सुख्,शांति,सरसता बहने दो
-राज सक्सेना
विषवाण न छोड़ो वाणी से, अमृत सी कविता कहने दो |
रखदो इन घातक तीरों को,सुख,शांति,सरसता बहने दो |
मानवरक्तों से लथपथ जो,
क्यों उठा लिए दोधारे हैं |
इनपर जिनका भी रक्त लगा,
वे भी तो सभी हमारे हैं |
छोड़ो सब मुद्दे लड़ने के, तज - कटुता,मृदुता रहने दो |
रखदो इन घातक तीरों को,सुख,शांति,सरसता बहने दो |
इस प्रजा-तंत्र के सागर से,
दूषित - शैवाल हटाना है |
जो बिके खनकते सिक्कों पर,
उनको अब सबक सिखाना है |
मिट रही भूख,डर खत्म हुआ,जीवित समरसता रहने दो |
रखदो इन घातक तीरों को,सुख,शांति,सरसता बहने दो |
सद्प्रेम तुम्हारा कहां गया,
क्यों भाई-चारा सोता है |
शिकवे सब दूर करो मन से,
बातों से सब हल होता है |
बस एक धर्म है मानवता, मन में मत जड़ता रहने दो |
रखदो इन घातक तीरों को,सुख,शांति,सरसता बहने दो |
आगया समय अब उन्नति का,
उठ कर अब चलने योग्य हुए |
जो सपने देखे थे मिल कर,
साकार, समर्पित-भोग्य हुए |
मत आग लगाओ सपनों में, इन सबको पलता रहने दो |
रखदो इन घातक तीरों को,सुख,शांति,सरसता बहने दो |
धन वर्षा,हनुमान मन्दिर, खटीमा-262308 (उ०ख०)
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