सरस्वती-वन्दना
शारदे कुछ इस तरह का,अब मुझे वरदान दे |
निज चरण में बैठने का,अल्प सा स्थान दे |
साहित्य-गंगा से लबालब,
मस्तिष्क को आपूर्ति दे |
हो जनन साहित्य नव,
यह श्रेष्ठतम स्फूर्ति दे |
गीत गंगा को मेरी,नित-नित नये आयाम दे |
निज चरण में बैठने का,अल्प सा स्थान दे |
हो सृजन सबसे अनूठा,
प्रेम की रस-धार हो |
शब्द हों आपूर्त रस में,
अक्षरों में प्यार हो |
मधु सरीखा कंठ दे, रस-पूर्ण मंगलगान दे |
निज चरण में बैठने का,अल्प सा स्थान दे |
त्याग-मय जीवन मिले,
निर्लिप्त मन मन्दिर रहे |
प्रेम-पूरित हों वचन सब,
जिनको यह जिव्हा कहे |
गंध सा फैले जगत में,वह मुझे यश-मान दे |
निज चरण में बैठने का,अल्प सा स्थान दे |
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