रविवार, 7 अगस्त 2011

रविवार आयेगा

       रविवार आयेगा
               - राज सक्सेना

दिन की भागदौड़ से थक कर ,
सूरज जब घर जाता |
चन्दा, लेकर बहुत सितारे,
नभ में नित आ जाता |

आंख-मिचौली क्यौ होती यह ,
समझ नहीं मै पाता |
और न समझें मां-पापा भी,
भय्या चुप रह जाता |

ऐक दिवस जब दादा-दादी ,
हमसे मिलने आये |
मैने सारे प्रश्न सामने ,
उनके यह दोहराये |

सुन कर दादा-दादी बोले ,
कारण बहुत सरल है |
सूरज को घर भेजा जाता,
लाना उसको कल है |

ना जाये जो घर पर सूरज ,
कल कैसे लायेगा |
छैः कल बीतें तो छुट्टी का,
वार रवि आयेगा |

  -धनवर्षा,हनुमानमन्दिर ,
खटीमा-२६२३०८(उत्तराखण्ड)
मो-०९४१०७१८७७७

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