रविवार, 25 सितंबर 2011

ghar aanaa

       मेरे घर आओ
और दिनों तो दिखते हो तुम,
एक दिवस तुम नज़र न आते |
रात अमावस की तुम मामा, 
हम से छुपकर कहां बिताते |

अतिथि होकर इस दिन मामा,
दूर  कहीं पर तुम  हो आते |
इसी लिये तुम प्यारे मामा,
रात्रि अमावस नजर न आते |

एक दिवस तो मिलता ही है,
जब छुट्टी तुम कर लेते हो |
हम बच्चों से इस दिन मामा,
आकर तो तुम मिल सकते हो |

मम्मी पापा से मिल लेना,
खाना हिलमिल कर खा लेंगे |
फिर पिकनिक पर दूर दूर तक,
बातें करते  हम जा  लेंगे |

मेरे मित्रों से मिलना तुम,
बातें उनको नई   बताना |
वापस जाते याद सभी की,
तुम अपने दिल में लेजाना | 

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