बुधवार, 29 अगस्त 2012

काव्यान्जलि


       काव्यान्जलि
              - डा.राजसक्सेना
हे बाल काव्य के 'बाल'दूत,
साहित्य विधा के'शौरि'श्रेष्ट |
हे ब्रह्म'रेडिड्',सम्पाद - दक्ष,
आदित्य-रूप, हे सर्व-श्रेष्ट |

रक्षक बन 'चन्दा - मामा' के,
पच्चीस वर्ष जगमग करके |
बन गए बालसाहित्यशिखर,
अनुपमतम-सम्पादन करके |

पैरों पर अपने खड़ा किया,
भूलुण्ठित बाल विधाओं को |
साहित्य जगत में स्थापित,
कर दिया नवल सीमाओं को |

हे बाल सृष्टि-साहित्य जनक,
इतिहास आपने रच डाला |
दोयम दर्जा,  जो रहा सदा,
समकक्ष 'अन्य' के कर डाला |

नवजीवन दे  बालविधाओं को,
श्रीमय कर वैभव पूर्ण किया |
करदिया आपने उज्जवलतम,
गरिमामण्डित-सम्पूर्ण किया |

आभारी हैं हम, नर - पुंगव -,
गुणगान  आपका  गाते हैं |
ले श्रेष्ट-सोच,  सादा - जीवन,
नित श्रेष्ट आप बन जाते हैं |

'श्रद्धेय आपने , ' रेडडी '   जी  ,
स्वर्णिम - इतिहास बनाया है |
जो नहीं कर सका था कोई,
वह ही करके दिखलाया है |

कर - वद्ध निवेदन प्रभु से है,
सौ-सौ वर्षों तक जियें आप |
कुछ और रचें मानक नितनित,
शतशत कमलों से खिलें आप |

-धनवर्षा,हनुमान मन्दिर,
खटीमा-262308 (उ.ख.)
मोबा.- 9410718777

गुरुवार, 2 अगस्त 2012

हिस्सा बनो मत भीड़ का


 हिस्सा बनो मत भीड़ का
          - डा.राज सक्सेना
अवसर मिले नेतृत्व लो,
हिस्सा बनो मत भीड़ का |

हो नहीं तुम आमजन में,
हो यहां सबसे अलग |
तुम चलाओगे व्यवस्था,
आम लोगों से अलग |

छवि  मसीहा  की  बना-,
कारण बनो मत पीड़ का |
अवसर मिले नेतृत्व लो,
हिस्सा बनो मत भीड़ का |

क्या समस्या है यहां पर,
हल न कर पाओ जिसे ?
तोड़  पर्वत   राह   का  ,
समतल बना जाओ उसे |

लहलहाएं  बस्तियां -,
अंकुर उगे नित नीड़ का |
अवसर मिले नेतृत्व लो,
हिस्सा बनो मत भीड़ का |

है जरूरत'राज'जग को,
एक ऐसे मंत्र  की |
एक चुट्की में करे हल,
यातना हर तंत्र  की |

मत बनो उप अंग कोई,
रूप लो तुम रीढ का |
अवसर मिले नेतृत्व लो,
हिस्सा बनो मत भीड़ का |