शनिवार, 30 जुलाई 2011

gantantra hmara

       गणतन्त्र हमारा
                - डा.राज सक्सेना

भिन्न सभी से सबसे न्यारा,भारत का गणतन्त्र हमारा |
बना विश्व में श्रेष्ठ सभी से,हमें जान से है ये   प्यारा |

छब्बीस जनवरी का स्वर्णिमदिन,लेकर खुशियां आया अनगिन |
इस दिन से मुडकर न देखा, करता देश तरक्की  प्रति-दिन |
देख रहा विस्मित जग सारा,भारत का गणतन्त्र हमारा |

अंतिमजन तक किया सम्रर्पित,किया प्रशासन जन को अर्पित |
दलित-शोषितों को नियमों से,मिलीं शक्तियां श्रेष्ठ  अकल्पित |
हर घर तक पहुंची यह धारा,भारत का गणतन्त्र हमारा |

हुई शक्तियां संवैधानिक , लिखित हो गयीं सब अधिकाधिक |
संविधान अतिश्रेष्ठ बना कर, संसद से करवाया     पारित |
जग में ज्यों चमका ध्रुव तारा,भारत का गणतन्त्र हमारा |

शासन जन का जन के द्वारा,है सशक्त जनप्रतिनिधि हमारा |
नियम बनाना,राज चलाना , संसद में सिमटा बल  सारा |
शासक-शासन सभी संवारा ,भारत का गणतन्त्र हमारा |
   धनवर्षा,हनुमान मन्दिर,खटीमा-२६२३०८(उ०ख०)
      मो. ०९४१०७१८७७७

शुक्रवार, 29 जुलाई 2011

baal dohe aur ashaar-2

कहां की बात को लाकर,कहां पर रख दिया तुमने |
यहां पर शब्द का दरिया,बहा कर रख दिया तुमने |
बडे आसान शब्दो में,कही हैं कुछ कठिन   बातें-,
कहां से भाव लाए हो, हिला कर रख दिया तुमने |

ये नन्हे तीर कविता के,दिलों पर वार करते हैं |
युगों की वर्जनाओं का,सरल   संहार  करते हैं |
न इन पर शब्द ज्यादा हैं,न भावों की कोई गठरी,
मगर फिर भी नए युग की,फसल तैयार करते हैं |
     धनवर्षा,हनुमान मन्दिर,खटीमा-२६२३०८
      मो.- ०९४१०७१८७७७

baal dohe aur ashaar

       बाल कविता पर दोहे और अशआर 
                          - डा.राज सक्सेना

निर्मल-निश्छल आंख में, सपने बन परिलेख |
कालजयी हो जाएगा , इनका हर   अभिलेख |

शब्द चित्र रचते मगर , शब्द जाल से दूर |
शब्दों में शब्दान्वित , निहित शब्द भरपूर |

         -०-

उतर गहराई में मन की, विरल सी कल्पना है ये |
कहें कविता इसे कैसे, अचेतन अल्पना   है   ये |

कठिन पान्डित्यप्रदर्शन, नहीं है बाल कविता में |
अहं के दर्प का दंशन,  नही है बाल कविता में |
ये सपनों का समर्पण है, जो भोली आंख ने देखे,
किसी कवि दर्प का दर्शन,नहीं है बाल कविता में |

जहां तक हम नहीं पहुंचें, वहां तक ये पहुंचते हैं |
हमारे दिल के दर्दों से, नयन इनके छलकते हैं |
हम अपने स्वार्थ कविता में,न चाहे डाल देते हैं,
ये कविता में अचेतन सी,महक बनकर मह्कते हैं |

अलंकारिक नहीं भाषा, न भावों का पुलिन्दा है |
प्रसंशा से परे है ये, न इसमें कोइ  निन्दा है |
सरलभाषा मे दिलपर ये,लिखा करते हैं भावों को,
ये पिंजरे में नहीं पलता, खुले नभ का परिन्दा है |

है निमर्ल गंध सी इसमें,जो शब्दों में महकती है |
है भावों की विरल गंगा,जो छन्दों मे छलकती है |
सरलता सौम्यता का ये,अनूठा एक संगम है-,
मगर कविता में छुपकर एक चिंगारी दहकती है |

ये नन्हे कवि,कहीं से खींचकर कुछ इत्र लाते हैं |
अनोखी कल्पना,भावों की सरगम मित्र लाते हैं |
ये अनगढ हैं मगर इनमें बड़ी प्रतिभा झलकती है-,
ये शब्दों से रचे अपने, अनोखे  चित्र लाते  है |

dhamki dekar

             धमकी देकर 
                    - डा.राज सक्सेना
               बना दो यह सम्भव हे राम |
धमकी देकर डंसते कैसे, ये मच्छर बदनाम |
कान अगर मिलते हाथी से, कितने आते काम |
             बना दो यह सम्भव हे राम |
यदि जिराफ सी गर्दन होती,हम खजूर खा आते,
सबसे ऊंची डाल पे लटका,सेब तोड़ कर   खाते |
घर में बैठे-बैठे खाते,    छत पर पड़े बादाम |
              बना दो यह सम्भव हे राम |
सारस सी टांगें मिल जातीं,ओलम्पिक में जाते ,
पदक जीतकर सभी दौड़ के,हम भारत जब आते |
एरोड्रम पर करने आते, हमको सभी  सलाम |
              बना दो यह सम्भव हे राम |
पेट जो मिलता ऊंट सरीखा, जब दावत मे जाते,
पन्द्रह दिन का खाना खाकर्,घर वापस हम आते |
हफ्तों-हफ्तों करते रहते,    घर में ही आराम |
              बना दो यह सम्भव हे राम |
बन्दर जैसी तरल चपलता,थोड़ी सी पा   जाते ,
छीन कचौड़ी मां के कर से,बैठ पेड़ पर   खाते |
बदले में मां को ला देते, पके डाल के   आम |
              बना दो यह सम्भव हे राम |
गरूण सरीखे पर मिल जाते, विश्व घूमकर आते,
दिल्ली से न्युयार्क मुफ्त में, निशिदिन आते-जाते |
एयर टिकिट न लेना पड़ता, खर्च न  होते दाम |
              बना दो यह सम्भव हे राम |

   धनवर्षा,हनुमान मन्दिर ,खटीमा-२६२३०८ (उ०ख०)

गुरुवार, 28 जुलाई 2011

suraj tum kyon roj nikalte


       सूरज तुम क्यों रोज निकलते
                      डा.राज सक्सेना
सूरज तुम क्यों रोज निकलते,छुट्टी कभी नहीं क्यों जाते |
सातों दिन छुट्टी पर रह कर,नियमों की क्यों ह्सीं उड़ाते |
भोर हुई मां चिल्ला उठती ,उठ बेटा सूरज उग आया-,
आंखें खोलो झप्-झप जातीं,सिकुड़ सिमट अलसाती काया |
सिर्फ तुम्ही हो जिसके कारण,नींद नहीं पूरी हो पाती,
क्लास रूम में बैठे-बैठे , अनचाहे झपकी आ जाती |
सूरज तुम स्वामी हो सबके, नियमों का कुछ पालन करलो |
एक दिवस बस सोमवार को,छुट्टी तुम निर्धारित करलो |
नहीं उगे तो छुट्टी अपनी, सण्डे संग मण्डे की होगी,
जीभर सो ले दो दिन तक तो, फिक्र नहीं डण्डे की होगी |

संभव ना हो किसी तरह ये, इतना तो तुम कल से करना,
थोडा सो लें अधिक देर हम, कल से तुम नौ बजे निकलना |
   धन वर्षा,हनुमान मन्दिर, खटीमा-२६२३०८ (उ०ख०)
    मोबा०- ०९४१०७१८७७७

बुधवार, 27 जुलाई 2011

kaisamama kiska maamaa

           कैसा मामा किसका मामा
                                     - डा. राज सक्सेना 
कैसा मामा किसका मामा,चंदा लगता किसका मामा  |

क्या मामा धरती पर आया ,क्या आकर हमको दुलराया ,.
साथ ले गया कभी गगन में,तारा मंडल भी दिखलाया !
झूठ बोलते खा -मो -खामा,कैसा मामा किसका मामा !

कभी नहीं बाज़ार घुमाया, कभी नहीं पिज्जा खिलवाया,
न बन्दर सी खों-खों करके,जब रोते हम कभी हंसाया !
फिसले तो ना बाजू थामा,कैसा मामा किसका मामा !

कभी नहीं जंगल दिखलाया,ना भालू से कभी मिलाया,
गिफ्ट नहीं कोई दिलवाई,नहीं कथा किस्सा सुनवाया !
ना ढपली न सा रे गा मा,कैसा मामा किसका मामा !

मामा के संग बुढ़िया आती ,साथ एक चरखा  भी लाती,
हमें नई नानी मिल जाती,मौज हमारी तब बढ़ जाती !
खादी का  सिलती पजामा,कैसा मामा किसका मामा !

मामा है तो अब भी आये,अपने रथ पर हमें बिठाये,
दूर गगन की सैर कराकर,अच्छी-अच्छी कथा सुनाये !
और अधिक न दे अब झामा ,कैसा मामा किसका मामा !

    -धन वर्षा ,हनुमान मंदिर,खटीमा-262308 (उ.ख)
      मो.- 09410718777

ye taare sab khote

           ये तारे सब खोटे
                   - डा. राज सक्सेना 
एक दिवस तारे सब मिलकर,
चंदा के घर  आये |
चंदा की मम्मी से सबने,
मीठे बोल सुनाये |

मम्मी तुम चंदा भैया का,
ध्यान नहीं कुछ रखतीं,
इतना बड़ा हो गया फिर भी,
ब्याह नहीं क्यों करतीं |

क्यों बूढा करतीं भैया को,
जल्दी ब्याह  करा दो |
सुन्दर सी एक नई नवेली ,
उसको दुल्हन ला दो |

चन्दा की मम्मी सुन बोली,
कैसे ब्याह  करादूं |
घटे बढे जो रोज  इसी सी,
दुल्हन कैसे ला दूँ |

दिवस अमावस का जब होगा,
कैसे सबर करेगी |
साथ इसी के वह कोमल भी, 
हर क्षण सफ़र करेगी  |

ये है पुरुष नियति है इसकी,
अजब  खेल  यह खेले |
पर जो बंधे साथ में  इसके,
वह क्योँ यह सब झेले |

सुन संतुष्ट हुए तारे सब, 
अपने घर सब लौटे |
चन्दा ने माँ पर भेजे थे,
ये तारे सब खोटे |

    -धन वर्षा, हनुमान मंदिर,
खटीमा-262308 (उ.ख)
मो.  09410718777