सोमवार, 8 अगस्त 2011

बाल् दोहे और कतात

   बाल् दोहे और कतात 
             -ड़ा.राज सक्सेना
मेरे मासूम से बच्चे,गज़ब क्या कर दिया तुमने |
सजाकर एक अच्छा सा,गुलिस्तां धर दिया तुमने |
अजब सा खेल खेला है,अजब जादूगरी की है -,
सरल कविता में प्राणों को,गले से भरदिया तुमने |
         -०-
अभी दिखता है अपनापन,हमें कविता से रिश्ते में |
झलकता है अजब , उन्माद जैसा इन बहिश्तों में |
नये कवि आज जैसे छू रहे हैं सूर्य को जाकर -,
बहुत सम्भावनाएं दिख रही  हैं,  इन फरिश्तों में |
         -०-

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