गुरुवार, 18 अगस्त 2011

हिमालय


      हिमालय
          - डा.राज सक्सेना

भारत मां के राज मुकुट सा,सर पर जड़ा हिमालय |
जय जवान सा रक्षक बन कर,तत्पर खड़ा हिमालय |

अविरल देकर नीर नदी को,करता भरित हिमालय |
खेत उगलते सोना जिससे,करता हरित  हिमालय |

झेल रहा बर्फीली आंधी, इधर  न आने   देता-,
कष्ट सभी अपने ऊपर ही, बिना कहे  ले  लेता |

सागर से उठते बादल को,  पार न  होने  देता |
भारत में बरसा कर बादल. जलधि न खोने देता |

देता रहता  खनिज हमेशा, भारत धनिक बनाने,
सघन वनों को परिपूरित कर,जीवन सुखद बनाने |

किन्तु नहीं हम जीने देते, इसको  जीवन   इसका |
धीरे-धीरे अंग भंग  कर.  कुतर-कुतर तन इसका |

कसम एक सब मिलकर खाएं,हरा-भ्ररा हम इसे बनाएं,
लेता नहीं कभी बस देता, स्वर्णिम इसका  रूप बनाएं |
  धनवर्षा,हनुमानमन्दिर्,ख्टीमा-२६२३०८(उ०ख०)
          मो- ०९४१०७१८७७७

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