हिमालय
- डा.राज सक्सेना
भारत मां के राज मुकुट सा,सर पर जड़ा हिमालय |
जय जवान सा रक्षक बन कर,तत्पर खड़ा हिमालय |
अविरल देकर नीर नदी को,करता भरित हिमालय |
खेत उगलते सोना जिससे,करता हरित हिमालय |
झेल रहा बर्फीली आंधी, इधर न आने देता-,
कष्ट सभी अपने ऊपर ही, बिना कहे ले लेता |
सागर से उठते बादल को, पार न होने देता |
भारत में बरसा कर बादल. जलधि न खोने देता |
देता रहता खनिज हमेशा, भारत धनिक बनाने,
सघन वनों को परिपूरित कर,जीवन सुखद बनाने |
किन्तु नहीं हम जीने देते, इसको जीवन इसका |
धीरे-धीरे अंग भंग कर. कुतर-कुतर तन इसका |
कसम एक सब मिलकर खाएं,हरा-भ्ररा हम इसे बनाएं,
लेता नहीं कभी बस देता, स्वर्णिम इसका रूप बनाएं |
धनवर्षा,हनुमानमन्दिर्,ख्टीमा-२६२३०८(उ०ख०)
मो- ०९४१०७१८७७७
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