रविवार, 7 अगस्त 2011

आज़ादी सुन बात मेरी


  आज़ादी सुन बात मेरी
          - डा.राज सक्सेना

ऐ आज़ादी सुन बात मेरी,मैं तुझको सत्य दिखाता हूं |
चढ़ तू जिन कन्धों पर आई,मैं उनकी व्यथा बताता हूं |

ये स्लमबस्ती है भारत की,इसको सब कहते हैं कलंक |
कितनी कोठी खाली-सूनी,दिन-रात यहां मनता बसंत |

परिवार आठ का रह्ता है,एक आठ-आठ के कमरे में |
पीढ़ी कमरे में जनी कई, त्यौहार  मने सब कमरे में |

कमरे से बाहर एक बच्चा,जो पुण्य धरोहर हम सब की |
खाना तलाशता कूड़े से, कुछ भूख मिटे उसके तन की |

बच्ची बारह की होते ही, बाई हो जाती    कोठी   में |
अनचाहे या बेबस होकर, इज़्ज़त लुटवाती  कोटी   में |

टी बी से ग्रसित दादा-दादी,तिल-तिलकर मरते जाते हैं |
आज़ाद मुल्क में दवा बिना,फुटपाथों पर   मर जाते हैं |

धन सिमटगया कुछ खातोंमें,आधिक्यहुआ कुछ चीजों का |
अधिसंख्य अभावसे ग्रसित यहां,अडडा हरसड़क कनीजों का |

रिश्वतखोरी का आलम यह,बिन रिश्वत काम न  होता है |
जिनको रक्खा है  काम हेतु,हर  टांग पसारे   सोता  है |

मंत्री,पी एम ओ झूठ कहे,सब छिपे भेड़ की खालों   में |
उदघाट्न तक सड्कें चलतीं,पुल गिर जाते कुछ सालों में |

बस यही रास्ता बचता है , झण्डा  लेकर अब  हाथों में |
उठ समरभूमि में कूद पडो, घुस जाओ भ्रष्ठ  ठिकानों में

   धनवर्षा,हनुमान मन्दिर खटीमा-२६२३०८(उ०ख्०)
     मो- ०९४१०७१८७७७

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