |
        (ग)देवी-देवता सम्बधी कथायें-कुमाऊं के स्थानीय देवी देवताओं
के अतिरिक्त सार्वभौमिक देवताओं से सम्बन्धित लोककथाओं का यथा घट्कु-
द्याप्तै,जागनाथै,बागनाथै,मलुआ रैकवालै,नैनादेवी,पिंगलुवै,ग्वैल(गोलू देवता)
 और सीताबनी काथ |
        (घ)प्रकृति से सम्बंधित कथायें- बुरूंसी फूल,भिटारू फूल,प्यौली-
फूल,प्यूंलड़ी फूल,औवीन,कपुनई,मिझौल,कल्पवृक्ष,पिपल,बड़ि तथा चूंखआदि |
        (ड़)पशु सम्बन्धी कथायें- सियार और बुढिया,सदियै में वै स्याप-
रड़ो,स्यार और स्यू,स्यालै मित्यारि भालू दगाड़,मुसो और कबूतर,बाग में ढूट-
पड़,बाग ठुल या मुर,सरादक बिराउ, कुकुर,बिराऊ और ध्वड़,मगर एवं बानर,
बुड़ा बुड़ मरण बखत पुछड़ किलै जामि,गुणि बाग,स्याल और कौवा,बाग और
विराउ, शराब कसिकै वणि,हाति की काथ,ध्वड़ और भैंस,मनमंजरि और -
स्याव, स्याव और उल्लु,माछ और सारस,शेर और गधा,शेर और खरगोश ,
काव कउ,कुकुड़ी कहां,मुसि विरालि और चौसिंगि खाकर,नाग राजकुमार,
खकरमुन,मन इच्छा मुनड़ि और लाल सुड़रि आदि |
        (च) पक्षी सम्बन्धी कथायें-पुर पुतई पुरै पुरै,के करुं प्वथी के -
करूं,आजि उतिकै आजि उतिकै,घट को छ, गुज्या लाट्टो, काफल पाक्कौ-
मैल नि चाक्खो,भै भुक,मैं सिति,दिन दिदी जाग-जाग,तीन तितरी तीन-
तीन,रीस ख्वै आपण घर,भिणकनू और पौंई बल्द,एक कावक नौ काव,गू -
नि खूं गू नि खूं गू न खै कि खूं,उठ किर्ती दे सुर्ति,तिसमोली तीस तीस ,
मैं जली,मैं मरी तीन रवाटै फिफरी, जूं हो जूं हो,भोल-भोल,पकड़-पकड़,
मोतिया रौ रौ,घुघूति-बासूति, तुम को छा,होठ-होठ,कुकुलि दी पान-पान,
सर्ग दिदी पाणि-पाणि और को ह्वै को हवै,पशु-पक्षिनैकि बोलि आदि-आदि |
                 (छ)भूत-प्रेत आदि से सम्बन्धित कथायें- उत्तराखण्ड के कोने-
कोने में उजाड़,सुनसान और डरावने स्थानों की भरमार है जहां बच्चे तो -
बच्चे बड़ों को भी अकेले जाने में भय लगता है | अतः इन स्थानों और
इन स्थानों पर निवास करने वाले भूत प्रेतों की परिकल्पना का कुमाऊंनी
लोक कथाओं में प्रचुर स्थान है | कुमाऊं के वन,वृक्ष,नौले,पनचक्की,नदी,
गाड़-गधेरे,चोटी,पहाड़,श्मशान,ताल-तलैया आदि से सम्वन्धित सैकड़ों -
लोक कथायें कुछ अच्छी-कुछ बुरी आत्माओं पर आधारित प्रचलित हैं |ये
कथायें क्षेत्रानुसार अपना कथानक और कथ्य शैली बदलती रहती हैं |अल्मो-
ड़ा नगर के आस-पास के क्षेत्र में अन्यारिकोटक्,कन्टूनमेन्ट भूत,उस्मानि-
फील्डकि चुड़ैल,सिलक भूत,खजान्ची मुहल्लकि चुड़ैल,गलकट्टा भूत,सुनार
मुह्ल्लक चुड़ैल,गुज लाट,हत्कट्भूत,डुन भूत और भटकती प्रेतात्मा आदि |
इसके अतिरिक्त राज कुमार और दैत्य,राक्षस और दैत्य आदि से सम्बन्धित
प्रेत और चार स्यैणि,प्रेत और राज कुमरि,प्रेत्क च्यल,स्यापकि सैणि,राज-
कुमार और दैत्य,दैत्य और जादूगरनी,हिटणि-बोलणि लाश,झकरू भूत,सात
संगलिया,बेताल,एक खुटिया भूत,बंडा का भूत,बहुरूपी,सात परी और जटाधारी
 आदि विभिन्न क्षेत्रों में प्रचलन में है |
         (ज्)मानव और उससे सम्बन्धित अन्य कथायें-
                  मानवजीवन के विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित,विभिन्न जीवन
रसों से आच्छादित,मनोरंजक परिवेश और जीवन की सामान्य घटनाओं  पर
आधारित कर्णप्रिय कथाओं का एक विशाल समुच्चय भी कुमाऊंनी लोक कथा
भंडार की अपनी एक अलग विशेषता रही है |इस वर्ग में भाग्गिवान मूर्ख,-
तीन मूर्ख,मूर्ख सौकार(साहूकार),दन्दना वैणी,पिनकट्टा पांण्डे,जुतै कसि भै,
एक मूर्खै काथ,जोगिकि सीख,भगवान दिछ तो छप्पर फाड़ि वै दिछ,पतिव्रत
सैणि,द्वी चालाक चोर, अमूल्य सीख,भद्रा चक्कर मि,साधुकि सीख,सबहै -
प्रिय चीज, इमानदार हाकिम,चल चल तुमड़ि बाटै बाट मैं कि जानूं बुड़ियै-
बात, लछी कुटरिक च्यल,परियोंकि काथ,बुद्धूनाथ,आदिम कसि बणौ,आदिमै
उमर सौ बरस किलै,तीन अल्सिनै काथ,धरम बुद्धि-पाप बुद्धि,आठ रोटि सोल
छयां चार यां चार कां,धाना गुरू भितेर चांव्लांक गुद,धन बहादुरैकि कुस्ति,-
जालि बचीराम ज्यु, जतुक मुख- उतक बात,लालचक फल भल नि हुन,-
मरीं पितर आव किलै नि लौटन, अघिलै लाकड़ि जलि पछिलै ऊंछ,धोति -
निचोड़ि मौत्यूं मिल,गीता रस,रीस ख्वै आपण घर-बुद्धि ख्वै पराई घर ,
एक राजक द्वि सींग,तीन खाटैकि फिफिर,गौताक इजर में सांपल,सौतेलिइज,
को छै रे तू भात भतकूनेर,रोटि गिण-गिण गण तुवा भौछै,काठै पाटू,राज-
कुमारै काथ,राज कुमारी काथ,सात भै,सात वैणि,सात सौत,घागरिक टाल,
जस कैं तस,द्वी भाई इत्यादि से कुमाऊंनीलोककथाओं का संसार समृद्ध है |
इनमें नीति,संदेश,शिक्षा,संप्रेषणीयता,बोधगम्यता आदि की दृष्टि से एक
विशिष्टता का पुट इन्हें कुमाऊंनी लोक साहित्य की एक श्रेष्ठ और समृद्ध्
विधा सिद्ध करता है |वस्तुतः कुमाऊंनी गद्य-साहित्य इन लोक कथाओं
में अपना सम्पूर्ण वैभव कसा सौष्टव लेकर झलकता है | सहजता,सर-
लता और मनोरंजन से परिपूर्णता इन्हें लोक साहित्य की अन्य विधाओं
से अधिक प्रभावी और लोकप्रियता प्रदान करने में सहायक सिद्ध होते हैं|
        इन लोककथाओं में कुमाऊं के पर्वतीय लोक जीवन,पर्वतीय
सामाजिक परम्पराओं,पर्वतीय लोकरीतियों,पर्वतीय परिवेश और प्रकृति
की सटीक अभिव्यक्ति झलकती है | यद्यपि कुमाऊंनी लोक कथाओं  में
भी वही कथा अभिप्राय समन्वित है जो भारत की अन्य बोलियों और-
भाषाओं में होता है किन्तु कुछ लोककथायें कुमाऊंनी परिवेश के कारण -
अन्य भारतीय लोककथाओं से बिल्कुल हट कर अस्तित्व बनाती हैं |
               यूं तो लोककथा कहीं की भी हो वह कथारस से सराबोर होती ही है
लोकक्था से भिन्न कथासाहित्य विद्वत्ताप्रदर्शन के पाखण्ड(अनावश्यक विद्वत्त्ता
प्रदर्शन)से अथवा विचारों के थोपनभार से या फिर विसंगति के कारण कथारस
अत्यल्प कर उसे नीरसता की सीमा में ला छोड़ते हैं किन्तु लोककथा में यह
विशेषता होती है कि वह चाहे उपदेशात्मक हो,धार्मिक हो या फिर कोई रहस्य
उदघाटक हो तब भी उसका कथारस रंचमात्र कम नहीं होता |विभिन्न प्रकार
के चमत्कार,संयोग,कल्पना और बुद्धिचातुर्य इसे मनभावन और आकर्षक -
स्वरूप प्रदान करने के सहायक तत्व बनते हैं विशुद्ध कल्पना पर आधारित -
लोककथा भी जीवन से जुड़ी और सत्यता के सन्निकट प्रतीत होती है |कथा
की कल्पनाशीलता को श्रोता अस्वाभाविक मानकर नकारता नहीं अपितु उसमें
अद् भुत रस की परितृप्ति पा लेता है|वहीं लोककथा में उपदेशों की तीव्रता भी
कथा में चाशनी की तरह भरे औत्सुक्य के कारण श्रोता को एक आनन्द  ही
देती है,बोर नहीं करती | वस्तुतः लोक और समाज के बहुत से तथ्यों  का
संज्ञान और परिज्ञान बालक को लोक कथायें ही कराती हैं|कुमाऊं में प्रचलित
सभी लोककथाएं कथारस एंव लोककथा के अन्य आवश्यक तत्वों से परिपूर्ण
और निर्धारित मानकों के सर्वथा सन्निकट होने के कारण आज भी वही  -
ताजगी और तरुणता लिये हुए हैं जो अब से सैकड़ों साल पहले लिये थीं |
 
                 -dhanvarsha,Hanumaanmandir,Khatimaa-262308(u.k.)
                                   Mob. 09410718777

       

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