रविवार, 23 अक्टूबर 2011

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   ममता
   बाल गंगा 
    डा.राज सक्सेना



गणेश जी की फोटो


ममता प्रकाशन,हनुमान मन्दिर,
खटीमा-२६२३०८(उत्तराखण्ड)

3


कठिन पान्डित्यप्रदर्शन,नहीं है बालगंगा में | 
अहम् के सर्प का दंशन,नहीं  है बालगंगा में |
ये सपनों का समर्पण है,जो भोली आंख ने देखे,
किसी कविदर्प का दर्शन्,नहीं है बालगंगा में |

4
 समर्पण
'बाल गंगा' का समर्पण,
 आपको , श्री-मान है |
 है नहीं संजाल शब्दों का,
 हृदय    का  गान है |


बालकविता ,  काव्य का-,
 मुझको नहीं कुछ ज्ञान है |
 किस तरह रस-छंद डालूं,
 यह्     नहीं      संज्ञान है |


 बालपन में लौट  कर जो-,
 कुछ स्वंय अनुभव किया |
 भाव वह मैंने   यथावत ,
 हर समर्पण कर   दिया |


 किंचित नहीं,मैं  भिज्ञ हूं,
 किस भाव से दूं आपको |
 मित्रवत बस कर रहा हूं,
 भेंट  यह  श्री-मान को |

 आप    चाहें    तो    हृदय, 
  इस को  लगा  कर तार दें |
 खुद पढें, सबको पढा कर,
 एक   नया  विस्तार  दें | 

5
आमुख
9

     उन्नत,उज्ज्वल,उत्तराखण्ड
भरत-भूमि,भव-भूति प्रखण्ड |
उन्नत, उज्ज्वल, उत्तराखण्ड |

सकल-समन्वित,श्रमशुचिताम |
शीर्ष-सुशोभित,  श्रंग-शताम |
विरल-वनस्पति, विश्रुतवैभव,
पावन,पुण्य-प्रसून,  शिवाम |

हरित-हिमालय,हिमनदखण्ड |
उन्नत, उज्ज्वल, उत्तराखण्ड |

नन्दा, नयना,  पंच-प्रयाग |
भक्ति-भरित,भव-भूमिप्रभाग |
अन्न-रत्न आपूरित   आंगन,
तरल-तराई,    तुष्ट्-तड़ाग |

तपोनिष्ठ ,तपभूमि , प्रचण्ड |
उन्नत, उज्ज्वल, उत्तराखण्ड |

गिरिजाघर, श्रुत-श्रेष्ठ  विहार |
कलियर, हेमकुण्ड,  हरिद्वार |
परम-प्रतिष्ठित,चतुष्धाम-मय,
पावन-गंगा,   पुलक-प्रसार |

धीर, धवल-ध्वज,धराप्रखण्ड |
उन्नत, उज्ज्वल, उत्तराखण्ड |


शौर्य, सत्य, शुचिता-संवास |
सर्वधर्म,   समुदाय  समास |
पावन-प्रेम, परस्पर- पूरित,-
मूल सहित, श्रमशील प्रवास |

भ्रातृभाव, भवभक्ति  अखण्ड |
उन्नत, उज्ज्वल, उत्तराखण्ड |
10
 कहां-कहां , क्या-क्या
11
  सरस्वती-वन्दना

शारदे कुछ इस तरह का,अब मुझे वरदान दे |
निज चरण में बैठने का,अल्प सा  स्थान दे |
      साहित्य-गंगा से लबालब,
      मस्तिष्क को आपूर्ति  दे |
      हो जनन साहित्य   नव,
      यह श्रेष्ठतम स्फूर्ति   दे  |
गीत गंगा को मेरी,नित-नित नये आयाम दे |
निज चरण में बैठने का,अल्प सा  स्थान दे |
12

      हो सृजन सबसे  अनूठा,
      प्रेम की  रस-धार  हो |
      शब्द हों आपूर्त रस  में,
      अक्षरों में   प्यार  हो  |
मधु सरीखा कंठ दे, रस-पूर्ण मंगलगान  दे |
निज चरण में बैठने का,अल्प सा  स्थान दे |


      त्याग-मय जीवन  मिले,
      निर्लिप्त मन मन्दिर रहे |
      प्रेम-पूरित हों वचन सब,
      जिनको यह जिव्हा  कहे |
गंध सा फैले जगत में,वह मुझे यश-मान दे |
निज चरण में बैठने का,अल्प सा  स्थान दे |
13
       एक सवाल
            
एक पुत्र ने,निश्छल मन से,
किया पिता से एक  सवाल |
हिन्दू-मुस्लिम होते क्या हैं,
कभी-कभी क्यों करें बबाल |

पापा बोले धर्म  अलग   है,
कुछ आचार नहीं मिलते  हैं |
सामाजिक कुछ नियम अलग है,
मूल विचार नहीं  मिलते  हैं |
14

मन्दिर में हिन्दू   की  पूजा,
मस्जिद में मुस्लिमी नमाज |
हिन्दू रखें अनेकों,एक माह के-,
रोजे रखता , तुर्क   समाज |

'पापा मन्दिर' बोला  बेटा,
का निर्माण ,करे  भगवान  |
या फिर रचना हर मस्जिद की,
आकर खुद करता  रहमान |

सब धर्मी  मजदूर -  मिस्त्री,
मिल कर इनको यहां बनाते |
बन कर पूरा, होते ही क्यों,
दोनों अलग-अलग हो  जाते |
15

हिन्दू कहता ईश   एक  है,
मुस्लिम कहता  एक खुदा |
जैन,बौद्ध और सिख,ईसाई,
मिलकर भी क्यों रहें  जुदा |

बच्चे हम सब एक पिता के,
ना पूजा घर एक बनाते  |
हमसब के त्योहार अलग क्यों,
मिलकर हम क्यों नहीं मनाते |

ईश पिता जब एक  सभी का,
फिर तनाव की बात कहां  है |
सबका ईश्वर एक  जगत  में,
सबकी धरती एक  जहां   है |
16
रक्त एक सा, शक्ल  एक सी,
सब कहते  हम  हिन्दुस्तानी |
बच्चे मिलकर गले आज सब,
भूल जायं हर  बात  पुरानी |

भारत के बच्चों  को मिलकर,
काम अभी इतना  करना है |
एक नए  आदर्श देश   को,
हम सबने मिलकर रचना है | 
17
    
      हिमालय  
भारत मां के राज मुकुट सा,
सर पर जड़ा हिमालय |
जय जवान सा रक्षक बन कर,
तत्पर खड़ा हिमालय |

अविरल देकर नीर नदी को,
करता भरित हिमालय |
खेत उगलते सोना जिससे,
करता हरित  हिमालय |
 18
झेल रहा बर्फीली आंधी, 
इधर  न आने   देता-,
कष्ट सभी अपने ऊपर ही, 
बिना कहे  ले  लेता |

किन्तु नहीं हम जीने देते, 
इसको  जीवन   इसका |
धीरे-धीरे अंग भंग  कर.  
कुतर-कुतर तन इसका |
आकर हमें दिखाले दम |

कसम एक सब मिलकर खाएं,
हरा-भ्ररा हम इसे बनाएं,
लेता नहीं कभी बस देता, 
स्वर्णिम इसका  रूप बनाएं |
 19
 नहीं समझते कम              
हम सूरज और तारे हम,
खुद को नहीं समझते कम |
संशय अगर किसी के मन में,
आकर हमें दिखाले दम |

हम भारत का मान रखेंगे,
ऊंची इसकी शान रखेंगे |
झण्डा है पहचान हमारी,
झण्डे का सम्मान  रखेंगे |
20
तूफानों को रोकेंगे हम,
खुद को नहीं समझते  कम |
संशय अगर किसी के मन में,
आकर हमें दिखाले दम |

जात-पांत से दूर रहेंगे,
प्रेम-भाव भरपूर   रखेंगे |
कितने बड़े पदों पर पहुंचें,
ना सत्ता मद्-चूर रहेंगे |

ना धोखा दें, ना खाएं हम,
खुद को नहीं समझते कम |
संशय अगर किसी के मन में,
आकर हमें दिखाले दम |
21

विश्व गुरू भारत बन जाए,
जन-गण-मन को गले लगाए |
कठिन परिश्रम करके ही तो,
प्रजातन्त्र जन-जन तक जाए |

सम अधिकार दिला दें हम,
नहीं समझते खुद को कम |
संशय अगर किसी के मन में,
आकर हमें दिखाले दम |
22
आज सुना एक नई कहानी
                     
चांद- सितारे, परी-सुहानी,
एक था राजा,एक थी रानी |
कान पके यह सुनते-सुनते,
नहीं सुनेंगे,चुप जा  नानी |
आज सुना एक नई कहानी |
23
भारत का इतिहास  बता दे,
अश्वमेध क्या था  बतलादे |
भारत का किस पर शासन था,
क्यों टूटा साम्राज्य  बतादे |
किस स्तर पर थी नाकामी,
वर्ष आठ सौ सही गुलामी |
आज सुना एक नई कहानी |

सोने की चिड़िया कहलाया,
जगत्-गुरू कैसे बन पाया |
धर्म यहीं पर कैसे  जन्मे,
फिर विस्तार कहां से पाया |
नष्ट हुआ सब फिर भी अपनी,
बची संस्कृति  रही पुरानी |
आज सुना एक नई कहानी |
24
सभी क्षेत्र में था जब न्यारा,
कहां गया इतिहास  हमारा |
मुगलों,अंग्रेजों से पहले,
था भारत  सारा  नाकारा |
हवा महल थे क्या सब ज्ञानी,
या था सारा ही  अज्ञानी |
आज सुना एक नई कहानी |
25
 बाल-दिवस पर सुनले नानी
                       
बाल-दिवस पर सुनले नानी |
कसम तुझे जो बात न मानी |
नई कहानी कह अनजानी ,-
करो खत्म यह राजा-रानी |

आज़ादी की कथा सुनाओ |
भगतसिंह क्या थे बतलाओ |
झांसी की रानी कैसी थी,
उसकी पूरी कथा बताओ |
कहां लड़ी थी वह मरदानी,
करो खत्म यह राजा-रानी |
26
सावरकर क्यों जेल गये थे |
स्वंय जान पर खेल गये थे |
असहयोग का मतलब क्या था,
भरने क्यों सब जेल गये थे |
क्यों पड़ती थी लाठी खानी |
करो खत्म यह राजा-रानी |


मिली युद्ध बिन क्यों आज़ादी |
क्यों पहनी थी सबने खादी |
लोगों ने क्यों छोड़ा वैभव ,
जीवन शैली क्यों की  सादी |
क्यों सबने मरने  की ठानी ,
करो खत्म यह राजा-रानी |


बाल-दिवस कैसे यह आया |
किसने इसको प्रथम मनाया |
इस दिन को किसने बच्चों का,
अपना दिन घोषित कर वाया |
कह कलाम की कथा-कहानी,
करो खत्म यह राजा-रानी |
   27

  रविवार आयेगा             
दिन की भागदौड़ से थक कर ,
सूरज जब घर जाता |
चन्दा, लेकर बहुत सितारे,
नभ में नित आ जाता |

आंख-मिचौली क्यौ होती यह ,
समझ नहीं मै पाता |
और न समझें मां-पापा भी,
भय्या चुप रह जाता |
28
ऐक दिवस जब दादा-दादी ,
हमसे मिलने आये |
मैने सारे प्रश्न सामने ,
उनके यह दोहराये |

सुन कर दादा-दादी बोले ,
कारण बहुत सरल है |
सूरज को घर भेजा जाता,
लाना उसको कल है |

ना जाये जो घर पर सूरज ,
कल कैसे लायेगा |
छैः कल बीतें तो छुट्टी का,
वार रवि आयेगा |
29
  आज़ादी सुन बात मेरी  
    
ऐ आज़ादी सुन बात मेरी,
मैं तुझको सत्य दिखाता हूं |
चढ़ तू जिन कन्धों पर आई,
मैं उनकी व्यथा बताता हूं |

ये स्लमबस्ती है भारत की,
इसको सब कहते हैं कलंक |
कितनी कोठी खाली-सूनी,
दिन-रात यहां मनता बसंत | 
30
परिवार आठ का रह्ता है,
एक आठ-आठ के कमरे में |
पीढ़ी कमरे में    जनी कई,
 त्यौहार  मने सब कमरे में |

कमरे से बाहर    एक बच्चा,
जो पुण्य धरोहर हम सब की |
खाना    तलाशता    कूड़े से, 
कुछ भूख मिटे उसके तन की |

बच्ची बारह की होते ही, 
बाई हो जाती    कोठी   में |
अनचाहे या बेबस होकर,
इज़्ज़त लुटवाती  कोटी   में |
31
टी बी से ग्रसित दादा-दादी,
तिल-तिलकर मरते जाते हैं |
आज़ाद मुल्क में दवा बिना,
फुटपाथों पर   मर जाते हैं |

धन सिमटगया कुछ खातोंमें,
आधिक्यहुआ कुछ चीजों का |
अधिसंख्य अभावसे ग्रसित यहां,
अडडा हरसड़क कनीजों का |

रिश्वतखोरी का आलम यह,
बिन रिश्वत काम न  होता है |
जिनको रक्खा है  काम हेतु,
हर  टांग पसारे   सोता  है |
32
मंत्री,पी एम ओ झूठ कहे,
सब छिपे भेड़ की खालों   में |
उदघाट्न तक सड्कें चलतीं,
पुल गिर जाते कुछ सालों में |

बस यही रास्ता बचता है , 
झण्डा  लेकर अब  हाथों में |
उठ समरभूमि में कूद पडो, 
घुस जाओ भ्रष्ठ  ठिकानों में |
33

 सूरज तुम क्यों रोज निकलते
                   
सूरज तुम क्यों रोज निकलते,
छुट्टी कभी नहीं क्यों जाते |
सातों दिन छुट्टी पर रह कर,
नियमों की क्यों ह्सीं उड़ाते |

भोर हुई मां चिल्ला उठती ,
उठ बेटा सूरज उग आया-,
आंखें खोलो झप्-झप जातीं,
सिकुड़ सिमट अलसाती काया |
34
सिर्फ तुम्ही हो जिसके कारण,
नींद नहीं पूरी हो पाती,
क्लास रूम में बैठे-बैठे , 
अनचाहे झपकी आ जाती |

सूरज तुम स्वामी हो सबके, 
नियमों का कुछ पालन करलो |
एक दिवस बस सोमवार को,
छुट्टी तुम निर्धारित करलो |

नहीं उगे तो छुट्टी अपनी, 
सण्डे संग मण्डे की होगी,
जीभर सो ले दो दिन तक तो, 
फिक्र नहीं डण्डे की होगी |
35
संभव ना हो किसी तरह ये, 
इतना तो तुम कल से करना,
थोडा सो लें अधिक देर हम, 
कल से तुम नौ बजे निकलना |
36
      दुखियों पर दया

पशुओं पर दया नहीं जिसको,
वह पशुवत है इन्सान  नहीं |
अपनापन पशु से रखता हो, 
वह ही मानव, इंसान वही |

देकर दधीचि ने अस्थि-दान,
मानवकुल का कल्याण किया |
शिवि ने बहेलिये निष्ठुर  को,
खग रक्षा में निजमांस दिया |
37
जो काम और के आ  जाये,
लगता है तब भगवान वही |
अपनापन पशु से रखता हो, 
वह ही मानव, इंसान वही |

महाराज रन्तिदेव ने अपना, 
भोजन तक सबको दे डाला |
भगवान बुद्ध ने दुखहरण हेतु,
एक नया धर्म ही रच डाला |

सम्पूर्ण राज्य और वैभव का,
समझा कणभर भी मूल्य नहीं |
अपनापन पशु से रखता हो, 
वह ही मानव, इंसान वही |
38
ईसामसीह ने आगे बढ कर,
संदेश दिया था जनता  को |
तीर्थंकर महावीर श्री स्वामी ने,
था श्रेष्ठ कहा इस क्षमता को |

जितने भी महापुरुष जग के,
कहते  रहते थे बात  यही |
अपनापन पशु से रखता हो, 
वह ही मानव, इंसान वही |

गांधी ने इस युग में आकर, 
इस दया भाव को अपनाया |
आदर्श बने इस के कारण ,
जिसको जग भर ने अपनाया |
39
उन्नति का है यह मूलमंत्र ,
संशय इसमें है नहीं  कहीं |
अपनापन पशु से रखता हो, 
वह ही मानव, इंसान वही |  
40
          तीनों बन्दर            
गांधी जी के तीनों बन्दर ,
बैठे बाल-पार्क के अन्दर |
सुखकरजीवन को जीने के,
बांट रहे हैं सबको मन्तर |

हाथ कानपर रखकर भोला,
हम सबसे यह मन्तर बोला |
नहीं किसी की सुनो बुराई,
सुखी रहोगे राज ये खोला |
41
हाथ आंख पर रखकर भाई,
कह्ता यह मत देख बुराई |
अच्छा अच्छा सबकुछ देखो,
नहीं किसी से ठने लड़ाई |

मुख पर हाथ रखे जो रहता,
हाथ हटा कर हम से कहता |
मैं मन्तर यह बता रहा हूं ,
बुरा न बोले सुख से रहता |

बापू ने यह सूत्र    सुझाये ,
बन्दर तीन प्रतीक  बनाये |
सत्य,शान्ति,सुख रहे हमेशा,
इनके माध्यम से सिखलाये |

42
      जन्म-दिवस             
जन्म दिवस की तुम्हें बधाई,
जिओ     सैकड़ों     साल |
जीवन हो पल-पल आनन्दित,
हो   उन्नत   नित   भाल |

टूट कर सुख-समृद्धि  बरसे,
वन उपवन सा जीवन महके |
कहीं शोक की  पड़े न छाया,
मन का पक्षी खुलकर चहके |
43

जीवन हो पल-पल आनन्दित,
दोस्त     फुलाएं     गाल |
जन्म दिवस की तुम्हें बधाई,
जिओ     सैकड़ों     साल |

दुनिया के ऐश्वर्य प्राप्त   कर,
शिक्षा  के प्रतिमान प्राप्तकर |
एक सफल व्यक्तित्व बनो तुम,
हैं जितने सम्मान  प्राप्त कर |

शक्ति तुम्हें दे ईश्वर   इतनी,
रक्खो   इन्हें      सम्हाल |
जन्म दिवस की तुम्हें बधाई,
जिओ     सैकड़ों     साल |
44
बैर   किसी से कभी बने ना,
संक्ट आये  किन्तू टिके  ना |
स्वस्थ और सम्पन्न रहॉ तुम्,
होठो से, मुस्कान  मिटे  ना |

क्रमशः होते   जाएं   कर से,
नित-नित नये      कमाल |
जन्म दिवस की तुम्हें बधाई,
जिओ     सैकड़ों     साल |
45
 आदर्श दिन-चर्या             
सुबह    सवेरे उठना बेटा,
हल्की कसरत करना बेटा |

कलका पढ़ा पुनः दोहराओ,
आज है पढ़ना नज़रफिराओ |
फिर शाला की करो तैयारी,
बैग ढ़ंग से पुनः  लगाओ |
46
पूरी ड्रेस पहन कर आओ,
बैग टांग कन्धे पर ले जाओ |
पंक्तिलगा बस में तुम चढ़ना,
पंक्ति बना शाला में जाओ |

कक्षा में तुम ध्यान लगाकर,
मन पढने में पूर्ण जमाकर |
नोट करो जो नोट करायें,
अलग अलग गृहकार्य लगाकर |

हो छुट्टी मत दौड़ लगाओ,
लगा पंक्ति बस मे चढ़ जाओ |
घर  आए  आराम से उतरो,
दोनो ओर देख घर   जाओ |
47
लेकर कुछ तुम मां से खाओ,
धमा-चौकड़ी  नहीं मचाओ  |  
सुनो बात भी जो वह कहती,
होकर फ्रैश खेलने  जाओ |

खेल खत्मकर वापस आओ,
गृह का पूर्ण कार्य निबटाओ |
खाना खा बिस्तर पर जाओ, 
करो बन्द आंखें सो जाओ |
48
अविरल टूर बनाएगा           
मां पहिये लगवाले घर में,
सचल भवन हो   जाएगा |
पापा रखलें एक ड्राइवर ,
जो हर जगह    घुमाएगा |
49
स्टेशन,बस अड्डे सबकी,
बचेंगे     मारा-मारी से |
पन्द्र्ह दिन तक होनेवाली,
थकन भरी     तैयारी से |
पूसी,टामी,मिट्ठू के संग ,
छुट्टू चूहा       जाएगा |
अविरल टूर     बनाएगा |

पापा-मम्मी साथ   रहेंगे,
दीदी  साथ      निभाएगी |
दादा-दादी छूट न   पाएं,
नानी      भी आ जाएगी  |
प्यारा भय्या अर्जुन  मेरा,
साथ घूम कर    आएगा |
अविरल टूर     बनाएगा |
50

लेह और लद्दाख घूम कर,
श्री-नगर    हम   जाएंगे  |
वहां गए तो अमरनाथ के,
दर्शन  भी   कर   आएंगे  |
झझंट नहीं गरमपानी का,
गीज़र साथ   निभाएगा |
अविरल टूर     बनाएगा |

जयपुर से अजमेर घूमकर,
जायेंगे हम दिल्ली    को |
कनाट प्लेस पर चाट्पकौड़ी,
ला दें पूसी    बिल्ली को |
उसको खाते देख भौंक-कर ,
टामी   शोर    मचाएगा |
अविरल टूर     बनाएगा |
51

लखनऊ अपना देखा-भाला,
कर्नाट्क हो      आएंगे |
विधानसभा कैसी लगती है,
फोटो   वहां    खिंचाएंगे |
मिट्ठू तोता करे नमस्ते ,
छुट्टू भी    चिंचियाएगा |
अविरल टूर     बनाएगा |

सीधे-सीधे केप्-कमोरिन ,
कन्याअन्तरीप पर जाएँ   |
बैठ विवेकानन्द शिला पर,
राष्ट्र-गीत भारत का गायें  |
बिनारुके घर्  सीधा वापस,
"दूरान्तो"  सा   आएगा
अविरल टूर     बनाएगा |
52

       जन्मा एक सितारा
जय जवान,जय किसान का,
दिया    देश    को नारा |
गांधी जी की जन्म तिथि को,
जन्मा एक    ध्रुव्-तारा |

लाल बहादुर नाम था उसका,
निर्धनतम      घर-द्वारा |
नदी उफनती  तैर-तैर कर,
शाला     गया  बिचारा |
53

तन का था निर्बल लेकिन्,
मन   का  बड़ा सबल था |
आज़ादी के  महायुद्ध  मै,
रखता   भाग प्रबल   था |

आज़ादी के बाद मंत्रि  बन,
जम  कर   देश   संवारा |
एक  रेल दुर्घटना पर उसने,
त्याग दिया     पद-सारा |

नेहरु की  मृत्यु पर उसने,
प्रधान-मंत्रि   पद  पाया |
एक दिवस भोजन त्यागें सब,
त्याग -मंत्र     सिखलाया |
54

झुक चलती छोड़ नीतियां,
सख्त   रूप    अपनाया |
हमले पर पाकी  सेना  के,
रौद्र -  रूप    दिखलाया |

समझौते की बात रूस  ने,
कर ने  उन्हें     बुलाया |
पता नहीं क्या हुआ वहां पर,
लाल   न वापस   आया |

आज जरूरत पुनः   तुम्हारी,
भारत में    फिर ,  आओ | 
कद छोटा पर काम बड़ा तुम,
शास्त्री   जी   कर   जाओ |
55

       गणतन्त्र हमारा              
भिन्न सभी से सबसे न्यारा,
भारत का गणतन्त्र हमारा |
बना विश्व में श्रेष्ठ सभी से,
हमें जान से है ये   प्यारा |
56

26 जनवरी का स्वर्णिमदिन,
लेकर खुशियां आया अनगिन |
इस दिन से मुडकर न देखा,
 करता देश तरक्की  प्रति-दिन |
देख रहा विस्मित जग सारा,
भारत का गणतन्त्र हमारा |

अंतिमजन तक किया सम्रर्पित,
किया प्रशासन जन को अर्पित |
दलित-शोषितों को नियमों से,
मिलीं शक्तियां श्रेष्ठ  अकल्पित |
हर घर तक पहुंची यह धारा,
भारत का गणतन्त्र हमारा |
57

हुई शक्तियां संवैधानिक , 
लिखित होगयीं वे अधिकाधिक |
संविधान अतिश्रेष्ठ बना कर, 
संसद से करवाया     पारित |
जग में ज्यों चमका ध्रुव तारा,
भारत का गणतन्त्र हमारा |

शासन जन का जन के द्वारा,
है सशक्त जनप्रतिनिधि हमारा |
नियम बनाना,राज चलाना , 
संसद में सिमटा बल  सारा |
शासक-शासन सभी संवारा ,
भारत का गणतन्त्र हमारा |
58
  
   ट्रैफिक रूल्स बताएं              
आओ बच्चों खेल खिलाएं |
चलना सड़कों पर सिखलाएं |
चलें सड़क पर अगर नियम से,
तभी सुरक्षित जीवन पाएं |

चलें सड़क पर अपने बांए |
बिना जरूरत पार न जाऍ |
बांए-दांए रहें   देखते -,
सजग रहें और चलते जाएं |
59

करना पार , ज़िब्रा पर जाएं |
देखें अपने , दाएं- बांए |
रुकता ट्रैफिक होता सिगनल,
सड़क क्रास तब हम कर पाएं |
मन मर्जी न कभी चलाएं ,
तभी सुरक्षित जीवन पाएं |

एक पंक्ति हर जगह लिखी है |
दुर्घटना  से  देर   भली है |
हबड़-तबड़ करती दुर्घटना ,
जगह-जगह पर मौत खड़ी है |
सिगनल पालन साध्य बनाएं |
तभी सुरक्षित जीवन पाएं |
60
स्वर्ग-लोक का टिकट कटाना |
ड्राइव करते,  फोन  उठाना |
मिले अगर अर्जेन्ट काल तो,
रुको वहीं तब फोन  उठाना |
करके अपनी गाड़ी    बांए |
तभी सुरक्षित जीवन पाएं |
61
चिड़िया
दूर गगन से आती चिड़िया |
सबके मन को भाती चिड़िया |
मीठी तान सुनाती चिड़िया-,
मधुर स्वरों में गाती चिड़िया |

आंगन में आ जाती चिड़िया |
फुदक-फुदक उड़ जाती चिड़िया |
दिखे अन्न  का  दाना कोई,
ठीक वहीं पर जाती  चिड़िया |
62
आ कर नाच दिखाती चिड़िया |
फिर सीढ़ी चढ़  जाती चिड़िया |
आगे - पीछे  मां के  जाकर ,
उनका मन बहलाती  चिड़िया |

फिर करतब दिखलाती चिड़िया |
चोंच में दाना   लाती चिड़िया |
पहुंच घोंसले नवजात बुलाकर-,
दाना उन्हें खिलाती  चिड़िया  |

मां कोई हो, पशु या चिड़िया |
बच्चे   शैतानी   की पुड़िया |
देते कुछ दुख अपनी मां को ,
मां सबकुछ सह लेती दुखिया |
63

         विज्ञान-कुण्डलियां
गाड़ी पर उल्टा लिखा, एम्बुलेंस क्यों मित्र | 
आगे  गाड़ी जा रही, मिले मिरर को चित्र |
मिले मिरर को चित्र, सदा   उल्टा आएगा ,
सीधा लिख दें अगर,  पढा   कैसे जाएगा |
कहे'राजकविराय',  इसी से उल्टा लिखते,
बैकव्यु मिरर में देख, उसे हम सीधा पढते |
 64        
जले बल्ब स्विचआन से,ट्यूब लगाये देर |
पप्पू के मस्तिष्क में,घूम रहा  यह फेर |
घूम रहा यह फेर, सुनो पप्पू   विज्ञानी,
ट्यूब बिजली के मध्य,चोक स्टार्टर ज्ञानी |
कहे'राजकविराय',पहुंचती जब दोनों  में,
लेती थोड़ी देर , इसी से वह उठने  में |
 65         
पप्पू मारे हाथ, समझ में कुछ न आता |
क्यों आता है ज्वार,और क्यों आता भाटा |
और् क्यों आता भाटा,लहर यूं बनती क्यों है,
ऊंची उठती लहर,पुनः फिर गिरती क्यों है |
कहे'राजकविराय'गुरुत्वधरा चन्दा से ज्यादा,
इसी वजह से नित्य,ज्वार और भाटा आता |

66
          
पप्पू फ्रिज जब खोलता,फ्रीजर ऊपर होय |
सब में ऊपर देखकर,सिर धुनना ही होय |
सिरधुनना ही होय,खेल ये समझ नआया ,
फ्रीजर ऊपर बना रहा है,हर फ्रिज  वाला |
कहे'राज'हवा गर्म, नीचे से ऊपर उठती,
ऊपर फ्रीजर से टकराकर, ठंडी हो  जल्दी |
67
           
पृथ्वी अपने अक्ष पर, झुक साढे  तेईस |
करती है वह परिक्रमा,गिन कर पूरी तीस |
गिनकर पूरी तीस,ऋतु बदले सूर्य किरन से,
मध्य, मकर, कर्क रेखा पर चाल बदल के |
कहे'राजकविराय', गर्म-ठंडी या तम देखो,
सीधी पड़ती गर्म , नही तो ठंडा क्रम देखो |
        68   
गरम करो जब दूध को,उफन सिरे से जाय |
पानी जितना भी करो, ना उफने जल जाय |
ना उफने जल जाय, भेद यह समझ नआया,
पप्पू ने पापा को, अपना यह प्रश्न  बताया |
कहे'राज'दूध में जमती परत भाप न निकले,
अन्दर भभके  भाप, दूध संग लेकर उफने |
  69
 धमकी देकर        
   बना दो यह सम्भव हे राम |

धमकी देकर डंसते कैसे,
ये  मच्छर       बदनाम |
कान अगर मिलते हाथी से,
कितने      आते    काम |
             बना दो यह सम्भव हे राम |
70

यदि जिराफ सी गर्दन होती,
हम   खजूर   खा    आते,
सबसे ऊंची डाल पे लटका,
सेब     तोड़ कर   खाते |

घर में        बैठे-बैठे खाते,
छत        पर पड़े बादाम |
              बना दो यह सम्भव हे राम |

सारस सी टांगें मिल जातीं,
ओलम्पिक    में        जाते ,
पदक जीतकर सभी दौड़ के, 
हम     भारत     जब आते |

एरोड्रम पर करने आते,
हमको    सभी  सलाम |
              बना दो यह सम्भव हे राम |
71

पेट जो मिलता ऊंट सरीखा,
 जब दावत मे जाते,
पन्द्रह दिन का खाना खाकर्,
घर वापस हम आते |

हफ्तों-हफ्तों करते रहते,   
 घर में ही आराम |
              बना दो यह सम्भव हे राम |

बन्दर जैसी तरल चपलता,
थोड़ी सी पा   जाते ,
छीन कचौड़ी मां के कर से,
बैठ पेड़ पर   खाते |

बदले में मां को ला देते, 
पके डाल के   आम |
              बना दो यह सम्भव हे राम |
72

गरूण सरीखे पर मिल जाते, 
विश्व घूमकर आते,
दिल्ली से न्युयार्क मुफ्त में, 
निशिदिन आते-जाते |

एयर टिकिट न लेना पड़ता,
खर्च न  होते दाम |
              बना दो यह सम्भव हे राम |
                                                                                                                                                                              
 73
कैसा मामा किसका मामा
                                  
कैसा मामा किसका मामा,
चंदा लगता किसका मामा  |

क्या मामा धरती पर आया ,
क्या आकर हमको दुलराया ,.
साथ ले गया कभी गगन में,
तारा मंडल भी दिखलाया !

झूठ बोलते खा -मो -खामा,
कैसा मामा किसका मामा !
74

कभी नहीं बाज़ार घुमाया, 
कभी नहीं पिज्जा खिलवाया,
न बन्दर सी खों-खों करके,
जब रोते हम कभी हंसाया !

फिसले तो ना बाजू थामा,
कैसा मामा किसका मामा !

कभी नहीं जंगल दिखलाया,
ना भालू से कभी मिलाया,
गिफ्ट नहीं कोई दिलवाई,
नहीं कथा किस्सा सुनवाया !

ना ढपली न सा रे गा मा,
कैसा मामा किसका मामा !
75

मामा के संग बुढ़िया आती ,
साथ एक चरखा  भी लाती,
हमें नई नानी मिल जाती,
मौज हमारी तब बढ़ जाती !

खादी का  सिलती पाजामा,
कैसा मामा किसका मामा !

मामा है तो अब भी आये,
अपने रथ पर हमें बिठाये,
दूर गगन की सैर कराकर,
अच्छी-अच्छी कथा सुनाये !

और अधिक न दे अब झामा ,
कैसा मामा किसका मामा !
76

    ये तारे सब खोटे
                  
एक दिवस तारे सब मिलकर,
चंदा के घर  आये |
चंदा की मम्मी से सबने,
मीठे बोल सुनाये |

मम्मी तुम चंदा भैया का,
ध्यान नहीं कुछ रखतीं,
इतना बड़ा हो गया फिर भी,
ब्याह नहीं क्यों करतीं |
77

क्यों बूढा करतीं भैया को,
जल्दी ब्याह  करा दो |
सुन्दर सी एक नई नवेली ,
उसको दुल्हन ला दो |

चन्दा की मम्मी सुन बोली,
कैसे ब्याह  करादूं |
घटे बढे जो रोज  इसी सी,
दुल्हन कैसे ला दूँ |

दिवस अमावस का जब होगा,
कैसे सबर करेगी |
साथ इसी के वह कोमल भी, 
हर क्षण सफ़र करेगी  |
78

ये है पुरुष नियति है इसकी,
अजब  खेल  यह खेले |
पर जो बंधे साथ में  इसके,
वह क्योँ यह सब झेले |

सुन संतुष्ट हुए तारे सब, 
अपने घर सब लौटे |
चन्दा ने माँ पर भेजे थे,
ये तारे सब खोटे |
79

       गौरय्या
पहले भोर हमारे आंगन,
आ जाती थी एक गौरय्या |
बहुत दिनों से नहीं दीखती,
घर में आती वह गौरय्या |

बचा रात का अन्न पड़ा जो,
फुदक-फुदककर वह खाजाती |
कभी अगर ज्यादा दिखता तो,
वह परिवार बुला ले  आती  |

चारों ओर घुमा कर गरदन,
झट से चोंच चला जाती थी |
एक किनारे से फुदकी और,
छोर दूसरे   आ  जाती थी |
80

नन्हे-नन्हे  बच्चे   उसके,
उसकी  तरह फुदक जाते थे |
नकल उसी की कर आंगन में,
घंण्टों खेल  दिखा  जाते थे |

बहुत दिनों से आस-पास भी,
नहीं दिख रही  वह गौरय्या |
मां हम से कुछ भूल हुई क्या,
क्यों नाराज  हुई   गौरय्या | 
 89
              
      हरित बनाएं
पप्पू,टिल्लू,कल्लू, राजा |
नया खेल एक खेलें आजा |
ना तुरही,ना तबला कुछ भी,
ना शहनाई ना  कोई बाजा |

नया वर्ष इस तरह  मनाएं |
पूर्ण नगर नव हरित बनाएं |
नए-नए हितकारी  पौधे-,
हर घर में इस वर्ष लगाएं |
90

हर घर में फलदार वृक्ष हो |
जिसका हर रसदार पक्ष हो |
हर बच्चा दस पेड़ लगाए-,
हम सबका इसबार लक्ष हो |

तीन वर्ष में जब फल आएं |
खुद खाएं मित्रों को खिलाएं |
पास पड़ौस में बांटें सबको,
सबको सुन्दर स्वस्थ बनाएं |
   91
       तुमको निश्चित करना है
जीवन पथ पर चलने से पहले , 
लक्ष्य तुम्हें  अब  चुनना  है |
करलो निश्चित बनने  से पहले ,
क्या तुम को अब  बनना  है |

वीर सुभाष बनोगे   या  तुम,
बनोगे  वीर   शिवा  जी  से |
या   फिर राजस्थान- केशरी,
चाहो  कुछ  राणा  जी   से |
92

रामतीर्थ  बनना  चाहोगे, या-
भगत  सिंह  मतवाला   तुम |
सघन साधना कर   मीरा सी,
चाहो   बिष  का प्याला  तुम |

अगर चाहते    नेता   बनना,
लाल  बहादुर   सा    भय्या |
दे  कर  जान  बचाया जिसने,
भारत   का गौरव     भय्या |

कहो बनोगे क्या तुम  बच्चो , 
अभी करो यह निश्चित   तुम |
वरना बहुत    देर  हो  जाए,
फिर कब  कर  पाओगे  तुम |
93
       बाल दिवस 
बाल दिवस है आज देश में,
बच्चों का त्योहार मनोहर |
जन्म दिवस चाचा नेहरु का,
हम बच्चों की पुण्य धरोहर |

बच्चों से चाचा नेहरु का, 
अन्तर्मन से प्यार रहा था |
हर गरीब बच्चे से उनका, 
मन से जुड़ा लगाव रहा था |
95
बच्चों की उन्नति को लेकर,
कई योजना लेकर   आये |
जिससे बच्चों के जीवन में,
खुशियां ही खुशियां भर जायें |

दूर गगन पर बैठे   चाचा,
हमें आज भी देख रहे  हैं |
बच्चों का जो ख्वाब बुना था,
उसको  फलता देख रहे हैं |
96
अभी दिखता है अपनापन -
हमें कविता से रिश्ते में |
झलकता है अजब उन्माद-
 जैसा इन बहिश्तों में |
नये कवि आज जैसे -
छू रहे हैं सूर्य को जाकर ,
बहुत सम्भावनाएं दिख-
 रही  हैं  इन फरिश्तों में |
         -०-
पुरानी लीक पर  चलना-
 कभी  हमको  नहीं  भाया |
विगत गुणगान से कुछ भी-
किसी को मिल नहीं पाया |
नये पथ हम  तलाशेंगे-
शिखर की ओर जाने के -,
रखे हाथों को हाथों पर -
कभी कुछ  मिल नहीं  पाया |
97          
उठो उठ कर तलाशें हम-
नई सम्भावनाओं  को |
करें जी तोड़कर हम अब-
नई नित साधनाओं को |
सरलजीवन,सघनवैभव,-
अधिक आराम तलबी भी,
हटाकर अपने जीवन से-
मिटा दें वासनाओं   को |
           -०-
हमारे दिल में पुरखों का-
अभी भी ख्वाब बाकी है |
इसी से आंख में अपनी-
 हया की  आब बाकी है |
मुहब्बत उठ गई शहरों से -
लेकिन गांव में अब भी,
पुरानी रस्म जिन्दा है-
अदब-आदाब   बाकी  है |
98            
उदर में आसमानों से-
 सहेजा बन्द अबरों को |
उतर गहराई में दिल की-
 कुरेदा कुन्दखबरों को |
प्रसवपीड़ा सही जो"राज"-
उसकी टीस सह-सह कर,
निचोड़ा दर्द दिल का तो-
रचा है चन्द सतरों को |
            -०-
99
     समय -चक्र
निकल रहा है एक-एक पल,
अपने   जीवन से हर क्षण |
बिखर रहा है समय बीतता,
ज्यों अनन्त बिखरा कण-कण |


साथ समय के चलकर तुमने,
अगर समय को  थाम  लिया |
मनमाफिक उन्नति के पथपर,
समझो जीवन  डाल   लिया |
100
इस अनमोल समय की कीमत,
जब भी तुम      पहचानोगे |
जीवन में जो   कुछ  चाहोगे,
बिन  मांगे   वह  पा   लोगे |


व्यर्थ गंवाया  समय अगर तो,
फिर पछताना   व्यर्थ  रहेगा |
कोई तुम्हें  न धिक्कारे  पर -,
खुद की  तो धिक्कार  सहेगा |


उठो समय के साथ चलो अब,
व्यर्थ  न  बीते  समय कहीं |
ठीक समय पर ठीक जगह पर,
काम संवारे ,  सही   वही | 
101
    कथा शहीद उधमसिंह्               
इकत्तीस     जुलाई     प्रतिवर्ष,
हम को कुछ याद दिलाती है |
एक अमरकथा बलिदानी की,
आ नयनों में बस जाती है |

पंजाब प्रांत का सुनाम ग्राम,
हो गया धन्य कृत्कृत्य हुआ |
नारायणकौर सुमाता ने,
जब शेरसिंह को जन्म दिया |
102
था दिवस दिसम्बर का छब्विस,
निन्नानबे अट्ठारह सौ सन था |
पिता टहलसिहं उछल पड़े,
जब पुत्र जन्म संदेश सुना |

अल्पायु  में माता      खोकर,
परवरिश   अनाथों    में पाई |
जब अमृतपान छका    उसने,
तब नाम उधम पाया    भाई |

बचपन में जलियां बाग हुआ,
अंग्रेजों से नफरत मानी थी  |
डायर   से    बद्ला    लेने की,
मन में उसने  निज ठानी थी  |
103
इंग्लैण्ड गये  और घात लगा,
ओ डायर का बध कर डाला |
एक कील ठोक कर शासन में,
साम्राज्य ब्रिटिश को मथ डाला |

चढ़ गये खुशी से फांसी पर,
जय भारत मां की बोली थी |
अपने ही बल से  सिंह्पुरूष,
राह्-ए-आजादी खोली थी |

"काम्बोज रत्न, हे उधमसिंह्",
तुम भारत के जन-नायक हो |
तुम सिंह्-प्रसूता भारत-मां के ,
हो गये अमर,वह शावक हो |

104
    भाषा कम्प्यूटर की
भाषा कम्प्यूटर की हिन्दी है,
यह स्वयं  सिद्ध हो जाता है|
हिन्दी प्रयोग से संचालन -,
जब स्वंय सरल हो जाता है|

य़ूं तो भाषा कम्पयूटर  की,
कोई भी नहीं बिशेष बनी|
पर हिन्दी ही वह भाषा है ,
जो क्म्प्यूटर को श्रेष्ट मिली|
105

कम्प्यूटर के डाटासंग्रह में,
जितना भी डाटा अंकित है|
वह दो अंकों का खेलमात्र ,
वह दो अंकों से निर्मित है|

लगभग मिलताजुलता है यह्,
वैदिक -गणना के रंगों  से|
हो जाता सार्थक वेद-गणित ,
कम्प्यूटर की सभी तरंगों से|

यह सिद्ध हो गया है भाषा,-
कम्प्यूटर -मानक हिन्दी है|
हिन्दी ही विश्वसमन्वय की,
प्रोद्योगिक  भाषा    हिन्दी है|
106
      वृक्ष न होते
वृक्ष न होते अगर धरा पर,
सोचो तब   क्या   होता ?
होती शुष्क चटखती धरती,
शुष्क मरुस्थल     होता ?

हरियाली का नाम न होता,
कितनी मुश्किल    होती |
जितनी सुन्दर आज बनी है,
ऐसी  कहीं    न   होती |
107

पेड़ न होते  कहां से आती,
प्राण - वायु   आक्सीजन ?
कहां बैठ कर  सुस्ता पाते,
राहों     के  राही - जन |

बिना पेड़ के फल कैसे फिर,
किसी डाल    पर लगते ?
अगर न होता फल उत्पादन,
फल कैसे फिर    मिलते ?

पेड़ बिना   पक्षी  न होते,
कैसे      नीड़   बनाते ?
बिना पेड़ का जंगल भय्या,
कैसे    कहीं              लगाते ?
108

पेड़ न होते,हम बच्चों का, 
जीवन    दूभर    होता ?
बिना बृक्ष ,बारिश न होती,
सब कुछ  ऊसर    होता !
109
       चन्द्र शेखर आजाद                  
हे शीर्ष शिखर आजादी के,
स्वीकार करो शतशत प्रणाम |
हो सर्वश्रेष्ठ बलिदानी तुम,
भारत भर में हो श्रेष्ठनाम |

प्रातः स्मरणीय शिखर'चन्द्र',
तुम सा बलिदानी कौन बने |
सौ धन्य-वाद उस माता को,
जो 'शेखर' जैसा लाल जने |
110
है आज जरुरत बस इतनी,
तुम जैसा नेता  आ जाये |
सड़ चुकी व्यवस्था भारत की,
'आजाद'इसे वह कर जाये |

अवतरित तुरत हो जाओ तुम,
इस त्राहि-त्राहि को दूर करो |
भारत माता के      पौंछ अश्रु,
भारत भर का कल्याण करो |   

111
        नीड़ बनाया
कहां सीख कर आई हो तुम,
कला      प्रिय  गौरय्या |
इतना  सुन्दर नीड़ बना कर,
रहती      हो    गौरय्या |

तिनका तिनका चुनकर तुमने,
कला - कृति    रच  डाली |
सबसे   ऊंची डाल सुरक्षित ,
उस   पर    यह लटकाली |
112

अन्दर बाहर इसे सजा कर,
कमरे    तीन    बनाए  |
छोटे-छोटे गोल  द्वार   भी,
इस में    कई    बनाए |

सुन्दर   सूखे  पत्ते   लेकर ,
तुमने    नीड़     सजाया |
मन  करता है मैं भी रहलूं,
लेकिन  पहुंच   न  पाया |      








113
                        माँ 
            
नामों में माँ का श्रेष्ठ नाम, 
स्थान सभी से उंचा है /
माता का धरती पर अब भी,
सम्मान सभी से ऊँचा है /

धरती पर आते सर्वप्रथम, 
हमको जो गले लगाता है |
दुःख-दर्द सभी को भूल प्रथम,
चुम्बन करने लग जाता है |


कांटा चुभ जाये हमें कहीं,
 हम से ज्यादा हो कष्ट उसे,
माँ एक शब्द में सिमट प्रेम,
हर जगह अभय दे जाता है |
114
यह नाम है जो हर संकट में,
आता है सबसे पूर्व याद,
संकट हारी,  कल्याण परक , 
यह ध्यान सभी से ऊँचा है |
माता का धरती पर अब भी,
सम्मान सभी से ऊँचा है |
  

सुंदर-कुरूप,गंदा जैसा,
हर बच्चा उस को प्यारा है,
अपने से ज्यादा समझ उसे,
संकट से सदा उबारा है |
115
प्राणों पर संकट देखा तो, 
लड़ गयी शेर से बिना शस्त्र ,
रक्षा करने को बच्चों की,
 मृत्यु को भी ललकारा है |


ईश्वर ने दुनिया में सोंपे, 
सदनाम भले ही कितने हों,
पर माँ रूपी जो नाम दिया, 
वरदान सभी से ऊँचा है |  
माता का धरती पर अब भी,
सम्मान सभी से ऊँचा है   |









            

बुधवार, 12 अक्टूबर 2011

mamta baal ganga

1
   ममता
   बाल गंगा 
    डा.राज सक्सेना

गणेश जी की फोटो

ममता प्रकाशन,हनुमान मन्दिर,
खटीमा-२६२३०८(उत्तराखण्ड)
3
कठिन पान्डित्यप्रदर्शन,नहीं है बालगंगा में | 
अहम् के सर्प का दंशन,नहीं  है बालगंगा में |
ये सपनों का समर्पण है,जो भोली आंख ने देखे,
किसी कविदर्प का दर्शन्,नहीं है बालगंगा में |

                                                -डा.राज सक्सेना

4
 समर्पण
'बाल गंगा' का समर्पण,
 आपको , श्री-मान है |
 है नहीं संजाल शब्दों का,
 हृदय    का  गान है |

बालकविता ,  काव्य का-,
 मुझको नहीं कुछ ज्ञान है |
 किस तरह रस-छंद डालूं,
 यह्     नहीं      संज्ञान है |

 बालपन में लौट  कर जो-,
 कुछ स्वंय अनुभव किया |
 भाव वह मैंने   यथावत ,
 हर समर्पण कर   दिया |

 किंचित नहीं,मैं  भिज्ञ हूं,
 किस भाव से दूं आपको |
 मित्रवत बस कर रहा हूं,
 भेंट  यह  श्री-मान को |

 आप    चाहें    तो    हृदय, 
  इस को  लगा  कर तार दें |
 खुद पढें, सबको पढा कर,
 एक   नया  विस्तार  दें | 
             -डा.राज सक्सेना 
5
आमुख
9
     उन्नत,उज्ज्वल,उत्तराखण्ड
भरत-भूमि,भव-भूति प्रखण्ड |
उन्नत, उज्ज्वल, उत्तराखण्ड |

सकल-समन्वित,श्रमशुचिताम |
शीर्ष-सुशोभित,  श्रंग-शताम |
विरल-वनस्पति, विश्रुतवैभव,
पावन,पुण्य-प्रसून,  शिवाम |

हरित-हिमालय,हिमनदखण्ड |
उन्नत, उज्ज्वल, उत्तराखण्ड |

नन्दा, नयना,  पंच-प्रयाग |
भक्ति-भरित,भव-भूमिप्रभाग |
अन्न-रत्न आपूरित   आंगन,
तरल-तराई,    तुष्ट्-तड़ाग |

तपोनिष्ठ ,तपभूमि , प्रचण्ड |
उन्नत, उज्ज्वल, उत्तराखण्ड |

गिरिजाघर, श्रुत-श्रेष्ठ  विहार |
कलियर, हेमकुण्ड,  हरिद्वार |
परम-प्रतिष्ठित,चतुष्धाम-मय,
पावन-गंगा,   पुलक-प्रसार |

धीर, धवल-ध्वज,धराप्रखण्ड |
उन्नत, उज्ज्वल, उत्तराखण्ड |


शौर्य, सत्य, शुचिता-संवास |
सर्वधर्म,   समुदाय  समास |
पावन-प्रेम, परस्पर- पूरित,-
मूल सहित, श्रमशील प्रवास |

भ्रातृभाव, भवभक्ति  अखण्ड |
उन्नत, उज्ज्वल, उत्तराखण्ड |
10
 कहां-कहां , क्या-क्या
11
  सरस्वती-वन्दना

शारदे कुछ इस तरह का,अब मुझे वरदान दे |
निज चरण में बैठने का,अल्प सा  स्थान दे |
      साहित्य-गंगा से लबालब,
      मस्तिष्क को आपूर्ति  दे |
      हो जनन साहित्य   नव,
      यह श्रेष्ठतम स्फूर्ति   दे  |
गीत गंगा को मेरी,नित-नित नये आयाम दे |
निज चरण में बैठने का,अल्प सा  स्थान दे |
12
      हो सृजन सबसे  अनूठा,
      प्रेम की  रस-धार  हो |
      शब्द हों आपूर्त रस  में,
      अक्षरों में   प्यार  हो  |
मधु सरीखा कंठ दे, रस-पूर्ण मंगलगान  दे |
निज चरण में बैठने का,अल्प सा  स्थान दे |

      त्याग-मय जीवन  मिले,
      निर्लिप्त मन मन्दिर रहे |
      प्रेम-पूरित हों वचन सब,
      जिनको यह जिव्हा  कहे |
गंध सा फैले जगत में,वह मुझे यश-मान दे |
निज चरण में बैठने का,अल्प सा  स्थान दे |  
13
       एक सवाल          
एक पुत्र ने,निश्छल मन से,
किया पिता से एक  सवाल |
हिन्दू-मुस्लिम होते क्या हैं,
कभी-कभी क्यों करें बबाल |

पापा बोले धर्म  अलग   है,
कुछ आचार नहीं मिलते  हैं |
सामाजिक कुछ नियम अलग है,
मूल विचार नहीं  मिलते  हैं |
14

मन्दिर में हिन्दू   की  पूजा,
मस्जिद में मुस्लिमी नमाज |
हिन्दू रखें अनेकों,एक माह के-,
रोजे रखता , तुर्क   समाज |

'पापा मन्दिर' बोला  बेटा,
का निर्माण ,करे  भगवान  |
या फिर रचना हर मस्जिद की,
आकर खुद करता  रहमान |

सब धर्मी  मजदूर -  मिस्त्री,
मिल कर इनको यहां बनाते |
बन कर पूरा, होते ही क्यों,
दोनों अलग-अलग हो  जाते |
15

हिन्दू कहता ईश   एक  है,
मुस्लिम कहता  एक खुदा |
जैन,बौद्ध और सिख,ईसाई,
मिलकर भी क्यों रहें  जुदा |

बच्चे हम सब एक पिता के,
ना पूजा घर एक बनाते  |
हमसब के त्योहार अलग क्यों,
मिलकर हम क्यों नहीं मनाते |

ईश पिता जब एक  सभी का,
फिर तनाव की बात कहां  है |
सबका ईश्वर एक  जगत  में,
सबकी धरती एक  जहां   है |
16
रक्त एक सा, शक्ल  एक सी,
सब कहते  हम  हिन्दुस्तानी |
बच्चे मिलकर गले आज सब,
भूल जायं हर  बात  पुरानी |

भारत के बच्चों  को मिलकर,
काम अभी इतना  करना है |
एक नए  आदर्श देश   को,
हम सबने मिलकर रचना है | 
17
    
      हिमालय  
भारत मां के राज मुकुट सा,
सर पर जड़ा हिमालय |
जय जवान सा रक्षक बन कर,
तत्पर खड़ा हिमालय |

अविरल देकर नीर नदी को,
करता भरित हिमालय |
खेत उगलते सोना जिससे,
करता हरित  हिमालय |
 18
झेल रहा बर्फीली आंधी, 
इधर  न आने   देता-,
कष्ट सभी अपने ऊपर ही, 
बिना कहे  ले  लेता |

किन्तु नहीं हम जीने देते, 
इसको  जीवन   इसका |
धीरे-धीरे अंग भंग  कर.  
कुतर-कुतर तन इसका |
आकर हमें दिखाले दम |

कसम एक सब मिलकर खाएं,
हरा-भ्ररा हम इसे बनाएं,
लेता नहीं कभी बस देता, 
स्वर्णिम इसका  रूप बनाएं |
 19
 नहीं समझते कम              
हम सूरज और तारे हम,
खुद को नहीं समझते कम |
संशय अगर किसी के मन में,
आकर हमें दिखाले दम |

हम भारत का मान रखेंगे,
ऊंची इसकी शान रखेंगे |
झण्डा है पहचान हमारी,
झण्डे का सम्मान  रखेंगे |
20
तूफानों को रोकेंगे हम,
खुद को नहीं समझते  कम |
संशय अगर किसी के मन में,
आकर हमें दिखाले दम |

जात-पांत से दूर रहेंगे,
प्रेम-भाव भरपूर   रखेंगे |
कितने बड़े पदों पर पहुंचें,
ना सत्ता मद्-चूर रहेंगे |

ना धोखा दें, ना खाएं हम,
खुद को नहीं समझते कम |
संशय अगर किसी के मन में,
आकर हमें दिखाले दम |
21

विश्व गुरू भारत बन जाए,
जन-गण-मन को गले लगाए |
कठिन परिश्रम करके ही तो,
प्रजातन्त्र जन-जन तक जाए |

सम अधिकार दिला दें हम,
नहीं समझते खुद को कम |
संशय अगर किसी के मन में,
आकर हमें दिखाले दम |
22
आज सुना एक नई कहानी
                     
चांद- सितारे, परी-सुहानी,
एक था राजा,एक थी रानी |
कान पके यह सुनते-सुनते,
नहीं सुनेंगे,चुप जा  नानी |
आज सुना एक नई कहानी |
23
भारत का इतिहास  बता दे,
अश्वमेध क्या था  बतलादे |
भारत का किस पर शासन था,
क्यों टूटा साम्राज्य  बतादे |
किस स्तर पर थी नाकामी,
वर्ष आठ सौ सही गुलामी |
आज सुना एक नई कहानी |

सोने की चिड़िया कहलाया,
जगत्-गुरू कैसे बन पाया |
धर्म यहीं पर कैसे  जन्मे,
फिर विस्तार कहां से पाया |
नष्ट हुआ सब फिर भी अपनी,
बची संस्कृति  रही पुरानी |
आज सुना एक नई कहानी |
24
सभी क्षेत्र में था जब न्यारा,
कहां गया इतिहास  हमारा |
मुगलों,अंग्रेजों से पहले,
था भारत  सारा  नाकारा |
हवा महल थे क्या सब ज्ञानी,
या था सारा ही  अज्ञानी |
आज सुना एक नई कहानी |
25
 बाल-दिवस पर सुनले नानी
                       
बाल-दिवस पर सुनले नानी |
कसम तुझे जो बात न मानी |
नई कहानी कह अनजानी ,-
करो खत्म यह राजा-रानी |

आज़ादी की कथा सुनाओ |
भगतसिंह क्या थे बतलाओ |
झांसी की रानी कैसी थी,
उसकी पूरी कथा बताओ |
कहां लड़ी थी वह मरदानी,
करो खत्म यह राजा-रानी |
26
सावरकर क्यों जेल गये थे |
स्वंय जान पर खेल गये थे |
असहयोग का मतलब क्या था,
भरने क्यों सब जेल गये थे |
क्यों पड़ती थी लाठी खानी |
करो खत्म यह राजा-रानी |

मिली युद्ध बिन क्यों आज़ादी |
क्यों पहनी थी सबने खादी |
लोगों ने क्यों छोड़ा वैभव ,
जीवन शैली क्यों की  सादी |
क्यों सबने मरने  की ठानी ,
करो खत्म यह राजा-रानी |

बाल-दिवस कैसे यह आया |
किसने इसको प्रथम मनाया |
इस दिन को किसने बच्चों का,
अपना दिन घोषित कर वाया |
कह कलाम की कथा-कहानी,
करो खत्म यह राजा-रानी |
   27

  रविवार आयेगा             
दिन की भागदौड़ से थक कर ,
सूरज जब घर जाता |
चन्दा, लेकर बहुत सितारे,
नभ में नित आ जाता |

आंख-मिचौली क्यौ होती यह ,
समझ नहीं मै पाता |
और न समझें मां-पापा भी,
भय्या चुप रह जाता |
28
ऐक दिवस जब दादा-दादी ,
हमसे मिलने आये |
मैने सारे प्रश्न सामने ,
उनके यह दोहराये |

सुन कर दादा-दादी बोले ,
कारण बहुत सरल है |
सूरज को घर भेजा जाता,
लाना उसको कल है |

ना जाये जो घर पर सूरज ,
कल कैसे लायेगा |
छैः कल बीतें तो छुट्टी का,
वार रवि आयेगा |
29
  आज़ादी सुन बात मेरी  
    
ऐ आज़ादी सुन बात मेरी,
मैं तुझको सत्य दिखाता हूं |
चढ़ तू जिन कन्धों पर आई,
मैं उनकी व्यथा बताता हूं |

ये स्लमबस्ती है भारत की,
इसको सब कहते हैं कलंक |
कितनी कोठी खाली-सूनी,
दिन-रात यहां मनता बसंत | 
30
परिवार आठ का रह्ता है,
एक आठ-आठ के कमरे में |
पीढ़ी कमरे में    जनी कई,
 त्यौहार  मने सब कमरे में |

कमरे से बाहर    एक बच्चा,
जो पुण्य धरोहर हम सब की |
खाना    तलाशता    कूड़े से, 
कुछ भूख मिटे उसके तन की |

बच्ची बारह की होते ही, 
बाई हो जाती    कोठी   में |
अनचाहे या बेबस होकर,
इज़्ज़त लुटवाती  कोटी   में |
31
टी बी से ग्रसित दादा-दादी,
तिल-तिलकर मरते जाते हैं |
आज़ाद मुल्क में दवा बिना,
फुटपाथों पर   मर जाते हैं |

धन सिमटगया कुछ खातोंमें,
आधिक्यहुआ कुछ चीजों का |
अधिसंख्य अभावसे ग्रसित यहां,
अडडा हरसड़क कनीजों का |

रिश्वतखोरी का आलम यह,
बिन रिश्वत काम न  होता है |
जिनको रक्खा है  काम हेतु,
हर  टांग पसारे   सोता  है |
32
मंत्री,पी एम ओ झूठ कहे,
सब छिपे भेड़ की खालों   में |
उदघाट्न तक सड्कें चलतीं,
पुल गिर जाते कुछ सालों में |

बस यही रास्ता बचता है , 
झण्डा  लेकर अब  हाथों में |
उठ समरभूमि में कूद पडो, 
घुस जाओ भ्रष्ठ  ठिकानों में |
33
 सूरज तुम क्यों रोज निकलते
                   
सूरज तुम क्यों रोज निकलते,
छुट्टी कभी नहीं क्यों जाते |
सातों दिन छुट्टी पर रह कर,
नियमों की क्यों ह्सीं उड़ाते |

भोर हुई मां चिल्ला उठती ,
उठ बेटा सूरज उग आया-,
आंखें खोलो झप्-झप जातीं,
सिकुड़ सिमट अलसाती काया |
34
सिर्फ तुम्ही हो जिसके कारण,
नींद नहीं पूरी हो पाती,
क्लास रूम में बैठे-बैठे , 
अनचाहे झपकी आ जाती |

सूरज तुम स्वामी हो सबके, 
नियमों का कुछ पालन करलो |
एक दिवस बस सोमवार को,
छुट्टी तुम निर्धारित करलो |

नहीं उगे तो छुट्टी अपनी, 
सण्डे संग मण्डे की होगी,
जीभर सो ले दो दिन तक तो, 
फिक्र नहीं डण्डे की होगी |
35
संभव ना हो किसी तरह ये, 
इतना तो तुम कल से करना,
थोडा सो लें अधिक देर हम, 
कल से तुम नौ बजे निकलना |
36
      दुखियों पर दया

पशुओं पर दया नहीं जिसको,
वह पशुवत है इन्सान  नहीं |
अपनापन पशु से रखता हो, 
वह ही मानव, इंसान वही |

देकर दधीचि ने अस्थि-दान,
मानवकुल का कल्याण किया |
शिवि ने बहेलिये निष्ठुर  को,
खग रक्षा में निजमांस दिया |
37
जो काम और के आ  जाये,
लगता है तब भगवान वही |
अपनापन पशु से रखता हो, 
वह ही मानव, इंसान वही |

महाराज रन्तिदेव ने अपना, 
भोजन तक सबको दे डाला |
भगवान बुद्ध ने दुखहरण हेतु,
एक नया धर्म ही रच डाला |

सम्पूर्ण राज्य और वैभव का,
समझा कणभर भी मूल्य नहीं |
अपनापन पशु से रखता हो, 
वह ही मानव, इंसान वही |
38
ईसामसीह ने आगे बढ कर,
संदेश दिया था जनता  को |
तीर्थंकर महावीर श्री स्वामी ने,
था श्रेष्ठ कहा इस क्षमता को |


जितने भी महापुरुष जग के,
कहते  रहते थे बात  यही |
अपनापन पशु से रखता हो, 
वह ही मानव, इंसान वही |

गांधी ने इस युग में आकर, 
इस दया भाव को अपनाया |
आदर्श बने इस के कारण ,
जिसको जग भर ने अपनाया |
39
उन्नति का है यह मूलमंत्र ,
संशय इसमें है नहीं  कहीं |
अपनापन पशु से रखता हो, 
वह ही मानव, इंसान वही |  
40
          तीनों बन्दर            
गांधी जी के तीनों बन्दर ,
बैठे बाल-पार्क के अन्दर |
सुखकरजीवन को जीने के,
बांट रहे हैं सबको मन्तर |

हाथ कानपर रखकर भोला,
हम सबसे यह मन्तर बोला |
नहीं किसी की सुनो बुराई,
सुखी रहोगे राज ये खोला |
41
हाथ आंख पर रखकर भाई,
कह्ता यह मत देख बुराई |
अच्छा अच्छा सबकुछ देखो,
नहीं किसी से ठने लड़ाई |

मुख पर हाथ रखे जो रहता,
हाथ हटा कर हम से कहता |
मैं मन्तर यह बता रहा हूं ,
बुरा न बोले सुख से रहता |

बापू ने यह सूत्र    सुझाये ,
बन्दर तीन प्रतीक  बनाये |
सत्य,शान्ति,सुख रहे हमेशा,
इनके माध्यम से सिखलाये |
42
      जन्म-दिवस             
जन्म दिवस की तुम्हें बधाई,
जिओ     सैकड़ों     साल |
जीवन हो पल-पल आनन्दित,
हो   उन्नत   नित   भाल |

टूट कर सुख-समृद्धि  बरसे,
वन उपवन सा जीवन महके |
कहीं शोक की  पड़े न छाया,
मन का पक्षी खुलकर चहके |
43

जीवन हो पल-पल आनन्दित,
दोस्त     फुलाएं     गाल |
जन्म दिवस की तुम्हें बधाई,
जिओ     सैकड़ों     साल |

दुनिया के ऐश्वर्य प्राप्त   कर,
शिक्षा  के प्रतिमान प्राप्तकर |
एक सफल व्यक्तित्व बनो तुम,
हैं जितने सम्मान  प्राप्त कर |

शक्ति तुम्हें दे ईश्वर   इतनी,
रक्खो   इन्हें      सम्हाल |
जन्म दिवस की तुम्हें बधाई,
जिओ     सैकड़ों     साल |
44
बैर   किसी से कभी बने ना,
संक्ट आये  किन्तू टिके  ना |
स्वस्थ और सम्पन्न रहॉ तुम्,
होठो से, मुस्कान  मिटे  ना |

क्रमशः होते   जाएं   कर से,
नित-नित नये      कमाल |
जन्म दिवस की तुम्हें बधाई,
जिओ     सैकड़ों     साल |
45
 आदर्श दिन-चर्या             
सुबह    सवेरे उठना बेटा,
हल्की कसरत करना बेटा |


कलका पढ़ा पुनः दोहराओ,
आज है पढ़ना नज़रफिराओ |
फिर शाला की करो तैयारी,
बैग ढ़ंग से पुनः  लगाओ |
46
पूरी ड्रेस पहन कर आओ,
बैग टांग कन्धे पर ले जाओ |
पंक्तिलगा बस में तुम चढ़ना,
पंक्ति बना शाला में जाओ |

कक्षा में तुम ध्यान लगाकर,
मन पढने में पूर्ण जमाकर |
नोट करो जो नोट करायें,
अलग अलग गृहकार्य लगाकर |

हो छुट्टी मत दौड़ लगाओ,
लगा पंक्ति बस मे चढ़ जाओ |
घर  आए  आराम से उतरो,
दोनो ओर देख घर   जाओ |
47
लेकर कुछ तुम मां से खाओ,
धमा-चौकड़ी  नहीं मचाओ  |  
सुनो बात भी जो वह कहती,
होकर फ्रैश खेलने  जाओ |

खेल खत्मकर वापस आओ,
गृह का पूर्ण कार्य निबटाओ |
खाना खा बिस्तर पर जाओ, 
करो बन्द आंखें सो जाओ |
48
अविरल टूर बनाएगा           
मां पहिये लगवाले घर में,
सचल भवन हो   जाएगा |
पापा रखलें एक ड्राइवर ,
जो हर जगह    घुमाएगा |
49
स्टेशन,बस अड्डे सबकी,
बचेंगे     मारा-मारी से |
पन्द्र्ह दिन तक होनेवाली,
थकन भरी     तैयारी से |
पूसी,टामी,मिट्ठू के संग ,
छुट्टू चूहा       जाएगा |
अविरल टूर     बनाएगा |

पापा-मम्मी साथ   रहेंगे,
दीदी  साथ      निभाएगी |
दादा-दादी छूट न   पाएं,
नानी      भी आ जाएगी  |
प्यारा भय्या अर्जुन  मेरा,
साथ घूम कर    आएगा |
अविरल टूर     बनाएगा |
50
लेह और लद्दाख घूम कर,
श्री-नगर    हम   जाएंगे  |
वहां गए तो अमरनाथ के,
दर्शन  भी   कर   आएंगे  |
झझंट नहीं गरमपानी का,
गीज़र साथ   निभाएगा |
अविरल टूर     बनाएगा |

जयपुर से अजमेर घूमकर,
जायेंगे हम दिल्ली    को |
कनाट प्लेस पर चाट्पकौड़ी,
ला दें पूसी    बिल्ली को |
उसको खाते देख भौंक-कर ,
टामी   शोर    मचाएगा |
अविरल टूर     बनाएगा |
51

लखनऊ अपना देखा-भाला,
कर्नाट्क हो      आएंगे |
विधानसभा कैसी लगती है,
फोटो   वहां    खिंचाएंगे |
मिट्ठू तोता करे नमस्ते ,
छुट्टू भी    चिंचियाएगा |
अविरल टूर     बनाएगा |

सीधे-सीधे केप्-कमोरिन ,
कन्याअन्तरीप पर जाएँ   |
बैठ विवेकानन्द शिला पर,
राष्ट्र-गीत भारत का गायें  |
बिनारुके घर्  सीधा वापस,
"दूरान्तो"  सा   आएगा
अविरल टूर     बनाएगा |
52

       जन्मा एक सितारा
जय जवान,जय किसान का,
दिया    देश    को नारा |
गांधी जी की जन्म तिथि को,
जन्मा एक    ध्रुव्-तारा |

लाल बहादुर नाम था उसका,
निर्धनतम      घर-द्वारा |
नदी उफनती  तैर-तैर कर,
शाला     गया  बिचारा |
53

तन का था निर्बल लेकिन्,
मन   का  बड़ा सबल था |
आज़ादी के  महायुद्ध  मै,
रखता   भाग प्रबल   था |

आज़ादी के बाद मंत्रि  बन,
जम  कर   देश   संवारा |
एक  रेल दुर्घटना पर उसने,
त्याग दिया     पद-सारा |

नेहरु की  मृत्यु पर उसने,
प्रधान-मंत्रि   पद  पाया |
एक दिवस भोजन त्यागें सब,
त्याग -मंत्र     सिखलाया |
54

झुक चलती छोड़ नीतियां,
सख्त   रूप    अपनाया |
हमले पर पाकी  सेना  के,
रौद्र -  रूप    दिखलाया |

समझौते की बात रूस  ने,
कर ने  उन्हें     बुलाया |
पता नहीं क्या हुआ वहां पर,
लाल   न वापस   आया |

आज जरूरत पुनः   तुम्हारी,
भारत में    फिर ,  आओ | 
कद छोटा पर काम बड़ा तुम,
शास्त्री   जी   कर   जाओ |
55

       गणतन्त्र हमारा              
भिन्न सभी से सबसे न्यारा,
भारत का गणतन्त्र हमारा |
बना विश्व में श्रेष्ठ सभी से,
हमें जान से है ये   प्यारा |
56

26 जनवरी का स्वर्णिमदिन,
लेकर खुशियां आया अनगिन |
इस दिन से मुडकर न देखा,
 करता देश तरक्की  प्रति-दिन |
देख रहा विस्मित जग सारा,
भारत का गणतन्त्र हमारा |

अंतिमजन तक किया सम्रर्पित,
किया प्रशासन जन को अर्पित |
दलित-शोषितों को नियमों से,
मिलीं शक्तियां श्रेष्ठ  अकल्पित |
हर घर तक पहुंची यह धारा,
भारत का गणतन्त्र हमारा |
57

हुई शक्तियां संवैधानिक , 
लिखित होगयीं वे अधिकाधिक |
संविधान अतिश्रेष्ठ बना कर, 
संसद से करवाया     पारित |
जग में ज्यों चमका ध्रुव तारा,
भारत का गणतन्त्र हमारा |

शासन जन का जन के द्वारा,
है सशक्त जनप्रतिनिधि हमारा |
नियम बनाना,राज चलाना , 
संसद में सिमटा बल  सारा |
शासक-शासन सभी संवारा ,
भारत का गणतन्त्र हमारा |
58
  
   ट्रैफिक रूल्स बताएं              
आओ बच्चों खेल खिलाएं |
चलना सड़कों पर सिखलाएं |
चलें सड़क पर अगर नियम से,
तभी सुरक्षित जीवन पाएं |

चलें सड़क पर अपने बांए |
बिना जरूरत पार न जाऍ |
बांए-दांए रहें   देखते -,
सजग रहें और चलते जाएं |
59

करना पार , ज़िब्रा पर जाएं |
देखें अपने , दाएं- बांए |
रुकता ट्रैफिक होता सिगनल,
सड़क क्रास तब हम कर पाएं |
मन मर्जी न कभी चलाएं ,
तभी सुरक्षित जीवन पाएं |

एक पंक्ति हर जगह लिखी है |
दुर्घटना  से  देर   भली है |
हबड़-तबड़ करती दुर्घटना ,
जगह-जगह पर मौत खड़ी है |
सिगनल पालन साध्य बनाएं |
तभी सुरक्षित जीवन पाएं |
60
स्वर्ग-लोक का टिकट कटाना |
ड्राइव करते,  फोन  उठाना |
मिले अगर अर्जेन्ट काल तो,
रुको वहीं तब फोन  उठाना |
करके अपनी गाड़ी    बांए |
तभी सुरक्षित जीवन पाएं |
61
चिड़िया
दूर गगन से आती चिड़िया |
सबके मन को भाती चिड़िया |
मीठी तान सुनाती चिड़िया-,
मधुर स्वरों में गाती चिड़िया |

आंगन में आ जाती चिड़िया |
फुदक-फुदक उड़ जाती चिड़िया |
दिखे अन्न  का  दाना कोई,
ठीक वहीं पर जाती  चिड़िया |
62
आ कर नाच दिखाती चिड़िया |
फिर सीढ़ी चढ़  जाती चिड़िया |
आगे - पीछे  मां के  जाकर ,
उनका मन बहलाती  चिड़िया |

फिर करतब दिखलाती चिड़िया |
चोंच में दाना   लाती चिड़िया |
पहुंच घोंसले नवजात बुलाकर-,
दाना उन्हें खिलाती  चिड़िया  |

मां कोई हो, पशु या चिड़िया |
बच्चे   शैतानी   की पुड़िया |
देते कुछ दुख अपनी मां को ,
मां सबकुछ सह लेती दुखिया |
63

         विज्ञान-कुण्डलियां
गाड़ी पर उल्टा लिखा, एम्बुलेंस क्यों मित्र | 
आगे  गाड़ी जा रही, मिले मिरर को चित्र |
मिले मिरर को चित्र, सदा   उल्टा आएगा ,
सीधा लिख दें अगर,  पढा   कैसे जाएगा |
कहे'राजकविराय',  इसी से उल्टा लिखते,
बैकव्यु मिरर में देख, उसे हम सीधा पढते |
 64        
जले बल्ब स्विचआन से,ट्यूब लगाये देर |
पप्पू के मस्तिष्क में,घूम रहा  यह फेर |
घूम रहा यह फेर, सुनो पप्पू   विज्ञानी,
ट्यूब बिजली के मध्य,चोक स्टार्टर ज्ञानी |
कहे'राजकविराय',पहुंचती जब दोनों  में,
लेती थोड़ी देर , इसी से वह उठने  में |
 65         
पप्पू मारे हाथ, समझ में कुछ न आता |
क्यों आता है ज्वार,और क्यों आता भाटा |
और् क्यों आता भाटा,लहर यूं बनती क्यों है,
ऊंची उठती लहर,पुनः फिर गिरती क्यों है |
कहे'राजकविराय'गुरुत्वधरा चन्दा से ज्यादा,
इसी वजह से नित्य,ज्वार और भाटा आता |
66
          
पप्पू फ्रिज जब खोलता,फ्रीजर ऊपर होय |
सब में ऊपर देखकर,सिर धुनना ही होय |
सिरधुनना ही होय,खेल ये समझ नआया ,
फ्रीजर ऊपर बना रहा है,हर फ्रिज  वाला |
कहे'राज'हवा गर्म, नीचे से ऊपर उठती,
ऊपर फ्रीजर से टकराकर, ठंडी हो  जल्दी |
67
           
पृथ्वी अपने अक्ष पर, झुक साढे  तेईस |
करती है वह परिक्रमा,गिन कर पूरी तीस |
गिनकर पूरी तीस,ऋतु बदले सूर्य किरन से,
मध्य, मकर, कर्क रेखा पर चाल बदल के |
कहे'राजकविराय', गर्म-ठंडी या तम देखो,
सीधी पड़ती गर्म , नही तो ठंडा क्रम देखो |

        68   
गरम करो जब दूध को,उफन सिरे से जाय |
पानी जितना भी करो, ना उफने जल जाय |
ना उफने जल जाय, भेद यह समझ नआया,
पप्पू ने पापा को, अपना यह प्रश्न  बताया |
कहे'राज'दूध में जमती परत भाप न निकले,
अन्दर भभके  भाप, दूध संग लेकर उफने |

  69
 धमकी देकर        
   बना दो यह सम्भव हे राम |

धमकी देकर डंसते कैसे,
ये  मच्छर       बदनाम |
कान अगर मिलते हाथी से,
कितने      आते    काम |
             बना दो यह सम्भव हे राम |
70

यदि जिराफ सी गर्दन होती,
हम   खजूर   खा    आते,
सबसे ऊंची डाल पे लटका,
सेब     तोड़ कर   खाते |

घर में        बैठे-बैठे खाते,
छत        पर पड़े बादाम |
              बना दो यह सम्भव हे राम |

सारस सी टांगें मिल जातीं,
ओलम्पिक    में        जाते ,
पदक जीतकर सभी दौड़ के, 
हम     भारत     जब आते |

एरोड्रम पर करने आते,
हमको    सभी  सलाम |
              बना दो यह सम्भव हे राम |
71

पेट जो मिलता ऊंट सरीखा,
 जब दावत मे जाते,
पन्द्रह दिन का खाना खाकर्,
घर वापस हम आते |

हफ्तों-हफ्तों करते रहते,   
 घर में ही आराम |
              बना दो यह सम्भव हे राम |

बन्दर जैसी तरल चपलता,
थोड़ी सी पा   जाते ,
छीन कचौड़ी मां के कर से,
बैठ पेड़ पर   खाते |

बदले में मां को ला देते, 
पके डाल के   आम |
              बना दो यह सम्भव हे राम |
72

गरूण सरीखे पर मिल जाते, 
विश्व घूमकर आते,
दिल्ली से न्युयार्क मुफ्त में, 
निशिदिन आते-जाते |

एयर टिकिट न लेना पड़ता,
खर्च न  होते दाम |
              बना दो यह सम्भव हे राम |
 73
कैसा मामा किसका मामा
                                  
कैसा मामा किसका मामा,
चंदा लगता किसका मामा  |

क्या मामा धरती पर आया ,
क्या आकर हमको दुलराया ,.
साथ ले गया कभी गगन में,
तारा मंडल भी दिखलाया !

झूठ बोलते खा -मो -खामा,
कैसा मामा किसका मामा !
74

कभी नहीं बाज़ार घुमाया, 
कभी नहीं पिज्जा खिलवाया,
न बन्दर सी खों-खों करके,
जब रोते हम कभी हंसाया !

फिसले तो ना बाजू थामा,
कैसा मामा किसका मामा !

कभी नहीं जंगल दिखलाया,
ना भालू से कभी मिलाया,
गिफ्ट नहीं कोई दिलवाई,
नहीं कथा किस्सा सुनवाया !

ना ढपली न सा रे गा मा,
कैसा मामा किसका मामा !
75

मामा के संग बुढ़िया आती ,
साथ एक चरखा  भी लाती,
हमें नई नानी मिल जाती,
मौज हमारी तब बढ़ जाती !

खादी का  सिलती पाजामा,
कैसा मामा किसका मामा !

मामा है तो अब भी आये,
अपने रथ पर हमें बिठाये,
दूर गगन की सैर कराकर,
अच्छी-अच्छी कथा सुनाये !

और अधिक न दे अब झामा ,
कैसा मामा किसका मामा !
76

    ये तारे सब खोटे
                  
एक दिवस तारे सब मिलकर,
चंदा के घर  आये |
चंदा की मम्मी से सबने,
मीठे बोल सुनाये |

मम्मी तुम चंदा भैया का,
ध्यान नहीं कुछ रखतीं,
इतना बड़ा हो गया फिर भी,
ब्याह नहीं क्यों करतीं 
77

क्यों बूढा करतीं भैया को,
जल्दी ब्याह  करा दो |
सुन्दर सी एक नई नवेली ,
उसको दुल्हन ला दो |

चन्दा की मम्मी सुन बोली,
कैसे ब्याह  करादूं |
घटे बढे जो रोज  इसी सी,
दुल्हन कैसे ला दूँ |

दिवस अमावस का जब होगा,
कैसे सबर करेगी |
साथ इसी के वह कोमल भी, 
हर क्षण सफ़र करेगी  
78

ये है पुरुष नियति है इसकी,
अजब  खेल  यह खेले |
पर जो बंधे साथ में  इसके,
वह क्योँ यह सब झेले |

सुन संतुष्ट हुए तारे सब, 
अपने घर सब लौटे |
चन्दा ने माँ पर भेजे थे,
ये तारे सब खोटे |
79

       गौरय्या
पहले भोर हमारे आंगन,
आ जाती थी एक गौरय्या |
बहुत दिनों से नहीं दीखती,
घर में आती वह गौरय्या |

बचा रात का अन्न पड़ा जो,
फुदक-फुदककर वह खाजाती |
कभी अगर ज्यादा दिखता तो,
वह परिवार बुला ले  आती  |

चारों ओर घुमा कर गरदन,
झट से चोंच चला जाती थी |
एक किनारे से फुदकी और,
छोर दूसरे   आ  जाती थी |
80

नन्हे-नन्हे  बच्चे   उसके,
उसकी  तरह फुदक जाते थे |
नकल उसी की कर आंगन में,
घंण्टों खेल  दिखा  जाते थे |

बहुत दिनों से आस-पास भी,
नहीं दिख रही  वह गौरय्या |
मां हम से कुछ भूल हुई क्या,
क्यों नाराज  हुई   गौरय्या | 
 89
              
      हरित बनाएं
पप्पू,टिल्लू,कल्लू, राजा |
नया खेल एक खेलें आजा |
ना तुरही,ना तबला कुछ भी,
ना शहनाई ना  कोई बाजा |

नया वर्ष इस तरह  मनाएं |
पूर्ण नगर नव हरित बनाएं |
नए-नए हितकारी  पौधे-,
हर घर में इस वर्ष लगाएं |
90

हर घर में फलदार वृक्ष हो |
जिसका हर रसदार पक्ष हो |
हर बच्चा दस पेड़ लगाए-,
हम सबका इसबार लक्ष हो |

तीन वर्ष में जब फल आएं |
खुद खाएं मित्रों को खिलाएं |
पास पड़ौस में बांटें सबको,
सबको सुन्दर स्वस्थ बनाएं |
   91
       तुमको निश्चित करना है
जीवन पथ पर चलने से पहले , 
लक्ष्य तुम्हें  अब  चुनना  है |
करलो निश्चित बनने  से पहले ,
क्या तुम को अब  बनना  है |

वीर सुभाष बनोगे   या  तुम,
बनोगे  वीर   शिवा  जी  से |
या   फिर राजस्थान- केशरी,
चाहो  कुछ  राणा  जी   से |
92

रामतीर्थ  बनना  चाहोगे, या-
भगत  सिंह  मतवाला   तुम |
सघन साधना कर   मीरा सी,
चाहो   बिष  का प्याला  तुम |

अगर चाहते    नेता   बनना,
लाल  बहादुर   सा    भय्या |
दे  कर  जान  बचाया जिसने,
भारत   का गौरव     भय्या |

कहो बनोगे क्या तुम  बच्चो , 
अभी करो यह निश्चित   तुम |
वरना बहुत    देर  हो  जाए,
फिर कब  कर  पाओगे  तुम |
93
       बाल दिवस 
बाल दिवस है आज देश में,
बच्चों का त्योहार मनोहर |
जन्म दिवस चाचा नेहरु का,
हम बच्चों की पुण्य धरोहर |

बच्चों से चाचा नेहरु का, 
अन्तर्मन से प्यार रहा था |
हर गरीब बच्चे से उनका, 
मन से जुड़ा लगाव रहा था |
95
बच्चों की उन्नति को लेकर,
कई योजना लेकर   आये |
जिससे बच्चों के जीवन में,
खुशियां ही खुशियां भर जायें |

दूर गगन पर बैठे   चाचा,
हमें आज भी देख रहे  हैं |
बच्चों का जो ख्वाब बुना था,
उसको  फलता देख रहे हैं |
96
अभी दिखता है अपनापन -
हमें कविता से रिश्ते में |
झलकता है अजब उन्माद-
 जैसा इन बहिश्तों में |
नये कवि आज जैसे -
छू रहे हैं सूर्य को जाकर ,
बहुत सम्भावनाएं दिख-
 रही  हैं  इन फरिश्तों में |
         -०-
पुरानी लीक पर  चलना-
 कभी  हमको  नहीं  भाया |
विगत गुणगान से कुछ भी-
किसी को मिल नहीं पाया |
नये पथ हम  तलाशेंगे-
शिखर की ओर जाने के -,
रखे हाथों को हाथों पर -
कभी कुछ  मिल नहीं  पाया |
97          
उठो उठ कर तलाशें हम-
नई सम्भावनाओं  को |
करें जी तोड़कर हम अब-
नई नित साधनाओं को |
सरलजीवन,सघनवैभव,-
अधिक आराम तलबी भी,
हटाकर अपने जीवन से-
मिटा दें वासनाओं   को |
           -०-
हमारे दिल में पुरखों का-
अभी भी ख्वाब बाकी है |
इसी से आंख में अपनी-
 हया की  आब बाकी है |
मुहब्बत उठ गई शहरों से -
लेकिन गांव में अब भी,
पुरानी रस्म जिन्दा है-
अदब-आदाब   बाकी  है |
98            
उदर में आसमानों से-
 सहेजा बन्द अबरों को |
उतर गहराई में दिल की-
 कुरेदा कुन्दखबरों को |
प्रसवपीड़ा सही जो"राज"-
उसकी टीस सह-सह कर,
निचोड़ा दर्द दिल का तो-
रचा है चन्द सतरों को |
            -०-
99
     समय -चक्र
निकल रहा है एक-एक पल,
अपने   जीवन से हर क्षण |
बिखर रहा है समय बीतता,
ज्यों अनन्त बिखरा कण-कण |


साथ समय के चलकर तुमने,
अगर समय को  थाम  लिया |
मनमाफिक उन्नति के पथपर,
समझो जीवन  डाल   लिया |
100
इस अनमोल समय की कीमत,
जब भी तुम      पहचानोगे |
जीवन में जो   कुछ  चाहोगे,
बिन  मांगे   वह  पा   लोगे |


व्यर्थ गंवाया  समय अगर तो,
फिर पछताना   व्यर्थ  रहेगा |
कोई तुम्हें  न धिक्कारे  पर -,
खुद की  तो धिक्कार  सहेगा |


उठो समय के साथ चलो अब,
व्यर्थ  न  बीते  समय कहीं |
ठीक समय पर ठीक जगह पर,
काम संवारे ,  सही   वही | 
101
    कथा शहीद उधमसिंह्               
इकत्तीस     जुलाई     प्रतिवर्ष,
हम को कुछ याद दिलाती है |
एक अमरकथा बलिदानी की,
आ नयनों में बस जाती है |

पंजाब प्रांत का सुनाम ग्राम,
हो गया धन्य कृत्कृत्य हुआ |
नारायणकौर सुमाता ने,
जब शेरसिंह को जन्म दिया |
102
था दिवस दिसम्बर का छब्विस,
निन्नानबे अट्ठारह सौ सन था |
पिता टहलसिहं उछल पड़े,
जब पुत्र जन्म संदेश सुना |

अल्पायु  में माता      खोकर,
परवरिश   अनाथों    में पाई |
जब अमृतपान छका    उसने,
तब नाम उधम पाया    भाई |

बचपन में जलियां बाग हुआ,
अंग्रेजों से नफरत मानी थी  |
डायर   से    बद्ला    लेने की,
मन में उसने  निज ठानी थी  |
103
इंग्लैण्ड गये  और घात लगा,
ओ डायर का बध कर डाला |
एक कील ठोक कर शासन में,
साम्राज्य ब्रिटिश को मथ डाला |

चढ़ गये खुशी से फांसी पर,
जय भारत मां की बोली थी |
अपने ही बल से  सिंह्पुरूष,
राह्-ए-आजादी खोली थी |

"काम्बोज रत्न, हे उधमसिंह्",
तुम भारत के जन-नायक हो |
तुम सिंह्-प्रसूता भारत-मां के ,
हो गये अमर,वह शावक हो |
104
    भाषा कम्प्यूटर की
भाषा कम्प्यूटर की हिन्दी है,
यह स्वयं  सिद्ध हो जाता है|
हिन्दी प्रयोग से संचालन -,
जब स्वंय सरल हो जाता है|

य़ूं तो भाषा कम्पयूटर  की,
कोई भी नहीं बिशेष बनी|
पर हिन्दी ही वह भाषा है ,
जो क्म्प्यूटर को श्रेष्ट मिली|
105

कम्प्यूटर के डाटासंग्रह में,
जितना भी डाटा अंकित है|
वह दो अंकों का खेलमात्र ,
वह दो अंकों से निर्मित है|

लगभग मिलताजुलता है यह्,
वैदिक -गणना के रंगों  से|
हो जाता सार्थक वेद-गणित ,
कम्प्यूटर की सभी तरंगों से|

यह सिद्ध हो गया है भाषा,-
कम्प्यूटर -मानक हिन्दी है|
हिन्दी ही विश्वसमन्वय की,
प्रोद्योगिक  भाषा    हिन्दी है|
106
      वृक्ष न होते
वृक्ष न होते अगर धरा पर,
सोचो तब   क्या   होता ?
होती शुष्क चटखती धरती,
शुष्क मरुस्थल     होता ?

हरियाली का नाम न होता,
कितनी मुश्किल    होती |
जितनी सुन्दर आज बनी है,
ऐसी  कहीं    न   होती |
107

पेड़ न होते  कहां से आती,
प्राण - वायु   आक्सीजन ?
कहां बैठ कर  सुस्ता पाते,
राहों     के  राही - जन |

बिना पेड़ के फल कैसे फिर,
किसी डाल    पर लगते ?
अगर न होता फल उत्पादन,
फल कैसे फिर    मिलते ?

पेड़ बिना   पक्षी  न होते,
कैसे      नीड़   बनाते ?
बिना पेड़ का जंगल भय्या,
कैसे    कहीं              लगाते ?
108

पेड़ न होते,हम बच्चों का, 
जीवन    दूभर    होता ?
बिना बृक्ष ,बारिश न होती,
सब कुछ  ऊसर    होता !
109
       चन्द्र शेखर आजाद                  
हे शीर्ष शिखर आजादी के,
स्वीकार करो शतशत प्रणाम |
हो सर्वश्रेष्ठ बलिदानी तुम,
भारत भर में हो श्रेष्ठनाम |

प्रातः स्मरणीय शिखर'चन्द्र',
तुम सा बलिदानी कौन बने |
सौ धन्य-वाद उस माता को,
जो 'शेखर' जैसा लाल जने |
110
है आज जरुरत बस इतनी,
तुम जैसा नेता  आ जाये |
सड़ चुकी व्यवस्था भारत की,
'आजाद'इसे वह कर जाये |

अवतरित तुरत हो जाओ तुम,
इस त्राहि-त्राहि को दूर करो |
भारत माता के      पौंछ अश्रु,
भारत भर का कल्याण करो |   
110
        नीड़ बनाया
कहां सीख कर आई हो तुम,
कला      प्रिय  गौरय्या |
इतना  सुन्दर नीड़ बना कर,
रहती      हो    गौरय्या |

तिनका तिनका चुनकर तुमने,
कला - कृति    रच  डाली |
सबसे   ऊंची डाल सुरक्षित ,
उस   पर    यह लटकाली |

अन्दर बाहर इसे सजा कर,
कमरे    तीन    बनाए  |
छोटे-छोटे गोल  द्वार   भी,
इस में    कई    बनाए |

सुन्दर   सूखे  पत्ते   लेकर ,
तुमने    नीड़     सजाया |
मन  करता है मैं भी रहलूं,
लेकिन  पहुंच   न  पाया |