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ममता
बाल गंगा
डा.राज सक्सेना
गणेश जी की फोटो
ममता प्रकाशन,हनुमान मन्दिर,
खटीमा-२६२३०८(उत्तराखण्ड)
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कठिन पान्डित्यप्रदर्शन,नहीं है बालगंगा में |
अहम् के सर्प का दंशन,नहीं है बालगंगा में |
ये सपनों का समर्पण है,जो भोली आंख ने देखे,
किसी कविदर्प का दर्शन्,नहीं है बालगंगा में |
-डा.राज सक्सेना
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समर्पण
'बाल गंगा' का समर्पण,
आपको , श्री-मान है |
है नहीं संजाल शब्दों का,
हृदय का गान है |
बालकविता , काव्य का-,
मुझको नहीं कुछ ज्ञान है |
किस तरह रस-छंद डालूं,
यह् नहीं संज्ञान है |
बालपन में लौट कर जो-,
कुछ स्वंय अनुभव किया |
भाव वह मैंने यथावत ,
हर समर्पण कर दिया |
किंचित नहीं,मैं भिज्ञ हूं,
किस भाव से दूं आपको |
मित्रवत ही भेंट है यह ,
बाल और गोपाल को |
आप चाहें तो हृदय,
इस को लगा कर तार दें |
खुद पढें, सबको पढा कर,
एक नया विस्तार दें |
-डा.राज सक्सेना
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'आमुख'
'ममता बाल गंगा'लेकर,एक बार फिर बच्चों के सम्मुख उपस्थित है | डा०राज-
किशोर सक्सेना'राज'जो अब 'डा० राज सक्सेना' के साहित्यिकनाम से लिख रहे हैं,बाल-
काव्य को समर्पित रचनाकार हैं | इन्होंने बहुत बाद में, जीवन के उत्तरार्ध में, सेवानिवृति
के बाद बाल काव्य क्षेत्र में पदार्पण किया, किन्तु अपनी अनवरत साधना के बल पर, बाल-
काव्य-संसार में, शीघ्र ही अपनी पुष्ट पहचान बना ली है | डा० सक्सेना ने स्वच्छन्द भाव
से बाल काव्य-सृजन किया है, बाल- काव्य के शास्त्रीय- पक्ष की चिन्ता इन्होंने
कभी नहीं की |
'ममता बालगंगा' सक्सेना जी की छठी बाल काव्य कृति है | जिसमें इनके कुल
पैंतीस बाल गीत हैं और कवितायें संग्रहित हैं | इन बाल काव्य रचनाओं की भाव गंगा में
कहीं कल्पनाओं की सुन्दर मछलियां तैरती दिखाई देती हैं, तो कहीं विचारों के मनमोहक
मोती अपनी चमक बिखेरते दिखते हैं | बिभिन्न बालोपयोगी बिषयों पर चर्चित इन कविताओं
में रोचक बिषय-वैविध्य है | इनमें कहीं हिन्दू-मुस्लिम विभेद का प्रश्न उठाया गया है,तो-
कहीं हिमालय की महिमा वर्णित है; कहीं जन्म दिन का उल्लास है,तो कहीं बाल दिवस की
मस्ती, कहीं बाल सुलभ जिज्ञासाएं हैं,तो कहीं ट्रैफिक रूल्स एवं आदर्श दिनचर्या की बातें,कहीं
विज्ञान-सम्बन्धी उपकरणों का विवरण है,तो कहीं महापुरूषों की महिमा का वर्णन | गांधी जी
के बन्दरों को भी कवि नहीं भूला, क्योंकि-
गांधी जी के तीनों बन्दर,
बैठे बाल पार्क के अन्दर |
सुख से जीवन को जीने के,
बांट रहे हैं सबको मन्तर |
काव्य हो या बाल काव्य, सक्सेना जी दोनों को सोद्देश्य मानते हैं | इनमें मनो-
रंजन के साथ-साथ जीवनोपयोगी सन्देश का होना आवश्यक है, बाल काव्य के लिये तो यह
और भी जरूरी है | जिस बाल काव्य में बच्चों के लिये उचित शिक्षा, ज्ञान का सन्देश न हो,
वह उनके किस काम का, इसी लिये, प्रस्तुत संग्रह की अनेक कविताओं में, कोई न कोई
सन्देश निहित है | उदाहरण के लिये 'समय चक्र' कविता का सन्देश है-
उठो,समय के साथ चलो अब,
व्यर्थ न बीते समय कहीं |
ठीक समय पर,ठीक जगह पर,
काम संवारे, सही वही |
बच्चों की रूचि, उनके स्तर और मनोविज्ञान का भी ध्यान कवि,डा० सक्सेना ने
रखा है | अधिकतर कविताओं के बिषय बाल-जगत से जुड़े हैं | अतः कहीं-कहीं कठिन
शब्दों के प्रयोग के बावजूद्, पुस्तक रोचक एंव बालोपयोगी ही कही जायेगी |
( डा०राम निवास मानव )डी.लिट
७०६,सैक्टर-१३,हिसार-१२५००५
( हरि० )
फोन-०१६६२ २३८७२०
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समीक्षा बाल गंगा
‘बाल गंगा‘ डाॅ० राज सक्सेना द्वारा रचित बाल गीतों का संकलन है
जिसके समर्पण में सक्सेना जी ने लिखा है-
बाल गंगा का समर्पण आपको श्रीमान है,
है नहीं संजाल शब्दों का,
हृदय का गान है।
बालपन में लौटकर जो कुछ स्वयं अनुभव किया,
भाव वह मैंने सशक्त हर समर्पण कर दिया।
बालगंगा में लगभग 110 बालगीत संग्रहीत हैं। निश्चय ही यह रचनाएंे
उन्हीं अनुभवों को आधार बनाकर लिखी गई हैं जिसे हर आदमी ने
अपने बचपन में कभी न कभी जिया है। इन बाल गीतों में बचपन के
अनेक रंग हैं। हर बच्चे को स्कूल जाने का झंझट परेशान करता है।
सक्सेना जी ने लिखा है-
‘सूरज तुम क्यों रोज निकलते
छुट्टी कभी नहीं क्यों जाते
भोर हुई माँ चिल्ला उठती
उठ बेटा सूरज उग आया
आँखें खोलो झप-झप जातीं
सिकुड सिमट अलसाती काया‘
अपने घर को देखकर हर किसी ने बचपन में सोचा होगा कितना अच्छा
होता कि घर में पहिए लगे होते जहाँ मन चाहा उठा ले जाते-
‘माँ पहिए लगवाले घर में
सचल भवन हो जाएगा
पापा रखलें एक ड्राडवर
जो हर जगह घुमाएगा‘
पुराने नाते नए विचारों के साथ कैसा अनूठा प्रयोग है-
कैसा मामा, किसका मामा
चंदा लगता किसका मामा
×××××××××××××××
कभी नहीं बाजार घुमाया
कभी नहीं पिज्जा खिलवाया
न बन्दर की खों-खों करके
जब रोते हम कभी हंसाया′
मगर इन गीतों में केवल मनोंरजन ही नहीं है बल्कि इनमें ज्ञान विज्ञान
के भंडार को बड़ी सहजता से प्रस्तुत किया गया है जिसे बच्चे बड़ी
आसानी से ग्रहण कर सकते हैं। विज्ञान कुंडलियाँ इनका श्रेष्ठ उदाहरण हैं-
′गाड़ी पर उल्टा लिखा एम्बुलैंस क्यों मित्र
आगे गाड़ी जा रही मिले मिरर को चित्र
मिले मिरर को चित्र सदा उल्टा आएगा
सीधा लिख दे अगर पढ़ा कैसे जाएगा
कहें ‘राज कविराय‘ इसी से उल्टा लिखते
वैकव्यु मिरर में देख उसे हम सीधा पढ़ते′
डाॅ० राज की विज्ञान कुंडलियाँ उनके विज्ञान संबंधी ज्ञान को दर्शाती हैं।
बाल गंगा में बालकों के ज्ञानबर्द्धन के लिए उनसे संबंधित सभी विषयांे
पर बड़ी सरल, सहज भाषा में लेखनी चलाई गई है। माँ सरस्वती की वंदना,
उज्जवल उत्तराखण्ड से प्रारम्भ से एक सवाल-हिन्दु,मुस्लिम क्या होते हैं?
हिमालय, नहीं समझते कम, आज सुना एक नई कहानी, बाल दिवस पर
सुनले नानी-रविवार शीर्षक से कविताएं हैं। आज़ादी सुन मेरी बात, में बच्चे
अमीरों के नहीं गरीबों के भी हैं जो झोपडियों में रहते है उनके दर्द को बड़ी
खूबसूरती से शब्दों में पिरोया है-
‘ये स्लम बस्ती है भारत की इसको सब कहते हैं कलंक
कितनी कोठी खाली सूनी-दिन रात यहा मनता बसन्त
परिवार आठ का रहता है एक आठ-आठ के कमरे मंे
पीढ़ी कमरे में जनी गई त्यौहार मने सब कमरे में‘
एक से एक बढकर कविताएं हैं। दुखियों पर दया, तीनों बन्दर, जन्म दिवस,
आदर्श दिन-चर्या, बच्चों को नैतिक शिक्षा प्रदान करती हैं। गौरेया, हरित बनाएं,
पेड न होते, पर्यावरण संबंधी कविताएं हैं। गणतंत्र दिवस, बाल दिवस, कथा
शहीद ऊधम सिंह की, चन्द्रशेखर आज़ाद मंे राष्ट्रीयता के स्वर हैं।
सभी गीत सरल, सुबोध भाषा में रचे गए हैं जिनमें प्रचलित शब्दांे को भले
ही वह वैज्ञानिक शब्दावली के हों के साथ यथावत प्रस्तुत किया है जिन्हें बच्चे
आसानी से समझ सकते है। गीतों में लयात्मक एवं ध्वन्यात्मकता का सम्पूर्ण
ध्यान रखा हैं। बाल गंगा के सभी गीत नवीन विचार शैली लिए हुए उत्कृष्ट कोटि हैं।
बाल साहित्य के भंडार को समृद्ध करने के लिए राज सक्सेना को हृार्दिक बधाई।
सभी विद्यालयों में बाल गंगा पुस्तक संजोई जाए ऐसा मेरा अभिमत है।
स्नेह लता
1/309,विकास नगर, लखनऊ
मो०नं० -9450639976
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भूमिका
'बाल गंगा' ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया कि डा.राज सक्सेना एक श्रेष्ठ बाल -
साहित्यकार हैं | हिन्दी बाल साहित्य की समृद्धि में उनका योगदान प्रशंसनीय है |
'बाल गंगा' में सक्सेना जी ने प्रत्येक आयुवर्ग के लिये श्रेष्ठ बाल कविताओं का -
सृजन किया है | उन्होंने बाल मनोविज्ञान को ध्यान में रखते हुये बालकों की रुचि, प्रवृति-
और स्वभाव के अनुकूल लेखन किया है | उनकी बालकविताओं से जहां बच्चों का मनो-
रंजन होता है,वहीं उनका ज्ञानवर्द्धन भी होता है |बच्चों को संस्कार सम्पन्न बनाना और -
उनमें सद्-गुणों को विकसित करना उनका परम-पुनीत ध्येय और उद्देश्य है |
पूर्व में उनकी पांच बहु-बालोपयोगी कृतियों का प्रकाशन हो चुका है | उसी श्रंखला
में 'ममता बाल-गंगा' का प्रकाशन स्वागत योग्य है |
सक्सेना जी ने भावों और बिषयों का वैविध्यपूर्ण सम्यक चयन किया है |उनकी
रचनाओं में नवीनता और मौलिकता के दर्शन होते हैं | उन्होंने पुरानी बातों को भी नये
वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ प्रस्तुत किया है | मातृभूमि और मातृभाषा के प्रति प्रेम, राष्ट्री-
यता की भावना, राष्ट्रीय एकता की कामना अनेक बाल-गीतों में अवलोकनीय है | उत्तरा-
खण्ड और हिमालय की महिमा का गान किया गया है | हिमालय शीषर्क कविता की कुछ
पंक्तियां उद्धरणीय हैं -
भारत मां के राजमुकुट सा,
सर पर जड़ा हिमालय |
जय जवान सा रक्षक बनकर,
तत्पर खड़ा हिमालय |
गणतंत्र -दिवस, बाल- दिवस और जन्म-दिवस सम्बन्धी बाल-कविताओं को
भी संग्रह में सम्मिलित किया गया है | बच्चों को अपने जन्म-दिन पर प्रसन्नता की अ-
नुभूति होती है | इस दृष्टि से 'जन्म दिवस' कविता का एक अंश विशेषरूप से उल्लेखनीय
है-
जन्म दिवस की तुम्हें बधाई,
जियो सैकड़ों साल |
जीवन हो पल-पल आनन्दित,
हो उन्नत नित भाल |
प्रकृति और जीव जगत को भी सक्सेना जी ने अपनी बाल कविताओं का विषय
बनाया है | जिससे बच्चे प्रकृति से प्रेम कर सकें और जीव-जन्तुओं से परिचित हो सके |
'चिड़िया' शीर्षक रचना की ये पंक्तियां दृष्टव्य हैं-
दूर गगन से आती चिड़िया,
सबके मन को भाती चिड़िया |
मीठी तान सुनाती चिड़िया,
मधुर स्वरों में गाती चिड़िया |
पर्यावरण-संरक्षण के लिये वृक्षारोपण का महत्व बताते हुये बच्चों को पौधे लगाने
के लिये भी प्रेरित और प्रोत्साहित किया गया है-
नया वर्ष इस तरह मनाएं,
पूर्ण नगर नवहरित बनाएं |
नये-नये हितकारी पौधे,
हर घर में इस वर्ष लगाएं |
कवि ने महापुरूषों का वन्दन अभिनन्दन करते हुए उनके उज्ज्वल चरित से शिक्षा
ग्रहण करने की प्रेरणा प्रदान की है | कुछ पंक्तियां उद्-धरणीय हैं-
हे शीर्ष शिखर आजादी के,
स्वीकार करो शतशत प्रणाम |
हो सर्वश्रेष्ठ बलिदानी तुम्,
भारत भर में हो श्रेष्ठ नाम |
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बच्चों के नियमित विकास में आदर्श-दिनचर्या का विशेष महत्व है | अतः इस
विषय पर बाल कविता का सृजन रचनाकार ने उपयुक्त समझा है | उसका कथन है -
सुबह-सवेरे उठना बेटा,
हल्की कसरत करना बेटा |
कल का पढा पुनः दोहराओ,
आज है पढना नजर फिराओ |
फिर शाला की करो तैयारी,
बैग ढंग से पुनः लगाओ |
आज के वैज्ञानिक और लोकतन्त्रात्मक शासन प्रंणाली के युग में बालक नवीन
बिषयों पर केन्द्रित कहानी सुनना चाहते हैं | उनका निवेदन है-
आज सुना एक नई कहानी,
चांद सितारे , परी सुहानी |
कान पके यह सुनते-सुनते,
नहीं सुनेंगे चुप जा नानी |
आज सुना एक नई कहानी |
हिन्दी के महत्व को भी कवि ने रेखांकित किया है -
भाषा कम्प्यूटर की हिन्दी है,
यह स्वंय सिद्ध हो जाता है |
हिन्दी-प्रयोग से संचालन जब-
स्वंय सिद्ध हो जाता है |
सभी कविताएं पठनीय एंव स्मरणीय हैं | छन्द-बद्ध्ता के कारण इनमें गेयता
का गुण विद्यमान है | इनमें संगीतात्मकता भी है | भाषा सरल एंव सुबोध है | शब्दचयन
उत्तम है | तत्सम परिष्कृत शब्दों के अर्थ जानकर बच्चों का शब्द ज्ञान भी बढेगा | पुस्तक
बालकों एंव किशोरों दोनों के लिए उपयोगी है |
'ममता बाल-गंगा' की रचना के लिये कविवर डा.राज सक्सेना बधाई के -
पात्र हैं | उन्हीं के शब्दों में कहा जा सकता है -
कठिन पाण्डित्य प्रदर्शन्,
नहीं है बाल - गंगा में |
अहं के सर्प का दंशन ,
नहीं है बाल-गंगा में |
ये सपनो का समर्पण है,
जो भोली आंख ने देखे,
किसी कवि दर्प क दर्शन,
नहीं है बाल -गंगा में |
मैं राज जी के उज्ज्वल रचनात्मक भविष्य की मंगल कामना करता हूं |
'विनोद वाटिका', विनोद चन्द्र पाण्डेय 'विनोद'
सी १०,सेक्टर जे(जागृति विहार) पूर्व निदेशक,
अलीगंज उ०प्र० हिन्दी संस्थान लखनऊ -
लखनऊ - २२६०२४ उत्तर प्रदेश
मो.- ९४१५७६३२९०
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उन्नत,उज्ज्वल,उत्तराखण्ड
भरत-भूमि,भव-भूति प्रखण्ड |
उन्नत, उज्ज्वल, उत्तराखण्ड |
सकल-समन्वित,श्रमशुचिताम |
शीर्ष-सुशोभित, श्रंग-शताम |
विरल-वनस्पति, विश्रुतवैभव,
पावन,पुण्य-प्रसून, शिवाम |
हरित-हिमालय,हिमनदखण्ड |
उन्नत, उज्ज्वल, उत्तराखण्ड |
नन्दा, नयना, पंच-प्रयाग |
भक्ति-भरित,भव-भूमिप्रभाग |
अन्न-रत्न आपूरित आंगन,
तरल-तराई, तुष्ट्-तड़ाग |
तपोनिष्ठ ,तपभूमि , प्रचण्ड |
उन्नत, उज्ज्वल, उत्तराखण्ड |
गिरिजाघर, श्रुत-श्रेष्ठ विहार |
कलियर, हेमकुण्ड, हरिद्वार |
परम-प्रतिष्ठित,चतुष्धाम-मय,
पावन-गंगा, पुलक-प्रसार |
धीर, धवल-ध्वज,धराप्रखण्ड |
उन्नत, उज्ज्वल, उत्तराखण्ड |
शौर्य, सत्य, शुचिता-संवास |
सर्वधर्म, समुदाय समास |
पावन-प्रेम, परस्पर- पूरित,-
मूल सहित, श्रमशील प्रवास |
भ्रातृभाव, भवभक्ति अखण्ड |
उन्नत, उज्ज्वल, उत्तराखण्ड |
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कहां-कहां , क्या-क्या
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सरस्वती-वन्दना
शारदे कुछ इस तरह का,अब मुझे वरदान दे |
निज चरण में बैठने का,अल्प सा स्थान दे |
साहित्य-गंगा से लबालब,
मस्तिष्क को आपूर्ति दे |
हो जनन साहित्य नव,
यह श्रेष्ठतम स्फूर्ति दे |
गीत गंगा को मेरी,नित-नित नये आयाम दे |
निज चरण में बैठने का,अल्प सा स्थान दे |
12
हो सृजन सबसे अनूठा,
प्रेम की रस-धार हो |
शब्द हों आपूर्त रस में,
अक्षरों में प्यार हो |
मधु सरीखा कंठ दे, रस-पूर्ण मंगलगान दे |
निज चरण में बैठने का,अल्प सा स्थान दे |
त्याग-मय जीवन मिले,
निर्लिप्त मन मन्दिर रहे |
प्रेम-पूरित हों वचन सब,
जिनको यह जिव्हा कहे |
गंध सा फैले जगत में,वह मुझे यश-मान दे |
निज चरण में बैठने का,अल्प सा स्थान दे |
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एक सवाल
एक पुत्र ने,निश्छल मन से,
किया पिता से एक सवाल |
हिन्दू-मुस्लिम होते क्या हैं,
कभी-कभी क्यों करें बबाल |
पापा बोले धर्म अलग है,
कुछ आचार नहीं मिलते हैं |
सामाजिक कुछ नियम अलग है,
मूल विचार नहीं मिलते हैं |
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मन्दिर में हिन्दू की पूजा,
मस्जिद में मुस्लिमी नमाज |
हिन्दू रखें अनेकों,एक माह के-,
रोजे रखता , तुर्क समाज |
'पापा मन्दिर' बोला बेटा,
का निर्माण ,करे भगवान ?
या फिर रचना हर मस्जिद की,
आकर खुद करता रहमान ?
सब धर्मी मजदूर - मिस्त्री,
मिल कर इनको यहां बनाते |
बन कर पूरा, होते ही क्यों,
दोनों अलग-अलग हो जाते |
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हिन्दू कहता ईश एक है,
मुस्लिम कहता एक खुदा |
जैन,बौद्ध और सिख,ईसाई,
मिलकर भी क्यों रहें जुदा |
बच्चे हम सब एक पिता के,
ना पूजा घर एक बनाते |
हमसब के त्योहार अलग क्यों,
मिलकर हम क्यों नहीं मनाते |
ईश पिता जब एक सभी का,
फिर तनाव की बात कहां है |
सबका ईश्वर एक जगत में,
सबकी धरती एक जहां है |
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रक्त एक सा, शक्ल एक सी,
सब कहते हम हिन्दुस्तानी |
बच्चे मिलकर गले आज सब,
भूल जायं हर बात पुरानी |
भारत के बच्चों को मिलकर,
काम अभी इतना करना है |
एक नए आदर्श देश को,
हम सबने मिलकर रचना है |
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हिमालय
भारत मां के राज मुकुट सा,
सर पर जड़ा हिमालय |
जय जवान सा रक्षक बन कर,
तत्पर खड़ा हिमालय |
अविरल देकर नीर नदी को,
करता भरित हिमालय |
खेत उगलते सोना जिससे,
करता हरित हिमालय |
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झेल रहा बर्फीली आंधी,
इधर न आने देता-,
कष्ट सभी अपने ऊपर ही,
बिना कहे ले लेता |
किन्तु नहीं हम जीने देते,
इसको जीवन इसका |
धीरे-धीरे अंग भंग कर.
कुतर-कुतर तन इसका |
कसम एक सब मिलकर खाएं,
हरा-भ्ररा हम इसे बनाएं,
लेता नहीं कभी बस देता,
स्वर्णिम इसका रूप बनाएं |
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नहीं समझते कम
हम सूरज और तारे हम,
खुद को नहीं समझते कम |
संशय अगर किसी के मन में,
आकर हमें दिखाले दम |
हम भारत का मान रखेंगे,
ऊंची इसकी शान रखेंगे |
झण्डा है पहचान हमारी,
झण्डे का सम्मान रखेंगे |
20
तूफानों को रोकेंगे हम,
खुद को नहीं समझते कम |
संशय अगर किसी के मन में,
आकर हमें दिखाले दम |
जात-पांत से दूर रहेंगे,
प्रेम-भाव भरपूर रखेंगे |
कितने बड़े पदों पर पहुंचें,
ना सत्ता मद्-चूर रहेंगे |
ना धोखा दें, ना खाएं हम,
खुद को नहीं समझते कम |
संशय अगर किसी के मन में,
आकर हमें दिखाले दम |
21
विश्व गुरू भारत बन जाए,
जन-गण-मन को गले लगाए |
कठिन परिश्रम करके ही तो,
प्रजातन्त्र जन-जन तक जाए |
सम अधिकार दिला दें हम,
नहीं समझते खुद को कम |
संशय अगर किसी के मन में,
आकर हमें दिखाले दम |
22
आज सुना एक नई कहानी
चांद- सितारे, परी-सुहानी,
एक था राजा,एक थी रानी |
कान पके यह सुनते-सुनते,
नहीं सुनेंगे,चुप जा नानी |
आज सुना एक नई कहानी |
23
भारत का इतिहास बता दे,
अश्वमेध क्या था बतलादे ?
भारत का किस पर शासन था,
क्यों टूटा साम्राज्य बतादे ?
किस स्तर पर थी नाकामी,
वर्ष आठ सौ सही गुलामी ?
आज सुना एक नई कहानी |
सोने की चिड़िया कहलाया,
जगत्-गुरू कैसे बन पाया ?
धर्म यहीं पर कैसे जन्मे,
फिर विस्तार कहां से पाया ?
नष्ट हुआ सब फिर भी अपनी,
बची संस्कृति रही पुरानी ?
आज सुना एक नई कहानी |
24
सभी क्षेत्र में था जब न्यारा,
कहां गया इतिहास हमारा ?
मुगलों,अंग्रेजों से पहले,
था भारत सारा नाकारा ?
हवा महल थे क्या सब ज्ञानी,
या था सारा ही अज्ञानी ?
आज सुना एक नई कहानी |
25
बाल-दिवस पर सुनले नानी
बाल-दिवस पर सुनले नानी |
कसम तुझे जो बात न मानी |
नई कहानी कह अनजानी ,-
करो खत्म यह राजा-रानी |
आज़ादी की कथा सुनाओ |
भगतसिंह क्या थे बतलाओ ?
झांसी की रानी कैसी थी,
उसकी पूरी कथा बताओ ?
कहां लड़ी थी वह मरदानी,
करो खत्म यह राजा-रानी |
26
सावरकर क्यों जेल गये थे ?
स्वंय जान पर खेल गये थे |
असहयोग का मतलब क्या था,
भरने क्यों सब जेल गये थे ?
क्यों पड़ती थी लाठी खानी ?
करो खत्म यह राजा-रानी |
मिली युद्ध बिन क्यों आज़ादी ?
क्यों पहनी थी सबने खादी ?
लोगों ने क्यों छोड़ा वैभव ,
जीवन शैली क्यों की सादी ?
क्यों सबने मरने की ठानी ,
करो खत्म यह राजा-रानी |
बाल-दिवस कैसे यह आया | ?
किसने इसको प्रथम मनाया ?
इस दिन को किसने बच्चों का,
अपना दिन घोषित कर वाया ?
कह कलाम की कथा-कहानी,
करो खत्म यह राजा-रानी |
27
रविवार आयेगा
दिन की भागदौड़ से थक कर ,
सूरज जब घर जाता |
चन्दा, लेकर बहुत सितारे,
नभ में नित आ जाता |
आंख-मिचौली क्यौ होती यह ,
समझ नहीं मै पाता |
और न समझें मां-पापा भी,
भय्या चुप रह जाता |
28
ऐक दिवस जब दादा-दादी ,
हमसे मिलने आये |
मैने सारे प्रश्न सामने ,
उनके यह दोहराये |
सुन कर दादा-दादी बोले ,
कारण बहुत सरल है |
सूरज को घर भेजा जाता,
लाना उसको कल है |
ना जाये जो घर पर सूरज ,
कल कैसे लायेगा |
छैः कल बीतें तबही भय्या,
छुट्टी रवि लायेगा |
29
33
सूरज तुम क्यों रोज निकलते
सूरज तुम क्यों रोज निकलते,
छुट्टी कभी नहीं क्यों जाते |
सातों दिन छुट्टी पर रह कर,
नियमों की क्यों ह्सीं उड़ाते |
भोर हुई मां चिल्ला उठती ,
उठ बेटा सूरज उग आया-,
आंखें खोलो झप्-झप जातीं,
सिकुड़ सिमट अलसाती काया |
34
सिर्फ तुम्ही हो जिसके कारण,
नींद नहीं पूरी हो पाती,
क्लास रूम में बैठे-बैठे ,
अनचाहे झपकी आ जाती |
सूरज तुम स्वामी हो सबके,
नियमों का कुछ पालन करलो |
एक दिवस बस सोमवार को,
छुट्टी तुम निर्धारित करलो |
नहीं उगे तो छुट्टी अपनी,
सण्डे संग मण्डे की होगी,
जीभर सो ले दो दिन तक तो,
फिक्र नहीं डण्डे की होगी |
35
संभव ना हो किसी तरह ये,
इतना तो तुम कल से करना,
थोडा सो लें अधिक देर हम,
कल से तुम नौ बजे निकलना |
36
दुखियों पर दया
पशुओं पर दया नहीं जिसको,
वह पशुवत है इन्सान नहीं |
अपनापन पशु से रखता हो,
वह ही मानव, इंसान वही |
देकर दधीचि ने अस्थि-दान,
मानवकुल का कल्याण किया |
शिवि ने बहेलिये निष्ठुर को,
खग रक्षा में निजमांस दिया |
37
जो काम और के आ जाये,
लगता है तब भगवान वही |
अपनापन पशु से रखता हो,
वह ही मानव, इंसान वही |
महाराज रन्तिदेव ने अपना,
भोजन तक सबको दे डाला |
भगवान बुद्ध ने दुखहरण हेतु,
एक नया धर्म ही रच डाला |
सम्पूर्ण राज्य और वैभव का,
समझा कणभर भी मूल्य नहीं |
अपनापन पशु से रखता हो,
वह ही मानव, इंसान वही |
38
ईसामसीह ने आगे बढ कर,
संदेश दिया था जनता को |
तीर्थंकर महावीर श्री स्वामी ने,
था श्रेष्ठ कहा इस क्षमता को |
जितने भी महापुरुष जग के,
कहते रहते थे बात यही |
अपनापन पशु से रखता हो,
वह ही मानव, इंसान वही |
गांधी ने इस युग में आकर,
इस दया भाव को अपनाया |
आदर्श बने इस के कारण ,
जिसको जग भर ने अपनाया |
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उन्नति का है यह मूलमंत्र ,
संशय इसमें है नहीं कहीं |
अपनापन पशु से रखता हो,
वह ही मानव, इंसान वही |
40
तीनों बन्दर
गांधी जी के तीनों बन्दर ,
बैठे बाल-पार्क के अन्दर |
सुखकरजीवन को जीने के,
बांट रहे हैं सबको मन्तर |
हाथ कानपर रखकर भोला,
हम सबसे यह मन्तर बोला |
नहीं किसी की सुनो बुराई,
सुखी रहोगे राज ये खोला |
41
हाथ आंख पर रखकर भाई,
कह्ता यह मत देख बुराई |
अच्छा अच्छा सबकुछ देखो,
नहीं किसी से ठने लड़ाई |
मुख पर हाथ रखे जो रहता,
हाथ हटा कर हम से कहता |
मैं मन्तर यह बता रहा हूं ,
बुरा न बोले सुख से रहता |
बापू ने यह सूत्र सुझाये ,
बन्दर तीन प्रतीक बनाये |
सत्य,शान्ति,सुख रहे हमेशा,
इनके माध्यम से सिखलाये |
42
जन्म-दिवस
जन्म दिवस की तुम्हें बधाई,
जिओ सैकड़ों साल |
जीवन हो पल-पल आनन्दित,
हो उन्नत नित भाल |
टूट कर सुख-समृद्धि बरसे,
वन उपवन सा जीवन महके |
कहीं शोक की पड़े न छाया,
मन का पक्षी खुलकर चहके |
43
जीवन हो पल-पल आनन्दित,
दोस्त फुलाएं गाल |
जन्म दिवस की तुम्हें बधाई,
जिओ सैकड़ों साल |
दुनिया के ऐश्वर्य प्राप्त कर,
शिक्षा के प्रतिमान प्राप्तकर |
एक सफल व्यक्तित्व बनो तुम,
हैं जितने सम्मान प्राप्त कर |
शक्ति तुम्हें दे ईश्वर इतनी,
रक्खो इन्हें सम्हाल |
जन्म दिवस की तुम्हें बधाई,
जिओ सैकड़ों साल |
44
बैर किसी से कभी बने ना,
संक्ट आये किन्तु टिके ना |
स्वस्थ और सम्पन्न रहो तुम,
होठो से, मुस्कान मिटे ना |
क्रमशः होते जाएं कर से,
नित-नित नये कमाल |
जन्म दिवस की तुम्हें बधाई,
जिओ सैकड़ों साल |
45
आदर्श दिन-चर्या
सुबह सवेरे उठना बेटा,
हल्की कसरत करना बेटा |
कलका पढ़ा पुनः दोहराओ,
आज है पढ़ना नज़रफिराओ |
फिर शाला की करो तैयारी,
बैग ढ़ंग से पुनः लगाओ |
46
पूरी ड्रेस पहन कर आओ,
बैग टांग कन्धे पर जाओ |
पंक्तिलगा बस में तुम चढ़ना,
पंक्ति बना शाला में जाओ |
कक्षा में तुम ध्यान लगाकर,
मन पढने में पूर्ण जमाकर |
नोट करो जो नोट करायें,
अलग अलग गृहकार्य लगाकर |
हो छुट्टी मत दौड़ लगाओ,
लगा पंक्ति बस मे चढ़ जाओ |
घर आए आराम से उतरो,
दोनो ओर देख घर जाओ |
47
लेकर कुछ तुम मां से खाओ,
धमा-चौकड़ी नहीं मचाओ |
सुनो बात भी जो वह कहती,
होकर फ्रैश खेलने जाओ |
खेल खत्मकर वापस आओ,
गृह का पूर्ण कार्य निबटाओ |
खाना खा बिस्तर पर जाओ,
करो बन्द आंखें सो जाओ |
48
अविरल टूर बनाएगा
मां पहिये लगवाले घर में,
सचल भवन हो जाएगा |
पापा रखलें एक ड्राइवर ,
जो हर जगह घुमाएगा |
49
स्टेशन,बस अड्डे सबकी,
बचेंगे मारा-मारी से |
पन्द्र्ह दिन तक होनेवाली,
थकन भरी तैयारी से |
पूसी,टामी,मिट्ठू के संग ,
छुट्टू चूहा जाएगा |
अविरल टूर बनाएगा |
पापा-मम्मी साथ रहेंगे,
दीदी साथ निभाएगी |
दादा-दादी छूट न पाएं,
नानी भी आ जाएगी |
प्यारा भय्या अर्जुन मेरा,
साथ घूम कर आएगा |
अविरल टूर बनाएगा |
50
लेह और लद्दाख घूम कर,
श्री-नगर हम जाएंगे |
वहां गए तो अमरनाथ के,
दर्शन भी कर आएंगे |
झझंट नहीं गरमपानी का,
गीज़र साथ निभाएगा |
अविरल टूर बनाएगा |
जयपुर से अजमेर घूमकर,
जायेंगे हम दिल्ली को |
कनाट प्लेस पर चाट्पकौड़ी,
ला दें पूसी बिल्ली को |
उसको खाते देख भौंक-कर ,
टामी शोर मचाएगा |
अविरल टूर बनाएगा |
51
लखनऊ अपना देखा-भाला,
कर्नाट्क हो आएंगे |
विधानसभा कैसी लगती है,
फोटो वहां खिंचाएंगे |
मिट्ठू तोता करे नमस्ते ,
छुट्टू भी चिंचियाएगा |
अविरल टूर बनाएगा |
सीधे-सीधे केप्-कमोरिन ,
कन्याअन्तरीप पर जाएँ |
बैठ विवेकानन्द शिला पर,
राष्ट्र-गीत भारत का गायें |
बिनारुके घर् सीधा वापस,
"दूरान्तो" सा आएगा
अविरल टूर बनाएगा |
52
जन्मा एक सितारा
जय जवान,जय किसान का,
दिया देश को नारा |
गांधी जी की जन्म तिथि को,
जन्मा एक ध्रुव्-तारा |
लाल बहादुर नाम था उसका,
निर्धनतम घर-द्वारा |
नदी उफनती तैर-तैर कर,
शाला गया बिचारा |
53
तन का था निर्बल लेकिन्,
मन का बड़ा सबल था |
आज़ादी के महायुद्ध में,
रखता भाग प्रबल था |
आज़ादी के बाद मंत्रि बन,
जम कर देश संवारा |
एक रेल दुर्घटना पर उसने,
त्याग दिया पद-सारा |
नेहरु की मृत्यु पर उसने,
प्रधान-मंत्रि पद पाया |
एक दिवस भोजन त्यागें सब,
त्याग -मंत्र सिखलाया |
54
झुक चलती छोड़ नीतियां,
सख्त रूप अपनाया |
हमले पर पाकी सेना के,
रौद्र - रूप दिखलाया |
समझौते की बात रूस ने,
कर ने उन्हें बुलाया |
पता नहीं क्या हुआ वहां पर,
लाल न वापस आया |
आज जरूरत पुनः तुम्हारी,
भारत में फिर , आओ |
कद छोटा पर काम बड़ा तुम,
शास्त्री जी कर जाओ |
55
गणतन्त्र हमारा
भिन्न सभी से सबसे न्यारा,
भारत का गणतन्त्र हमारा |
बना विश्व में श्रेष्ठ सभी से,
हमें जान से है ये प्यारा |
56
26 जनवरी का स्वर्णिमदिन,
लेकर खुशियां आया अनगिन |
इस दिन से मुडकर न देखा,
करता देश तरक्की प्रति-दिन |
देख रहा विस्मित जग सारा,
भारत का गणतन्त्र हमारा |
अंतिमजन तक किया सम्रर्पित,
किया प्रशासन जन को अर्पित |
दलित-शोषितों को नियमों से,
मिलीं शक्तियां श्रेष्ठ अकल्पित |
हर घर तक पहुंची यह धारा,
भारत का गणतन्त्र हमारा |
57
हुई शक्तियां संवैधानिक ,
लिखित होगयीं वे अधिकाधिक |
संविधान अतिश्रेष्ठ बना कर,
संसद से करवाया पारित |
जग में ज्यों चमका ध्रुव तारा,
भारत का गणतन्त्र हमारा |
शासन जन का जन के द्वारा,
है सशक्त जनप्रतिनिधि हमारा |
नियम बनाना,राज चलाना ,
संसद में सिमटा बल सारा |
शासक-शासन सभी संवारा ,
भारत का गणतन्त्र हमारा |
58
ट्रैफिक रूल्स बताएं
आओ बच्चों खेल खिलाएं |
चलना सड़कों पर सिखलाएं |
चलें सड़क पर अगर नियम से,
तभी सुरक्षित जीवन पाएं |
चलें सड़क पर अपने बांए |
बिना जरूरत पार न जाऍ |
बांए-दांए रहें देखते -,
सजग रहें और चलते जाएं |
59
करना पार , ज़िब्रा पर जाएं |
देखें अपने , दाएं- बांए |
रुकता ट्रैफिक होता सिगनल,
सड़क क्रास तब हम कर पाएं |
मन मर्जी न कभी चलाएं ,
तभी सुरक्षित जीवन पाएं |
एक पंक्ति हर जगह लिखी है |
दुर्घटना से देर भली है |
हबड़-तबड़ करती दुर्घटना ,
जगह-जगह पर मौत खड़ी है |
सिगनल पालन साध्य बनाएं |
तभी सुरक्षित जीवन पाएं |
60
स्वर्ग-लोक का टिकट कटाना |
ड्राइव करते, फोन उठाना |
मिले अगर अर्जेन्ट काल तो,
रुको वहीं तब फोन उठाना |
करके अपनी गाड़ी बांए |
तभी सुरक्षित जीवन पाएं |
61
चिड़िया
दूर गगन से आती चिड़िया |
सबके मन को भाती चिड़िया |
मीठी तान सुनाती चिड़िया-,
मधुर स्वरों में गाती चिड़िया |
आंगन में आ जाती चिड़िया |
फुदक-फुदक उड़ जाती चिड़िया |
दिखे अन्न का दाना कोई,
ठीक वहीं पर जाती चिड़िया |
62
आ कर नाच दिखाती चिड़िया |
फिर सीढ़ी चढ़ जाती चिड़िया |
आगे - पीछे मां के जाकर ,
उनका मन बहलाती चिड़िया |
फिर करतब दिखलाती चिड़िया |
चोंच में दाना लाती चिड़िया |
पहुंच घोंसले नवजात बुलाकर-,
दाना उन्हें खिलाती चिड़िया |
मां कोई हो, पशु या चिड़िया |
बच्चे शैतानी की पुड़िया |
देते कुछ दुख अपनी मां को ,
मां सबकुछ सह लेती दुखिया |
63
विज्ञान-कुण्डलियां
गाड़ी पर उल्टा लिखा, एम्बुलेंस क्यों मित्र |
आगे गाड़ी जा रही, मिले मिरर को चित्र |
मिले मिरर को चित्र, सदा उल्टा आएगा ,
सीधा लिख दें अगर, पढा कैसे जाएगा |
कहे'राजकविराय', इसी से उल्टा लिखते,
बैकव्यु मिरर में देख, उसे हम सीधा पढते |
64
जले बल्ब स्विचआन से,ट्यूब लगाये देर |
पप्पू के मस्तिष्क में,घूम रहा यह फेर |
घूम रहा यह फेर, सुनो पप्पू विज्ञानी,
ट्यूब बिजली के मध्य,चोक स्टार्टर ज्ञानी |
कहे'राजकविराय',पहुंचती जब दोनों में,
लेती थोड़ी देर , इसी से वह उठने में |
65
पप्पू मारे हाथ, समझ में कुछ न आता |
क्यों आता है ज्वार,और क्यों आता भाटा |
और् क्यों आता भाटा,लहर यूं बनती क्यों है,
ऊंची उठती लहर,पुनः फिर गिरती क्यों है |
कहे'राजकविराय'गुरुत्वधरा चन्दा से ज्यादा,
इसी वजह से नित्य,ज्वार और भाटा आता |
66
पप्पू फ्रिज जब खोलता,फ्रीजर ऊपर होय |
सब में ऊपर देखकर,सिर धुनना ही होय |
सिरधुनना ही होय,खेल ये समझ नआया ,
फ्रीजर ऊपर बना रहा है,हर फ्रिज वाला |
कहे'राज'हवा गर्म, नीचे से ऊपर उठती,
ऊपर फ्रीजर से टकराकर, ठंडी हो जल्दी |
67
पृथ्वी अपने अक्ष पर, झुक साढे तेईस |
करती है वह परिक्रमा,गिन कर पूरी तीस |
गिनकर पूरी तीस,ऋतु बदले सूर्य किरन से,
मध्य, मकर, कर्क रेखा पर चाल बदल के |
कहे'राजकविराय', गर्म-ठंडी या तम देखो,
सीधी पड़ती गर्म , नही तो ठंडा क्रम देखो |
68
गरम करो जब दूध को,उफन सिरे से जाय |
पानी जितना भी करो, ना उफने जल जाय |
ना उफने जल जाय, भेद यह समझ नआया,
पप्पू ने पापा को, अपना यह प्रश्न बताया |
कहे'राज'दूध में जमती परत भाप न निकले,
अन्दर भभके भाप, दूध संग लेकर उफने |
69
धमकी देकर
बना दो यह सम्भव हे राम |
धमकी देकर डंसते कैसे,
ये मच्छर बदनाम |
कान अगर मिलते हाथी से,
कितने आते काम |
बना दो यह सम्भव हे राम |
70
यदि जिराफ सी गर्दन होती,
हम खजूर खा आते,
सबसे ऊंची डाल पे लटका,
सेब तोड़ कर खाते |
घर में बैठे-बैठे खाते,
छत पर पड़े बादाम |
बना दो यह सम्भव हे राम |
सारस सी टांगें मिल जातीं,
ओलम्पिक में जाते ,
पदक जीतकर सभी दौड़ के,
हम भारत जब आते |
एरोड्रम पर करने आते,
हमको सभी सलाम |
बना दो यह सम्भव हे राम |
71
पेट जो मिलता ऊंट सरीखा,
जब दावत मे जाते,
पन्द्रह दिन का खाना खाकर्,
घर वापस हम आते |
हफ्तों-हफ्तों करते रहते,
घर में ही आराम |
बना दो यह सम्भव हे राम |
बन्दर जैसी तरल चपलता,
थोड़ी सी पा जाते ,
छीन कचौड़ी मां के कर से,
बैठ पेड़ पर खाते |
बदले में मां को ला देते,
पके डाल के आम |
बना दो यह सम्भव हे राम |
72
गरूण सरीखे पर मिल जाते,
विश्व घूमकर आते,
दिल्ली से न्युयार्क मुफ्त में,
निशिदिन आते-जाते |
एयर टिकिट न लेना पड़ता,
खर्च न होते दाम |
बना दो यह सम्भव हे राम |
73
कैसा मामा किसका मामा
कैसा मामा किसका मामा,
चंदा लगता किसका मामा |
क्या मामा धरती पर आया ,
क्या आकर हमको दुलराया ,.
साथ ले गया कभी गगन में,
तारा मंडल भी दिखलाया !
झूठ बोलते खा -मो -खामा,
कैसा मामा किसका मामा !
74
कभी नहीं बाज़ार घुमाया,
कभी नहीं पिज्जा खिलवाया,
न बन्दर सी खों-खों करके,
जब रोते हम कभी हंसाया !
फिसले तो ना बाजू थामा,
कैसा मामा किसका मामा !
कभी नहीं जंगल दिखलाया,
ना भालू से कभी मिलाया,
गिफ्ट नहीं कोई दिलवाई,
नहीं कथा किस्सा सुनवाया !
ना ढपली न सा रे गा मा,
कैसा मामा किसका मामा !
75
मामा के संग बुढ़िया आती ,
साथ एक चरखा भी लाती,
हमें नई नानी मिल जाती,
मौज हमारी तब बढ़ जाती !
खादी का सिलती पाजामा,
कैसा मामा किसका मामा !
मामा है तो अब भी आये,
अपने रथ पर हमें बिठाये,
दूर गगन की सैर कराकर,
अच्छी-अच्छी कथा सुनाये !
और अधिक न दे अब झामा ,
कैसा मामा किसका मामा !
76
ये तारे सब खोटे
एक दिवस तारे सब मिलकर,
चंदा के घर आये |
चंदा की मम्मी से सबने,
मीठे बोल सुनाये |
मम्मी तुम चंदा भैया का,
ध्यान नहीं कुछ रखतीं,
इतना बड़ा हो गया फिर भी,
ब्याह नहीं क्यों करतीं |
77
क्यों बूढा करतीं भैया को,
जल्दी ब्याह करा दो |
सुन्दर सी एक नई नवेली ,
उसको दुल्हन ला दो |
चन्दा की मम्मी सुन बोली,
कैसे ब्याह करादूं |
घटे बढे जो रोज इसी सी,
दुल्हन कैसे ला दूँ |
दिवस अमावस का जब होगा,
कैसे सबर करेगी |
साथ इसी के वह कोमल भी,
हर क्षण सफ़र करेगी |
78
ये है पुरुष नियति है इसकी,
अजब खेल यह खेले |
पर जो बंधे साथ में इसके,
वह क्योँ यह सब झेले |
सुन संतुष्ट हुए तारे सब,
अपने घर सब लौटे |
चन्दा ने माँ पर भेजे थे,
ये तारे सब खोटे |
79
गौरय्या
पहले भोर हमारे आंगन,
आ जाती थी एक गौरय्या |
बहुत दिनों से नहीं दीखती,
घर में आती वह गौरय्या |
बचा रात का अन्न पड़ा जो,
फुदक-फुदककर वह खाजाती |
कभी अगर ज्यादा दिखता तो,
वह परिवार बुला ले आती |
चारों ओर घुमा कर गरदन,
झट से चोंच चला जाती थी |
एक किनारे से फुदकी और,
छोर दूसरे आ जाती थी |
80
नन्हे-नन्हे बच्चे उसके,
उसकी तरह फुदक जाते थे |
नकल उसी की कर आंगन में,
घंण्टों खेल दिखा जाते थे |
बहुत दिनों से आस-पास भी,
नहीं दिख रही वह गौरय्या |
मां हम से कुछ भूल हुई क्या,
क्यों नाराज हुई गौरय्या |
89
हरित बनाएं
पप्पू,टिल्लू,कल्लू, राजा |
नया खेल एक खेलें आजा |
ना तुरही,ना तबला कुछ भी,
ना शहनाई ना कोई बाजा |
नया वर्ष इस तरह मनाएं |
पूर्ण नगर नव हरित बनाएं |
नए-नए हितकारी पौधे-,
हर घर में इस वर्ष लगाएं |
90
हर घर में फलदार वृक्ष हो |
जिसका हर रसदार पक्ष हो |
हर बच्चा दस पेड़ लगाए-,
हम सबका इसबार लक्ष हो |
तीन वर्ष में जब फल आएं |
खुद खाएं मित्रों को खिलाएं |
पास पड़ौस में बांटें सबको,
सबको सुन्दर स्वस्थ बनाएं |
91
तुमको निश्चित करना है
जीवन पथ पर चलने से पहले ,
लक्ष्य तुम्हें अब चुनना है |
करलो निश्चित बनने से पहले ,
क्या तुम को अब बनना है |
वीर सुभाष बनोगे या तुम,
बनोगे वीर शिवा जी से |
या फिर राजस्थान- केशरी,
चाहो कुछ राणा जी से |
92
रामतीर्थ बनना चाहोगे, या-
भगत सिंह मतवाला तुम |
सघन साधना कर मीरा सी,
चाहो बिष का प्याला तुम |
अगर चाहते नेता बनना,
लाल बहादुर सा भय्या |
दे कर जान बचाया जिसने,
भारत का गौरव भय्या |
कहो बनोगे क्या तुम बच्चो ,
अभी करो यह निश्चित तुम |
वरना बहुत देर हो जाए,
फिर कब कर पाओगे तुम |
93
बाल दिवस
बाल दिवस है आज देश में,
बच्चों का त्योहार मनोहर |
जन्म दिवस चाचा नेहरु का,
हम बच्चों की पुण्य धरोहर |
बच्चों से चाचा नेहरु का,
अन्तर्मन से प्यार रहा था |
हर गरीब बच्चे से उनका,
मन से जुड़ा लगाव रहा था |
95
बच्चों की उन्नति को लेकर,
कई योजना लेकर आये |
जिससे बच्चों के जीवन में,
खुशियां ही खुशियां भर जायें |
दूर गगन पर बैठे चाचा,
हमें आज भी देख रहे हैं |
बच्चों का जो ख्वाब बुना था,
उसको फलता देख रहे हैं |
96
अभी दिखता है अपनापन -
हमें कविता से रिश्ते में |
झलकता है अजब उन्माद-
जैसा इन बहिश्तों में |
नये कवि आज जैसे -
छू रहे हैं सूर्य को जाकर ,
बहुत सम्भावनाएं दिख-
रही हैं इन फरिश्तों में |
-०-
पुरानी लीक पर चलना-
कभी हमको नहीं भाया |
विगत गुणगान से कुछ भी-
किसी को मिल नहीं पाया |
नये पथ हम तलाशेंगे-
शिखर की ओर जाने के -,
रखे हाथों को हाथों पर -
कभी कुछ मिल नहीं पाया |
97
उठो उठ कर तलाशें हम-
नई सम्भावनाओं को |
करें जी तोड़कर हम अब-
नई नित साधनाओं को |
सरलजीवन,सघनवैभव,-
अधिक आराम तलबी भी,
हटाकर अपने जीवन से-
मिटा दें वासनाओं को |
-०-
हमारे दिल में पुरखों का-
अभी भी ख्वाब बाकी है |
इसी से आंख में अपनी-
हया की आब बाकी है |
मुहब्बत उठ गई शहरों से -
लेकिन गांव में अब भी,
पुरानी रस्म जिन्दा है-
अदब-आदाब बाकी है |
98
उदर में आसमानों से-
सहेजा बन्द अबरों को |
उतर गहराई में दिल की-
कुरेदा कुन्दखबरों को |
प्रसवपीड़ा सही जो"राज"-
उसकी टीस सह-सह कर,
निचोड़ा दर्द दिल का तो-
रचा है चन्द सतरों को |
-०-
99
समय -चक्र
निकल रहा है एक-एक पल,
अपने जीवन से हर क्षण |
बिखर रहा है समय बीतता,
ज्यों अनन्त बिखरा कण-कण |
साथ समय के चलकर तुमने,
अगर समय को थाम लिया |
मनमाफिक उन्नति के पथपर,
समझो जीवन डाल लिया |
100
इस अनमोल समय की कीमत,
जब भी तुम पहचानोगे |
जीवन में जो कुछ चाहोगे,
बिन मांगे वह पा लोगे |
व्यर्थ गंवाया समय अगर तो,
फिर पछताना व्यर्थ रहेगा |
कोई तुम्हें न धिक्कारे पर -,
खुद की तो धिक्कार सहेगा |
उठो समय के साथ चलो अब,
व्यर्थ न बीते समय कहीं |
ठीक समय पर ठीक जगह पर,
काम संवारे , सही वही |
101
कथा शहीद उधमसिंह्
इकत्तीस जुलाई प्रतिवर्ष,
हम को कुछ याद दिलाती है |
एक अमरकथा बलिदानी की,
आ नयनों में बस जाती है |
पंजाब प्रांत का सुनाम ग्राम,
हो गया धन्य कृत्कृत्य हुआ |
नारायणकौर सुमाता ने,
जब शेरसिंह को जन्म दिया |
102
था दिवस दिसम्बर का छब्विस,
निन्नानबे अट्ठारह सौ सन था |
पिता टहलसिहं उछल पड़े,
जब पुत्र जन्म संदेश सुना |
अल्पायु में माता खोकर,
परवरिश अनाथों में पाई |
जब अमृतपान छका उसने,
तब नाम उधम पाया भाई |
बचपन में जलियां बाग हुआ,
अंग्रेजों से नफरत मानी थी |
डायर से बद्ला लेने की,
मन में उसने निज ठानी थी |
103
इंग्लैण्ड गये और घात लगा,
ओ डायर का बध कर डाला |
एक कील ठोक कर शासन में,
साम्राज्य ब्रिटिश को मथ डाला |
चढ़ गये खुशी से फांसी पर,
जय भारत मां की बोली थी |
अपने ही बल से सिंह्पुरूष,
राह्-ए-आजादी खोली थी |
"काम्बोज रत्न, हे उधमसिंह्",
तुम भारत के जन-नायक हो |
तुम सिंह्-प्रसूता भारत-मां के ,
हो गये अमर,वह शावक हो |
104
भाषा कम्प्यूटर की
भाषा कम्प्यूटर की हिन्दी है,
यह स्वयं सिद्ध हो जाता है|
हिन्दी प्रयोग से संचालन -,
जब स्वंय सरल हो जाता है|
य़ूं तो भाषा कम्पयूटर की,
कोई भी नहीं बिशेष बनी|
पर हिन्दी ही वह भाषा है ,
जो क्म्प्यूटर को श्रेष्ट मिली|
105
कम्प्यूटर के डाटासंग्रह में,
जितना भी डाटा अंकित है|
वह दो अंकों का खेलमात्र ,
वह दो अंकों से निर्मित है|
लगभग मिलताजुलता है यह्,
वैदिक -गणना के रंगों से|
हो जाता सार्थक वेद-गणित ,
कम्प्यूटर की सभी तरंगों से|
यह सिद्ध हो गया है भाषा,-
कम्प्यूटर -मानक हिन्दी है|
हिन्दी ही विश्वसमन्वय की,
प्रोद्योगिक भाषा हिन्दी है|
106
वृक्ष न होते
वृक्ष न होते अगर धरा पर,
सोचो तब क्या होता ?
होती शुष्क चटखती धरती,
शुष्क मरुस्थल होता ?
हरियाली का नाम न होता,
कितनी मुश्किल होती |
जितनी सुन्दर आज बनी है,
ऐसी कहीं न होती |
107
पेड़ न होते कहां से आती,
प्राण - वायु आक्सीजन ?
कहां बैठ कर सुस्ता पाते,
राहों के राही - जन |
बिना पेड़ के फल कैसे फिर,
किसी डाल पर लगते ?
अगर न होता फल उत्पादन,
फल कैसे फिर मिलते ?
पेड़ बिना पक्षी न होते,
कैसे नीड़ बनाते ?
बिना पेड़ का जंगल भय्या,
कैसे कहीं लगाते ?
108
पेड़ न होते,हम बच्चों का,
जीवन दूभर होता ?
बिना बृक्ष ,बारिश न होती,
सब कुछ ऊसर होता !
109
चन्द्र शेखर आजाद
हे शीर्ष शिखर आजादी के,
स्वीकार करो शतशत प्रणाम |
हो सर्वश्रेष्ठ बलिदानी तुम,
भारत भर में हो श्रेष्ठनाम |
प्रातः स्मरणीय शिखर'चन्द्र',
तुम सा बलिदानी कौन बने |
सौ धन्य-वाद उस माता को,
जो 'शेखर' जैसा लाल जने |
110
है आज जरुरत बस इतनी,
तुम जैसा नेता आ जाये |
सड़ चुकी व्यवस्था भारत की,
'आजाद'इसे वह कर जाये |
अवतरित तुरत हो जाओ तुम,
इस त्राहि-त्राहि को दूर करो |
भारत माता के पौंछ अश्रु,
भारत भर का कल्याण करो |
111
नीड़ बनाया
कहां सीख कर आई हो तुम,
कला प्रिय गौरय्या |
इतना सुन्दर नीड़ बना कर,
रहती हो गौरय्या |
तिनका तिनका चुनकर तुमने,
कला - कृति रच डाली |
सबसे ऊंची डाल सुरक्षित ,
उस पर यह लटकाली |
112
अन्दर बाहर इसे सजा कर,
कमरे तीन बनाए |
छोटे-छोटे गोल द्वार भी,
इस में कई बनाए |
सुन्दर सूखे पत्ते लेकर ,
तुमने नीड़ सजाया |
मन करता है मैं भी रहलूं,
लेकिन पहुंच न पाया |
113
माँ
नामों में माँ का श्रेष्ठ नाम,
स्थान सभी से उंचा है /
माता का धरती पर अब भी,
सम्मान सभी से ऊँचा है /
धरती पर आते सर्वप्रथम,
हमको जो गले लगाता है |
दुःख-दर्द सभी को भूल प्रथम,
चुम्बन करने लग जाता है |
कांटा चुभ जाये हमें कहीं,
हम से ज्यादा हो कष्ट उसे,
माँ एक शब्द में सिमट प्रेम,
हर जगह अभय दे जाता है |
114
यह नाम है जो हर संकट में,
आता है सबसे पूर्व याद,
संकट हारी, कल्याण परक ,
यह ध्यान सभी से ऊँचा है |
माता का धरती पर अब भी,
सम्मान सभी से ऊँचा है |
सुंदर-कुरूप,गंदा जैसा,
हर बच्चा उस को प्यारा है,
अपने से ज्यादा समझ उसे,
संकट से सदा उबारा है |
115
प्राणों पर संकट देखा तो,
लड़ गयी शेर से बिना शस्त्र ,
रक्षा करने को बच्चों की,
मृत्यु को भी ललकारा है |
ईश्वर ने दुनिया में सोंपे,
सदनाम भले ही कितने हों,
पर माँ रूपी जो नाम दिया,
वरदान सभी से ऊँचा है |
माता का धरती पर अब भी,
सम्मान सभी से ऊँचा है |
116
अब भारत है तुम्हें बचाना |
अपनों से लुटपिट कर हम तो,
नही लिख सके नया फसाना |
भारत की समृद्द संस्कृति,
बच्चो अब है तुम्हें बचाना ||
मची हुई है खुली लूट जो,
कैसे उस पर रोक लगेगी |
बापू ने जो सपना देखा,
वैसी दुनिया कभी मिलेगी ?
117
सत्य,अहिंसा,प्रेम देश में,-
सिर्फ तुम्हारे जिम्मे लाना |
भारत की समृद्द संस्कृति,
बच्चो अब है तुम्हें बचाना |
सिर्फ लंगोटी जैसी धोती,
मन में लेकर स्वप्न सुहाना |
बुनना चाहा था बापू ने,
इस भारत का ताना-बाना |
बापू के सारे सपने अब,-
खींच धरा पर तुमने लाना |
भारत की समृद्द संस्कृति,
बच्चो अब है तुम्हें बचाना |
118
भारत मां के लाज वस्त्र तक,
लूट रहे हैं मिल कर सारे |
हाथ बांध हम देख रहे हैं,
इनके हर करतब टकियारे |
चट करने की ना है सीमा ,
खाते हैं पशु तक का दाना |
भारत की समृद्द - संस्कृति,
बच्चो अब है तुम्हें बचाना |
119
मानव सेवा
मानव सेवा में निज मन को,
हर समय सदा तैयार रखो |
यह अन्य किसी के काम आये,
यह सोच सदा हर बार रखो |
जीवन है चन्द बहारों का,-
इन चन्द बहारों को लेकर |
आनन्द उठाओ जीने का,
जीवन्त हर घड़ी को जीकर |
हर पल हर सेवा में तत्पर,
तन,मन,धन,परिवार करो |
मानव सेवा में निज मन को,
हर समय सदा तैयार रखो |
120
कुछ जीते जीवन बदतर सा,
इनको तुम जीना सिखलाओ |
जो भोग रहे हैं नर्क यहां,
एक झलक स्वर्ग की दिखलाओ |
जो दीन दुखी राहों में मिलें,
उनका भी तुम सत्कार करो |
मानव सेवा में निज मन को,
हर समय सदा तैयार रखो |
121
नीड़ बनाया
कहां सीख कर आई हो तुम,
गृह - निर्माण सवैय्या |
कितना सुन्दर नीड़ बना कर,
रहती हो गौरय्या |
तिनका-तिनका चुनकर तुमने,
कला-कृति रच डाली |
सबसे ऊंची डाल सुरक्षित,
उस पर यह लटकाली |
122
अन्दर-बाहर चिकना करके,
कमरे तीन सजाए |
छोटे-छोटे गोल द्वार भी,
इसमें कई बनाए |
सुन्दर सूखे पत्ते लेकर,
तुमने नीड़ सजाया |
मन करता है मैं भी रहलूं,
लेकिन पहुंच न पाया |
123
अप्रैल फूल बनाया
चतुर्थ मास के प्रथम दिवस को,
उल्लू के मन आया |
रहे बनाते उल्लू हमको,
दिवस हमारा आया |
मैं भी आज स्वंय सरीखा,
उल्लू इन्हें बनाऊं |
अपने मोबा इल से झूठे,
कुछ मैसेज भिजवाऊं |
124
भैंस वती को 'मैसेज' भेजा,
ब्युटी पार्लर जाओ |
क्रीम बनाई एक उन्होंने,
गोरी तुम हो आओ |
गधे राम को भेजा 'मैसेज',
सुन्दर - वन में जाओ |
वहां जमी है अक्लघास जो,
चर कर अक्ल बढाओ |
'मैसेज भेजा चूहे जी को,
लोमड़ - वैद्य पटाओ |
सिंह - राज जो खाते गोली,
खाकर कैट भगाओ |
125
बिल्ली को भेजा 'संदेसा',
'बन्दर्-मुनि' पर जाओ |
सम्मोहन का मंत्र सीख कर ,
मोटे - रैट पटाओ |
भेज संदेशे उल्लू - राजा,
मन ही मन इतराये |
देखा सन्देशे , भेजे पर,
बिना'सैण्ड'का बटन दबाये |
सफलता-सूत्र
नन्हे बच्चे सा भोलापन,
लेकर तुम मन के आंगन में |
करो प्रेम-वर्षा मेघों सी,
धराधाम के प्रागंण में |
कच्छप सा कोमलमन रख,
ऊपर से सदा कठोर बनो |
गतिमान रहो मछली जैसे,
साहसी बाघ से और बनो |
सागर से सीखो आत्मसात,
भरपूर हलाहल पी जाना |
मोती और वर्षा बदले में,
दुनिया को देते ही जाना |
फैलो तो गगन सरीखे हो,
पूरी धरती को ढक डालो |
जो मिले तुरत प्रतिदान करो,
आंधी-पानी सब बरसालो |
सेवा निःस्वार्थ पवन से लो,
अनवरत रहे जो सेवा में |
यही सोच अपनी रख कर,
हो मन से रत जनसेवा में |
बांटो जग भर को प्रकाश ,
दीपक से भाव उठाओ तुम |
निर्लिप्त भाव से उजियारा,
सारे जग में बरसाओ तुम |
धरती से ले लो वीत-राग,
दुःख दर्द सहन करके जीना |
मिलते हों दर्द अगर कोई,
आंसू हंसते-हंसते पीना |
झरने से सीखो सुख-वर्षा,
बरसो नित पूरी धरती में |
दुख भरी अगर आएं घड़ियां,
उनमें भी नाचो मस्ती में |
चन्दा से लेकर शीतलता ,
भावों में अपने भर डालो |
तारों से सीखो अविचलता,
दृढ रहो जो निश्चय कर डालो |
वृक्षों से बनो उदारमना,
मारें पत्थर तुम फल दे दो |
तपती दोपहरी आजाए पथिक,
छाया उसको शीतल दे दो |
कोयल समान मीठी बोली,
अविरल बहने दो वाणी में |
श्वानों से स्वामिभक्ति लेकर,
भर दो जग के हर प्राणी में |
ये मंत्र सफलता पाने के,
जीवन में जो अपनाएगा |
निर्लिप्त भाव से यह जीवन,
वह अपना सदा बिताएगा |