रविवार, 7 अगस्त 2011

baal dohe aur ashaar-2


ये नन्हे कवि कहां से खींच कर,यह इत्र लाते हैं |
अनोखी कल्पना,भावों की सरगम मित्र  लाते हैं |
ये अनगढ हैं मगर इनमें,बहुत प्रतिभा झलकती है,
ये शब्दों से रचे अपने,विरल से चित्र   लाते हैं |
         -०-
कहां की बात को लाकर,कहां पर रख दिया तुमने |
यहां पर शब्द का दरिया,बहा कर रख दिया तुमने |
बड़े आसान शब्दों में,इबारत दिल पे लिख दी है,
कहां से भाव लाए हो,हिला कर रख दिया  तुमने |
           -०-
ये नन्हे तीर कविता के,दिलों पर वार करते हैं |
युगों की वर्जनाओं का,सरल    संहार करते हैं |
न इनपर शब्द ज्यादा हैं,न भावों की बड़ी गठरी,
ये इस युगकी सरलकविता,फसल तैयार करते हैं |
            -०-
पुरानी लीक पर  चलना, कभी  हमको  नहीं  भाया |
विगत गुणगान से कुछ भी,किसी को मिल नहीं पाया |
नये पथ हम  तलाशेंगे,शिखर की ओर जाने के -,
रखे हाथों को हाथों पर ,कभी कुछ  मिल नहीं  पाया |
           -०-
उठो उठ कर तलाशें हम,नई सम्भावनाओं  को |
करें जी तोड़कर हम अब,नई नित साधनाओं को |
सरलजीवन,सघनवैभव,अधिक आराम तलबी भी,
हटाकर अपने जीवन से,मिटा दें वासनाओं   को |
           -०-
हमारे दिल में पुरखों का,अभी भी ख्वाब बाकी है |
इसी से आंख में अपनी, हया की  आब बाकी है |
मुहब्बत उठ गई शहरों से लेकिन गांव में अब भी,
पुरानी रस्म जिन्दा है,अदब-आदाब   बाकी  है |
             -०-
उदर में आसमानों से, सहेजा बन्द अबरों को |
उतर गहराई में दिल की,कुरेदा कुन्द ज़बरों को|
प्रसवपीड़ा सही जो"राज",उसकी टीस सह-सह कर,
निचोड़ा दर्द दिल का तो,रचा है चन्द सतरों को |
            -०-
  धनवर्षा,हनुमानमन्दिर,खटीमा-२६२३०८(उ०ख०)

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